ममता सरकार ने नया विवाद छेड़ते हुए सरकार से मदद प्राप्त लाइब्रेरी में अंग्रेजी और अधिक सर्कुलेशन वाले बंगाली अखबारों पर प्रतिबंध लगा दिया है. अब इन पुस्तकालयों में केवल आठ चुने हुए अखबार ही उपलब्ध रहेंगे.

राज्य के पुस्तकालय मामलों के मंत्री अब्दुल करीम चौधरी ने मुख्यमंत्री के साथ 45 मिनट की बैठक के बाद कहा, ‘‘सर्कुलर ठीक है, यह सरकार की नीति के अनुसार जारी किया गया है.’’ आदेश के अनुसार, सार्वजनिक पुस्तकालयों में अब केवल संवाद, प्रतिदिन, सकालबेला, खबर 365 दिन, एकदिन, दैनिक स्टेट्समैन (सभी बंगाली), सन्मार्ग (हिन्दी), अखबार ए मुशरिक और आजाद हिन्द (दोनों उर्दू) अखबार ही उपलब्ध रहेंगे.

दीदी की मर्जी का अखबार पढ़ना होगा!

आदेश के अनुसार, पश्चिम बंगाल के राज्य प्रायोजित और मदद प्राप्त पुस्तकालयों में अब अंग्रेजी या बड़ी प्रसार संख्या वाले बंगाली अखबार उपलब्ध नहीं होंगे. सर्कुलर में कहा गया है कि राज्य के सार्वजनिक पुस्तकालयों में किसी राजनीतिक दल द्वारा छापे जाने वाले अखबारों की खरीद में कोई सरकारी पैसा खर्च नहीं होगा.

इसमें कहा गया है कि ऐसा महसूस किया जाता है कि ये आठ अखबार ग्रामीण इलाकों में भाषा के प्रसार के साथ विकास और स्वतंत्र विचार में महत्वपूर्ण योगदान देंगे. ममता बनर्जी सरकार की ओर से आधिकारिक सर्कुलर  के जरिये जारी किये गये इस आदेश की बुधवार को तृणमूल कांग्रेस के गठबंधन सहयोगी कांग्रेस तथा विपक्षी वामदलों और बुद्धिजीवियों ने आलोचना की.

इन सदस्यों का कहना है कि यह फैसला ‘अलोकतांत्रिक, अवांछित और सेंशरशिप से भी खतरनाक है.’ इस सर्कुलर को वापस लेने की भी मांग की गई.  राज्य सरकार ने हालांकि अपने फैसले का बचाव करते हुए सर्कुलर को वापस लेने से इंकार कर दिया. सरकार ने यह भी कहा कि यह आदेश नीति के अनुसार जारी किया गया.

माकपा के माउथपीस  ‘गणशक्ति’ पर भी प्रतिबंध लगाया गया है. माकपा नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि यह आदेश सेंशरशिप से भी खतरनाक है और इसमें ‘फासीवाद’ का रंग है. कांग्रेस विधायक असित मित्रा ने कहा कि सरकार का फैसला लोकतांत्रिक संस्थाओं के मूल को नुकसान पहुंचाएगा और यह ‘अलोकतांत्रिक निर्णय’ है.

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