-शहर में मंगला पूजा का दिखा उत्साह

-सड़कों में मां की आराधना में देर शाम को झूमते रहे

JAMSHEDPUR: मंगला ओसा यानी मां मंगला की पूजा का उल्लास मंगलवार को शहर में चारों ओर दिखा। स्वर्णरेखा नदी घाट जाने वाले रास्तों पर मंगलवार को मां मंगला के भक्त मां की आराधना में लीन झूमते दिखे। खास कर महिलाएं सिर पर कलश और आस्था के पानी से भीगी महिलाएं नदी तटों से कलश भरकर लाने के क्रम में मंगलवार को मां मंगला की शक्ति से कंपकंपाती-झूमती दिखीं। इस बीच ढोल बजाते युवक व खुद पर चाबुक चलाते भक्तजन आस्था के सागर में डुबकी लगाते दिखे। मंगला ओसा के लिए कलश लाते श्रद्धालु भुइयांडीह ह्यूम पाइप रोड सोनारी रामनगर, सरजामदा, बागुनहातू, भालूबासा व टुइलाडुंगरी के हरिश दास के घर समेत कई इलाकों की सड़कों में मां की आराधना में देर शाम को झूमते रहे। मां मंगला की पूजा खास तौर पर नि:संतान महिलाएं संतान सुख के लिए मंगला ओसा करती हैं। मान्यता है कि इससे संतान सुख की मन्नत पूरी होती है। मां मंगला संतान की मन्नत मांगने वाली महिलाओं को कभी निराश नहीं करती हैं। इसके अलावा भी कई मन्नत मां मंगला से मांगे जाते हैं। मन्नत पूरी होने पर कई भक्तों ने मां मंगला को मुर्गे की बलि भी दी। मंगला ओसा के दिन पूजा करने वाले श्रद्धालु दिन भर उपवास रखते हैं। कलश लाने के क्रम में रास्ते पर बाल्टी भर-भर कर पानी डाला गया, ताकि मां व कलश लेकर चल रही उनकी बहनें आसानी से चल सकती हैं। इसके अलावा कलशों में मैथी का लेप चढ़ाया जाता है, ताकि मां का शरीर चेत माह के चिलचिलाती धूप में भी ठंडा रहे। गौरतलब हो कि झारखंड में घासी, कोल, संताल, कोरवा, भुमिज, बावरी, भुइयां, कालिंदी, गोप, सुंडी, पान-तांती समाज के लोग मां मंगला की पूजा में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।

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कलश लाती महिलाओं के पैरों के नीचे लेटे बच्चे

माना जाता है कि नदी से कलश लाने के क्रम में महिलाओं को मां मंगला की शक्ति प्रदत्त होती है, तभी तो कलश लाने के क्रम में आंखे बंद होने व मां की शक्ति से कंपकंपाने के बावजूद महिलाएं सीधे नदी से पूजा मंडप पर कलश स्थापित करने पहुंचती हैं। मां की इसी शक्ति का आशीष पाने के लिए मंगलवार को मंगला ओसा के दिन इलाकों के छोटे-छोटे बच्चे सड़क पर लेट गए। सड़क पर लेटे इन बच्चों को कलश लाने वाली महिलाओं के लांघने मात्र से उन्हें निरोग होने का आशीष प्राप्त होता है। इसलिए बच्चों में सड़क पर लेटने की होड़ सी दिखी।

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चले चाबुक, दर्द बिल्कुल भी नहीं हुआ

मां मंगला की आस्था की शक्ति इतनी होती है कि कलश यात्रा के दौरान झूमते भक्तों को पुआल से बने बड़े-बड़े चाबुक से जोर-जोर से मारे जाता है, बावजूद इसके चाबुक खाने वाले श्रद्धालुओं पर इसका असर नहीं पड़ता है। चाबुक खाने के बावजूद श्रद्धालु मां मंगला की आस्था में लीन रहते हैं। चाबुक पड़ने के बावजूद उनके चेहरे के भाव को देखने से लगता नहीं कि उन्हें कोई दर्द हो रहा है। आस्था का असर देखने वालों के लिए यह कोई चमत्कार से कम नहीं होता।

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मां मंगला ठ जाए तो इलाके में चेचक का प्रकोप

मां मंगला की आराधना करने वाले बताते हैं कि इस पूजा के जरिये मां मंगला को पलास, कोराट फूल, नारियल, केंदू, चाहर, मोहुल समेत जंगल में पाये जाने वाले तमाम फल-फूल चढ़ाये जाते हैं। मां को फल-फूल चढ़ाने के बाद ही समाज के लोग इस वर्ष इसका सेवन करते हैं। इस पूजा में भाग लेने वाले चिकू सन्सुका घासी ने बताया कि मां मंगला रूठ जाती है तो इलाके में चेचक जैसी बीमारी का प्रकोप फैल जाता है।