- मीडियम क्लास फैमिलीज के लिए मुश्किल भरा है यह महीना

- मार्च क्लोजिंग से लेकर सेल्स टारगेट पूरा करने का है बड़ा प्रेशर

- टैक्स, होली की तैयारियों सहित स्कूल फीस ने बिगाड़ा है बजट

इंट्रो..

मार्च मेनिया ज्यादातर फैमिली पर हावी है. मेनिया इसलिए क्योंकि ये महीना दुश्वारियों से भरा है. गवर्नमेंट इम्प्लाइज, प्राइवेट सेक्टर इम्प्लाइज, बिजनेसमेन, स्टूडेंट्स, सबके लिए ये महीना इतने तरह के चैलेंजेज लेकर आया है कि पसीने छूट रहे हैं. होली का रंग अभी चढ़ा भी नहीं कि चेहरे की रंगत उड़ चुकी है. आप भी देखिये क्यों मुश्किल बड़ा ये मार्च है..

सिगरा के हिमांशु मिश्रा इसलिए परेशान हैं कि उनके 13 वर्षीय बेटे का एडमिशन प्राइवेट स्कूल में कराना है. एडमिशन का बजट लगभग दस हजार रुपये है. प्राइवेट जॉब करने वाले हिमांशु की सैलरी का आधा हिस्सा बच्चे की पढ़ाई और घर के खर्च में निकल गया है. होली का खर्चा अलग, अब पेशोपेश में है कि कैसे मार्च कटेगा. हिमांशु बताते हैं कि इस बार थर्ड वीक में होली पड़ने से पूरा बजट सिस्टम गड़बड़ा गया है. स्थिति यह आ गई है कि मित्र से कर्ज लेना पड़ रहा है.

टैक्स में कट गई सैलरी

फाइनेंशियली मार्च का महीना बहुतों के लिए भारी है. रेलवे में कार्यरत पांडेयपुर निवासनी सुष्मिता सिंह की दिक्कत यह है कि मार्च की सैलरी इनकम टैक्स में कट गई है. दो बच्चों का स्कूल में एडमिशन कराना, बस भाड़ा और बुक्स, स्टेशनरी आदि झंझावत भी झेलना है. होली का त्योहार भी है लेकिन इतने काम करने है कि होली जैसी उमंग नहीं दिख रही है. इस बार होली भी मार्च के अंत में पड़ गयी है, इसलिए घर का बजट भी गड़बड़ा गया है. बच्चों की शिक्षा भी जरूरी और होली पर कपड़े आदि तैयारियां भी जरूरी हैं. अकेले इस सिचुएशन से हम ही नहीं परेशान हैं बल्कि साथ काम करने वाले अन्य सहयोगी भी फेस कर रहे हैं.

सता रहा टारगेट

सैलरी के अलावा जॉब लेवल पर भी मार्च काफी मुश्किल भरा साबित हो रहा है. प्राइवेट कंपनी में मार्केटिंग सेल्स में काम करने वाले विजय चौहान की प्राब्लम यह है कि टारगेट पूरा नहीं हुआ है. टारगेट अचीव करने के लिए पूरा जोर लगा दिए हैं. होली का त्योहार उनके लिए अब उतना मायने नहीं रखा हुआ है जितना की जॉब बचाए रखना है. विजय चौहान का कहना है कि टेंशन यही है कि बस किसी तरह टारगेट पूरा हो जाए. टारगेट पूरा कराने के लिए सुबह घर से निकल जा रहे हैं तो रात में ही घर पहुंच रहे हैं. पहले होली मार्च फ‌र्स्ट वीक में पड़ जाती थी तो उतनी प्राब्लम नहीं होती थी. अब जहां जा रहे है वहां भी तो बस होली की तैयारियों में ही सब व्यस्त है. इसलिए टारगेट पूरा होने में भी अड़चन आ रही है.

नेताजी है कि घर छोड़ दिए

अन्नपूर्णा नगर कालोनी के एक नेता जी है, वह एक पार्टी संगठन से जुड़े हुए हैं. उनके कंधे पर लोस चुनाव की जिम्मेदारी सौंप दी गई है. बनारस सहित पूर्वाचल के कई जिले की कमान उनके कंधे पर है. लिहाजा वह चुनावी तैयारियों को मूर्त रूप देने को सप्ताह-सप्ताह भर घर से गायब ही रह रहे हैं. हालांकि टेंशन यह भी है कि घर-परिवार भी संभालना है, पत्‍‌नी से लेकर बेटे-बेटियों की डिमांड भी पूरी करनी है लेकिन पार्टी संगठन भी मजबूती से देखना है. नेताजी कहते हैं कि इस बार होली और चुनाव की डेट साथ-साथ आने से स्थिति थोड़ी असहज हो गई है. लखनऊ-नई दिल्ली का चक्कर लगाने में घर का भी काम नहीं हो पा रहा है.

कहानी घर-घर की

मार्च में किसी को क्लोजिंग तो किसी को टारगेट पूरा करने का टेंशन, किसी की सैलरी इनकम टैक्स में कट गई तो कोई बच्चों के एडमिशन व स्कूल फीस में तबाह है. मध्यमवर्गीय परिवार वालों के लिए बड़ी विकट समस्या यह है कि सैलरी तो मिली फ‌र्स्ट वीक में और थर्ड वीक में पड़े होली के त्योहार ने बजट भी गड़बड़ा दिया है. अधिकतर लोगों की सैलरी तो घर का बजट, बच्चों की फीस और माता-पिता के दवा खर्च संभालते हुए दूसरे सप्ताह में ही खत्म हो गया और होली की तैयारियों को माकूल बनाने में कर्ज थाम रहे हैं. ऐसे लोगों के मुंह से यही निकल रहा है कि यह मार्च बड़ा मुश्किल है.

मुश्किलों वाला महीना

- नौकरीपेशा लोगों में बहुतों की सैलरी से हुई है इनकम टैक्स की कटौती.

- ज्यादातर की सैलरी 15 मार्च तक हो चुकी है खत्म जबकि सिर पर है होली का त्योहार.

- बहुत पैरेंट्स का बजट बच्चे के एडमिशन में अच्छा खास खर्च होने से गड़बड़ा चुका है.

- मार्केटिंग फील्ड के लोगों के लिए इस मंथ है मार्च क्लोजिंग का प्रेशर.

- इसी महीने बिजनेस सेक्टर के लोगों के लिए है एनुअल क्लोजिंग का प्रेशर.

- बिजनेस वाले रोज के काम के प्रेशर में भी अपने सीए के यहां दौड़ लगाने को मजबूर.

- अभी अगले महीने बच्चों के नये सेशन के लिए यूनिफार्म, बुक्स, स्टेशनरी का भी है टेंशन.

- चुनाव के चलते बहुत से सरकारी अफसर और कर्मचारी हैं अलग तरह के प्रेशर में.

बेटे का एडमिशन और घर के बजट को संभालने में ही हालत खराब है. होली की तैयारियों की तो बस किसी तरह कोरमपूर्ति की जा रही है.

तनु शुक्ला, गृहणी

कंपनी की ओर से दिए गए टारगेट को पूरा करना ही टेंशन है. इस समय सिर्फ वहीं दिख रहा है, होली का त्योहार थोड़ी न अच्छा लग रहा है.

अमन श्रीवास्तव, महमूरगंज

इस पेशोपेश में हूं कि सैलरी तो सेकेंड वीक में ही खर्च हो गए, अभी तो पूरा होली बचा हुआ है. समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे त्योहार मने और घर संभले.

लाल बहादुर, सिगरा

मार्च से ही बच्चों का स्कूल फीस दो मंथ का एक साथ जमा करा लिया जाता है. ऊपर से होली का त्योहार और घर में किसी न किसी की तबियत भी खराब रहती है. जरूरत पूरा करने में ही दिन-रात लगा हूं.

पवन कुमार, लंका