ये है मामला
गौरतलब है कि सम्मान की प्रतिष्ठा का इस्तेमाल व्यावसायिक उत्पादों का प्रचार करके पैसा कमाने पर तेंदुलकर से 'भारत रत्न' को वापस लेने की मांग पर एक जनहित याचिका मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में दायर की गई थी। इस याचिका को हाईकोर्ट के जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस एस के गुप्ता की खंडपीठ ने हस्तक्षेप के अयोग्य मानते हुए खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता के बारे में जानकारी है कि वह भोपाल निवासी वीके नासवाह हैं।

ऐसा कहना है याचिकाकर्ता का
दरअसल वीके नासवाह का कहना है कि तेंदुलकर देश के काफी लोकप्रिय व्यक्ति हैं। उन्होंने देश के लिए क्रिकेट जगत में कई विश्व रिकॉर्ड बनाए हैं। इसके बावजूद  उन्होंने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान की प्रतिष्ठा का इस्तेमाल करते हुए व्यावसायिक उत्पादों का प्रचार किया। इतना ही नहीं उससे पैसे भी कमाए। उन्होंने कहा कि यह सर्वोच्च नागरिक सम्मान की मर्यादा और सिद्घांतों के पूरी तरह से खिलाफ है।

नासवाह की आगे की योजना
उन्होंने ये भी कहा कि नैतिक आधारों के तहत सचिन को इस सम्मान को लौटा देना चाहिए। इसके बावजूद अगर वो ऐसा नहीं करते हैं तो केंद्र को उनसे इस सम्मान को वापस ले लेना चाहिए। बताते चलें कि सचिन तेंडुलकर लगभग 12 से ज्यादा ब्रांड्स का प्रचार करते हैं। याचिकाकर्ता ने अदालत में ये भी कहा कि भारत रत्न एक तरह का अवार्ड है, कोई टाइटल नहीं। ऐसे में इसका इस्तेमाल नाम के आगे या पीछे नहीं किया जाना चाहिए। वहीं अब नासवाह का कहना है कि अब वह केंद्र सरकार से संपर्क करते हुए उनके समक्ष अपनी बात रखेंगे। वहां भी कोई सुनवाई न होने पर वह सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेंगे।

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