श्रद्धालुओं ने बदली जीवन शैली, करने लगे भूमि शयन, छोड़ा लहशुन-प्याज का सेवन

ALLAHABAD: संगम की रेती पर जनवरी को पौष पूर्णिमा स्नान के साथ श्रद्धालुओं का कल्पवास शुरू हो जाएगा। वे संगम तट पर एक महीने तक स्नान, दान व ध्यान करेंगे। इसमें अभी लगभग एक सप्ताह का समय बचा है, लेकिन कल्पवासियों ने बीते बीस दिसंबर से ही इसका रिहर्सल शुरू कर दिया है। शहर के श्रद्धालु कल्पवास के समय किए जाने वाले भूमि शयन व एक समय सात्विक भोजन के साथ लहशुन-प्याज का सेवन छोड़ दिया है।

पूर्णिमा से पूर्णिमा होता है कल्पवास

गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती के तट पर पौष पूर्णिमा से लेकर माघी पूर्णिमा तक श्रद्धालु कल्पवास करते हैं। इस बार जनवरी में ही कल्पवास पूरा हो जाएगा। इसकी बड़ी वजह ये है कि दो जनवरी को पौष पूर्णिमा का पहला स्नान पर्व हैं तो 31 जनवरी को अंतिम प्रमुख स्नान पर्व माघी पूर्णिमा पड़ रहा है।

कल्पवास का नियम

- मेला क्षेत्र में जो भी गृहस्थ कल्पवास का संकल्प लेकर आता है वह पर्णकुटी में रहता है

- पूर्णिमा से पूर्णिमा के दौरान दिन में एक ही बार सात्विक भोजन किया जाता है

- दिनचर्या सुबह गंगा स्नान के बाद संध्या वंदन से प्रारंभ होती है

- तीन प्रहर गंगा स्नान, रामायण का मासिक पर्यत व देर रात तक प्रवचन सुनना होता है

- भजन-कीर्तन जैसे आध्यात्मिक कार्यो में हिस्सा भी लेना होता है

घर का माहौल बदल गया है। पांच वर्ष से कल्पवास कर रहा हूं। इस बार भी तैयारी पहले से शुरू कर दी है। बेड पर सोने की बजाए भूमि पर सोना पसंद कर रहा हूं।

उमाकांत तिवारी

बच्चों ने इस बार कल्पवास करने से मना कर दिया था। लेकिन संगम की रेती जैसा तट कहां मिलेगा जहां एक महीना धार्मिक क्रिया कलापों में मन लगा सकूं।

शंभूनाथ शुक्ला

लहसुन और प्याज से बनी सब्जी खाना छोड़ दी हूं और भूमि पर शयन करने का अभ्यास कर रही हूं। परिवार के बच्चे ऐसे मौसम में जमीन पर सोना देखकर बार-बार पूछते हैं दादी क्या कर रही हो।

चम्पा देवी

मानसिक रूप से धैर्य व भक्ति में लीन रहने की प्रैक्टिस कर रही हूं। पूजा घर में रामायण का पाठ शुरू हो गया है। ठंड के बावजूद भूमि पर सोने के साथ सात्विक भोजन कर रही हूं।

शकुंतला कुमारी

दस दिन पहले से ही आध्यात्मिक कार्यो में लग गया हूं। इस बार परिजनों को भी कल्पवास का तौर तरीका बता रहा हूं। ताकि वे भी भविष्य में इसका पालन कर सकें।

रमाकांत

एक महीने की साधना के लिए पंद्रह दिन पहले से ही दिनचर्या को बदल दिया है। इससे मानसिक रूप से कल्पवास करने की आदत पड़ जाएगी और वहां मोह माया को छोड़कर धार्मिक गतिविधियों में लीन होना है।

श्याम जी

कल्पवास का विधान सदियों से चला आ रहा है। ऐसा पुराणों में वर्णित है कि जो लोग मोक्ष की अभिलाषा लेकर कल्पवास करते हैं उन्हें मोक्ष अवश्य मिलता है। इसीलिए एक महीने की तपस्या करने से पहले श्रद्धालु उसका अभ्यास शुरू कर देते हैं।

पं। विद्याकांत पांडेय, ज्योतिषाचार्य