एक बार ब्रह्मा और विष्णु में परस्पर यह विवाद उठ खड़ा हुआ कि हम दोनों में से कौन श्रेष्ठ है। उसी समय उनके बीच एक ज्योतिर्लिंग का आविर्भाव हुआ। उस ज्योतिपुंज को देखकर ब्रह्मा एवं विष्णु चकित हो गए। इसके बाद उन लोगों ने यह निश्चय किया कि हम लोगों मेंसे जो कोई इस ज्योतिर्लिंग के आदि-अंत का पता लगा लेगा, वही श्रेष्ठ माना जाएगा। परन्तु उसका विस्तार अनन्त एवं असीम था।

सहस्त्र वर्षों तक अनुसन्धान करते रहने पर भी उस दिव्य राशि का पता लगाने में वे दोनों असफल रहे। अन्ततोगत्वा विष्णु ने इस बात को स्वीकार कर लिया कि वे पता लगाने में असमर्थ है। परन्तु ब्रह्मा ने मोहग्रस्त होकर झूठ बोलते हुए कहा कि उन्होंने पता लगा लिया है। उन्होंने साक्ष्य के रूप में मिथ्यावादिनी केतकी को उपस्थित कर दिया। उसी समय वहाँ पर आकाशवाणी हुई कि ब्रह्मा और केतकी दोनों ही इस सन्दर्भ में झूठ कह रहे हैं। ऐसा सुनकर ब्रह्मा लज्जित हो गए और भय से कांपने लगे।

ब्रह्मा और विष्णु आकाशवाणी होने के सम्बन्ध में सोच ही रहे थे कि उनके मध्य में भगवान शिव स्वयं ही प्रकट होकर बोले- हे ब्रह्मा एवं विष्णु! तुम दोनों आपस में व्यर्थ ही झगड़ रहे हो क्योंकि इस सृष्टि का मूलभूत उत्पादक स्वामी मै ही हूं। तुम दोनों की उत्पत्ति भी मेरे कारण हुई है।

ब्रह्मा और केतकी को मिला दंड

अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु और महेश- ये तीनों भिन्न-भिन्न मेरे ही स्वरूप हैं। मैंने ही इस ज्योतिर्लिंग को तुम लोगों के आत्मबोध के निमित्त उत्पन्न किया था। मिथ्या भाषण के कारण ब्रह्मा और केतकी को दण्ड का भागी होना पड़ेगा। केतकी पुष्प को मेरी पूजा में कोई स्थान नहीं मिलेगा, जो भक्त भूल से भी केतकी को मेरे ऊपर अर्पण करेगा, उसका सर्वनाश हो जाएगा। इसलिए केतकी को भगवान् शिव पर नहीं चढ़ाना चाहिए।

ब्रह्मा को अपनी भूल पर पछतावा

भगवान शिव बोले कि ब्रह्मा को भविष्य में पुनः पश्चाताप करना होगा, इसीलिए तुम लोगों को अपने अहंकार का त्याग कर देना चाहिए। इतना कहकर शिवजी अन्तर्धान हो गए। ब्रह्मा को अपनी भूल पर पछतावा होने लगा। अन्त में ब्रह्मा तथा विष्णु दोनों ही भगवान् शिव की स्तुति करने लगे।

— ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र

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