-देश के 52 शक्तिपीठों में एक पीठ के रूप में है मान्यता

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क्चश्वद्दस्न्क्त्रन्ढ्ढ/क्कन्ञ्जहृन्: देश के 52 शक्तिपीठों में जयमंगला माता की गिनती होती है। बेगूसराय जिला मुख्यालय से 22 किलोमीटर दूर मंझौल अनुमंडल के जयमंगलागढ़ में मां जयमंगला की मंदिर है। यहां मां की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। नवरात्र शुरू होते ही यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगती है। सुबह से ही या देवी सर्वभूतेषु, जयमंगला रूपेण संस्थिता, दुर्गा सप्तशती, श्रीमद्भागवत के पाठ से वातावरण गुंजायमान हो जाता है।

मंदिर का इतिहास

शक्तिपीठ का इतिहास भगवान शंकर और सती के शव से जुड़ा है। जब भगवान शंकर सती का शव लेकर घूम रहे थे तो चक्र से उसके टुकड़े कर दिए। सती का अंग जिन-जिन स्थलों पर गिरा वे सभी शक्तिपीठ कहलाए। जयमंगलागढ़ में सती के वाम स्कंध का पात हुआ। इससे धकार की तेज ध्वनि उत्पन्न हुई। यहां गंधर्वों ने ज्ञान प्राप्त किया। इसलिए यह स्थल स्वर साधकों और संगीत प्रेमियों का स्वर सिद्धि का अदभुत स्थल माना जाता है। जनश्रुति के मुताबिक वशिष्ठ ऋषि ने भी यहीं स्वरसिद्धि प्राप्त की। यहां सालोंभर रोज मां की दो बार आरती होती है। रात में मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। अष्टमी और नवमी को काफी संख्या में श्रद्धालु यहां पूजा-अर्चना पहुंचते हैं।

जंगल और झील के बीच है मंदिर

ऐतिहासिक जयमंगला मंदिर चारों ओर से वन क्षेत्र और बेगूसराय जिले की पहचान कावर झील के बीच में स्थित है। घने वन और झील के बीच स्थित होने से पूरा मंदिर रमणीय दिखता है। मंदिर के गर्भगृह में माता जयमंगला हैं। मंदिर में प्रवेश और निकास के लिए एक द्वार है। मान्यता है कि जो भी विश्वास के साथ माता की पूजा करते हैं, उनकी मन्नतें पूरी होती हैं। मंदिर के आसपास सैकड़ों बंदर हैं। आगंतुक बंदरों को भी देखकर आनंद का अनुभव करते हैं।

यहां सालोंभर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। माता अपने दर पर पहुंचने वालों की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं। शारदीय नवरात्र में मां के दर्शन, पूजन और पाठ से मनोवांछित फल मिलता है। नवरात्र की नवमी और दशमी तिथि को यहां भारी भीड़ जुटती है।

-घनश्याम झा, पुजारी