ज्योतिरादित्य के खिलाफ खोल न दें मोर्चा

दरअसल, ज्योतिरादित्य सिंधिया को युवा चेहरे के तौर पर पेश करने का फैसला करीब छह माह पहले ही कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व ले चुका था. चिंता थी कि गुटों में बंटी मध्य प्रदेश की सियासत में ज्योतिरादित्य के खिलाफ सब मोर्चा न खोल दें. इसलिए, फैसले से पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने दिग्विजय सिंह से लेकर कमलनाथ जैसे मध्य प्रदेश के दिग्गजों से अलग-अलग बात की. खासतौर से दिग्विजय सिंह से इस मामले में कई बार बातचीत हुई और ज्योतिरादित्य को आगे करने का फैसला उसी समय हो गया था.

गुटबाजी और मतभेद आ गए सामने

इसी का नतीजा था कि ज्योतिरादित्य को मध्य प्रदेश चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया. शुरुआत में सब ठीक रहा, लेकिन कुछ ही दिनों में गुटबाजी और मतभेद सामने आ गए. कांग्रेस के एक खेमे का मानना है कि ज्योतिरादित्य का नाम आगे करने से मध्य प्रदेश में पार्टी को फायदा मिल रहा है. अब इस खेमे का दबाव था कि कांग्रेस की तरफ से ज्योतिरादित्य को कांग्रेस के मुख्यमंत्री के तौर पर औपचारिक रूप से पेश कर दिया जाए.

महाराजा बनाम जमीनी आदमी से नुकसान

गुरुवार को सिंधिया के गढ़ ग्वालियर में ही राहुल की तरफ से इस तरह की घोषणा की तैयारी भी थी. मगर सूत्रों के मुताबिक, दिग्विजय ने इसका विरोध किया. इसका कारण व्यक्तिगत खुन्नस नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत बताया गया. दिग्विजय का तर्क था कि ऐसा करते ही मध्य प्रदेश में एक नई बहस शुरू हो जाएगी. तर्क था कि ज्योतिरादित्य महाराजा हैं और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जमीनी आदमी की छवि कायम रखी है. 'महाराजा बनाम जमीनी आदमी' की बहस से पार्टी को नुकसान हो सकता है.

सिंधिया का नाम पुख्ता लेकिन एलान नहीं

सूत्रों के मुताबिक, इसीलिए राहुल ने युवा की सरकार बताकर सिंधिया का नाम और पुख्ता तो किया, लेकिन एलान से कतरा गए. चूंकि, पिछले चुनाव में मध्य प्रदेश की 230 सीटों में 143 सीटें भाजपा और 72 कांग्रेस को मिली थीं. इस दफा पार्टी का अपना सर्वे उसे 100 सीटों तक पहुंचा रहा है और कांग्रेस की उम्मीद है कि थोड़ी मेहनत से वह सत्ता में आ सकती है. ऐसे में राहुल ने कोई नई बहस या संगठन में विवाद खड़ा करने से बचने के लिए ज्योतिरादित्य का नाम नहीं लिया.

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