बाहर निकालते ही उसे एंबुलेंस से अस्पताल ले जाया गया जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया. गुड़गांव के जिला मजिस्ट्रेट पी सी मीना ने इसकी पुष्टि की है.

बीस जून को अपने जन्मदिन वाले दिन माही खेलते समय मानेसर के पास खो गई और गांव के इस बोरवेल में गिर गई थी. अधिकारियों का कहना है कि चट्टान या पत्थर के रूप में कोई न कोई बाधा आती रही जिससे सेना के जवानों को माही तक पहुंचने में इतना समय लगा.

कई विभागों के कर्मियों की मदद से सेना के जवान 80 घंटे से अधिक में फंसी बच्चे को बाहर निकाल पाए.

 

मां का सब्र

माही को निकालने में देरी के चलते माही की मां का सब्र टूटता जा रहा था. उसे निकाले जाने से कुछ ही देर पहले उन्होंने अधिकारियों से गुहार लगाई कि वे कुछ भी करके उनकी बेटी को बचाएं.

पत्रकारों से उन्होंने कहा, ''मैं तो बस इतना चाहती हूं कि मेरे बच्चे को बचा कर मुझे दे दो.''

उन्होंने कहा, ''मशीनें आती हैं मशीनें चली जाती हैं...पांच मिनट में, पांच मिनट में, पांच दिन से ऐसी ही बोल रहे हैं.''

सेना ने इस बोरवेल के पास एक और गड्ढा खोदा जहां से सुरंग बना कर जवान उन तक पहुंचने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन नीचे ऑक्सीजन की कमी होने से जवान कुछ मिनट से ज्यादा काम नहीं कर पा रहे थे.

इससे पहले समाचार एजेंसी पीटीआई ने संयुक्त पुलिस आयुक्त अनिल राव के हवाले से कहा था, ''हमें उस तक पहुंचने के लिए और खुदाई करनी होगी. रास्ते में सख्त चट्टान है. हम रोड़ी हटाने के तरीके खोज रहे हैं. बोरवेल और इसके समानान्तर खोदे गए गड्ढे के बीच यह चट्टान आ गई थी.''

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश

किसी बच्चे के इस तरह बोरवेल में गिरने का यह पहले मौका नहीं है.

साल 2006 में पांच वर्षीय प्रिंस कुरुक्षेत्र में अपने घर के पास खुले एक 60 फीट गहरे बोरवेल में गिर गया था. 40 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद उसे निकाला जा सका था.

ऐसे हादसे रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों सख्त निर्देश जारी किए थे.

इन दिशानिर्देशों के मुताबिक बोरवेल खुदवाने के 15 दिन पहले जिलाधिकारी, ग्राउंडवाटर डिपार्टमेंट, स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम को इसकी जानकारी देना जरूरी है.

यह भी कहा गया कि गांवों में बोरवेल की खुदाई सरपंच और कृषि विभाग के अफसरों की निगरानी में होगी.

इसके साथ ही बोरवेल खोदने वाली एजेंसी का रजिस्ट्रेशन होना आवश्यक है.

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