-दो माह बाद 7 जुलाई से फिर गुंजेगी शहनाई

-15 जुलाई तक बजेगी शुभ लगन की शहनाई

- बाद में 11 नवंबर तक करना होगा इंतजार

PATNA/BUXAR: इस बार ग्रह-चक्र के फेर में साल का शुरुआती लगन काफी कम रहा। इसका असर बाजार पर भी जबरदस्त पड़ा। परंतु, महीनों की शांति के बाद अगले माह शहनाई की आवाज एक बार फिर गूंजेंगी। कुछ ही दिनों बाद शादी-विवाह का मुहूर्त शुरू होने वाला है। अबकी बार मानसून-बे¨डग को मांगलिक मुहूर्त काफी कम है। हालांकि, मानसून वे¨डग के इस लग्न में सेहरा बांधने से चुके, तो फिर शादी के लिए नवंबर महीना तक का लंबा इंतजार करना पड़ेगा।

मांगलिक मुहूर्त का आगाज जुलाई के प्रथम सप्ताह से होगा तथा पहले पखवाड़ा में ही समाप्त भी हो जाएगा। लग्न की आहट की गूंज बाजारों में भी सुनाई देने लगी है। पंडित-पुरोहितों की बु¨कग के लिए उनके दरवाजों पर भी भीड़ लग रही है। परंतु मुहूर्तों की कमी व शादी-विवाह की अधिकता के चच्ते अच्छे व जानकार आचार्यों का मिलना मुश्किल हो गया है।

7 जुलाई से शुरू होगा लग्न

अप्रैल के बाद मांगलिक मुहूर्त का शुभारंभ 7 जुलाई से होगा। जो कुछ ही दिनों तक चलने के बाद क्भ् जुलाई को समाप्त हो जाएगा। फिर क्क् नवंबर को देवोत्थान एकादशी के पश्चात मांगलिक कार्य का शुभारंभ होगा। सो चार माह तक वैवाहिक कार्यों पर विराम लग जाएगा।

जुलाई में नौ मुहूर्त

जुलाई महीना में केवल नौ मुहूर्त ऐसे हैं। जो शादी-विवाह के लिए अनुकूल माने जा रहे हैं। नगर थाना चौराहा स्थित ज्योतिष केन्द्र के ज्योतिषाचार्य पं.मुन्नाजी चौबे समेत अन्य आचार्यों के अनुसार मांगलिक कार्य 7 जुलाई से शुरू होकर क्भ् तक लगातार चलेगा। इस बीच 7, 8,9,क्0,क्क्,क्ख्,क्फ्,क्ब् व क्भ् को मांगलिक मुहूर्त हैं। जिसमें वैवाहिक कार्यों के अलावा अन्य शुभ कार्य करना श्रेयस्कर होगा।

चार माह तक विराम

पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु चार महीना क्षीर-सागर में शयन करते हैं। इस बीच मांगलिक कार्यों को करना वर्जित हैं। वे आषाढ़ शुक्ल एकादशी को शयन करने चले जाते हैं तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को जगकर लोक पालन में लगते हैं। हरिशयनी एकादशी क्भ् जुलाई को तथा देवोत्थान एकादशी क्क् नवंबर को है।

दो माह बाद गूंजेगी शहनाई

खरमास बाद लग्न शुरू होने के पश्चात ख्9 अप्रैल को आखिरी बार शहनाई की आवाज सुनाई दी थी। इसके बाद गुरु व शुक्र के अस्त होने के चलते दो माह तक शादी-विवाह पर विराम लग गया था। अप्रैल में भी मा˜च् क्फ् दिन ही अच्छे मुहूर्त थे। जिसके चलते काफी कम संख्या में शादी-विवाह हुए।