- कल्पवासियों की रोटी का इंतजाम करने वालों पर भगवान का कहर

- खराब मौसम छीनने को आतुर है वर्षो से जमा रोजी का जरिया

ALLAHABAD: महंगाई के इस दौर में किसी भी गरीब के लिए जीवन यापन कितना मुश्किल है। यह बताने की जरूरत नहीं। लेकिन जब दु:ख दर्द मिटाने की ईश्वर से आस लगाए इन लोगों पर भगवान ही कहर बनकर टूट पड़ें तो ये किससे अपना दर्द कहेंगे? गंगा की रेती पर इन दिनों हर रोज ऐसी ही कहानी बन रही है।

भूखे पेट के लिए है ये तप

इन दिनों शास्त्री ब्रिज के ऊपर से गुजरने वालों के लिए यह नजारा आम है। इतनी ठंड में भी गंगा की रेती पर महिलाएं, पुरुषों यहां तक की बच्चे दिन रात मेहनत कर रहे हैं। माघ मेले में आए कल्पवासियों के लिए चूल्हे, होरसी और कंडियों के इंतजाम में जुटे हैं। हजारों हजार की संख्या में चूल्हे, होरसी और कंडियों की लाट संगम की रेती पर बिछी नजर आ रही है। दरअसल असल कल्पवासी अपनी चुल्हा चक्की का इंतजाम इन्हीं से करते हैं। मिट्टी के चूल्हे, होरसी व जलाने के लिए कण्डी ले जाते हैं।

सूरज पर ही डटी रहती हैं निगाहें

लाखों की संख्या में आने वाले कल्पवासियों के लिए दिन रात एक किए इन बेसहारों को प्रकृति ने अबकी बार बड़ा झटका दिया है। पिछले दिनों लगातार हुई बरसात और फिर एक बार फिर बादलों की ओट में छिपा सूरज इनकी रोजी रोटी पर प्रहार कर रहा है। अब तक हजारों की संख्या में पाथी गई कंडी, चूल्हा और होरसी बरसात और फिर ठंड की भेंट चढ़ चुके हैं।

जिससे आसरा वही छीन रहा रोजी

भगवान की बेरुखी से मायूस इन लोगों से आईनेक्स्ट रिपोर्टर ने बात की। बड़ी मुश्किल से बात करने को तैयार हुई शकुंतला देवी ने कहा कि माघ के महीने में उन्हें हर साल यहां से अच्छी खासी आय होती है। जिससे उनके आने वाले कई महीने की रोजी रोटी का जुगाड़ हो जाता है। लेकिन इस बार जिस भगवान से आसरा था, वही रोटी छीनने में लगा है।

तो छोड़ जाएंगे सब

शकुंतला के साथ मौजूद सीता देवी ने गुस्से भरे तल्ख अंदाज में कहा ऐसा ही मौसम बना रहा तो चूल्हा चक्की सब फोड देबै। बोली अभी तक तो गंगा माई ही रोजी रोटी देती आई हैं। लेकिन अगर उन्हें मंजूर नहीं तो हम यहीं सबकुछ छोड़कर चले जाएंगे। उन्होंने कहा कि हम गंगा के भीतर से चिकनी मिट्टी ढोकर लाते हैं। उसे दिन भर बैठकर पाथते हैं। पसीना बहाकर आकार देतें हैं। एक दो दिन तक सुखाते हैं और फिर एक झटके में मौसम सारी मेहनत पर पानी फेर देता है।