कैसे पहुंचा मामला कोर्ट
केरल में रहने वाले एक शख्स ने केरल की फैमिली कोर्ट से तलाक के ऑर्डर ले लिये हैं, वहीं उसकी पत्नी मुंबई के कोर्ट से साथ रहने के ऑर्डर लेकर आई है. अब ऐसे में मामला बड़ा गंभीर बना हुआ है. महिला ने कोर्ट में कहा कि उसका पक्ष सुने कबना ही केरल कोर्ट ने तलाक का एकतरफा फैसला सुना दिया था, जो कि अन्याय है. महिला का यह भी कहना है कि कोर्ट के पास मेरे पति की याचिका के आधार पर हमारी शादी तोड़ने का अधिकार भी नहीं था. जस्टिस रंजना पी.देसाई और एन.वी रमन की बेंच के सामने महिला ने बताया कि बांद्रा कोर्ट ने 2 दिसंबर 2009 को उसके वैवाहिक अधिकारों की बहाली का आदेश दिया था. वहीं महिला के पति ने 16 जनवरी 2013 को केरल के एक कोर्ट से तलाक का आदेश लिया था.

सीनियर एडवोकेट की हुई नियुक्ति
मामले के विरोधाभास को देखते हुये बेंच ने सीनियर एडवोकेट वी.गिरी को इस मामले में परामर्शदाता नियुक्त किया और इसका समाधान निकालने के लिये कहा. गिरी ने कोर्ट को बताया कि अभी दोनों पक्षों ने अपने फैसलों को ऊपरी अदालतों में चुनौती नहीं दी है.

क्या है मामला
आपको बता दें कि महिला ने साल 2012 में पति से अइलग होने के बाद गुजारा भत्ता लेने के लिये सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी. वी गिरी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वह शख्स अपनी पत्नी को साल 2013 में 40 हजार रुपये का गुजारा भत्ता दे रहा था, लेकिन पत्नी की शिकायत थी कि उसे भत्ता नहीं मिल रहा है. अब मामले पर शोध करने के बाद वी गिरी ने सुझाव दिया कि सुप्रीम कोर्ट पत्नी को केरल हाई कोर्ट में अपील करने की इजाजत दे. हालांकि महिला ने तलाक के आदेश को चुनौती देने से साफ इंकार कर दिया है. इसके अलावा कोर्ट ने गिरी से इस केस के महत्वपूर्ण बिंदुओं को तैयार कर कोर्ट में जमा करवाने के लिये कहा है.

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