चार साल पहले पता चला कर्ज के बारे में
दरअसल रिजर्व बैंके ने चार साल पहले एक बयान दिया था। अखबार में छपे इस बयान में आरबीआई ने कहा था कि हर भारतीय पर 33,000 रुपये का कर्ज है। जब जांजगीर के सिवनी गांव में रहने वाले विकास मिश्रा ने इस बात को पढ़ा तो उन्होंने इस कर्ज को अदा करने की ठान ली।
खा रहा ठोकरें
हजारों करोड़ रुपए हड़प कर जाने के बाद भी जहां विजय माल्या जैसे बड़े कारोबारी और लोग डकार तक नहीं लेते, वहीं रिजर्व बैंक के इस बयान के बाद से विकास अपने ऊपर चढ़े कर्ज को उतारने के लिए पिछले चार सालों से दर-दर की ठोकरें खा रहा है। अपने ऊपर चढ़े इस कर्ज को उतारने के लिए विकास ने पहले स्थानीय स्थर पर कई प्रयास किए। जब उसको यहां पर सफलता नहीं हाथ लगी तो उन्होंने 33,000 रुपये के बेरर चेक को कोरियर के द्वारा रिजर्व बैंक, पीएमओ एवं राष्ट्रपति कार्यालय भेजा लेकिन इन सभी जगहों से उसका चेक वापस आ गया।
खारिज हो गई याचिका
जब तमाम जगहों से उसका चेक वापस आ गया तो वो खुद दिल्ली गया। दिल्ली जाकर उसने इन सभी ऑफिस में जाकर चेक जमा करने का प्रयास किसा लेकिन किसी ने भी उसका चेक नहीं लिया। हाईकोर्ट में भी विकास ने अपने कर्ज को उतारने के लिए याचिका दायर की लेकिन वहां भी उसको असफलता हाथ लगी। हाईकोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर दी।
नहीं थम रहें कदम, लाखों हो गए खर्च
इतनी असफलता हाथ लगने के बाद भी विकास के जुनून में किसी भी तरह की कमी नहीं आई है। वो देश का कर्ज उतारने के लिए तत्पर है। आप जानकर हैरान रह जाएंगे की 33,000 रुपये का कर्ज उतारने के लिए वो अब तक 2 लाख से भी ज्यादा रुपये खर्च कर चुका है।
क्यों नहीं बनते सेंटर
विकास का कहना है कि अगर आरबीआई का सर्वे के बाद कहना है कि अगर प्रत्येक भारतीय नागरिक 33,000 रुपये का कर्जदार है तो वो इस कर्ज को चुकाने के लिए कोई नियम क्यों नहीं बनाती है। वो क्यों कोई सेंटर नहीं खोल देती जहां पर लोग अपने कर्ज को अदा कर पाएं। इसके साथ ही विकास ने यह भी कहा कि अगर भारत देश के 10 प्रतिशत नागरिक भी इस कर्ज को अदा करता है तो देश के खजानें में अरबो रुपये जमा हो जाएंगे और देश की अर्थव्यवस्था काफी मजबूत हो जाएगी।
Image Courtsey: Pradesh18
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