- 40 से 45 रुपए प्रति किलो कीमत

- बेसन और नमकीन में मिलाई जाती है

- शरीर को अपंग भी कर सकती है खेसारी दाल

- छत्तीसगढ़ को छोड़ पूरे देश में बैन है

- कम बारिश वाले इलाकों में भी अच्छी पैदावार

- सस्ती खेसारी दाल की मिलावट कर रहे व्यापारी

- राजधानी ही नहीं, आसपास के गांवों में भी हो रही सप्लाई

LUCKNOW: प्रदेश में खेसारी दाल प्रतिबंधित है। लेकिन राजधानी में मुनाफे के फेर में इसे बेसन और नमकीन में जमकर यूज किया जा रहा है। लखनऊ की नमकीन बनाने वाली फैक्ट्रियों में इसे मिलावट के तौर पर उपयोग में लाया जा रहा है। यहां बनने वाली नमकीन शहर के साथ-साथ आसपास के गांवों में भी सप्लाई की जा रही है।

पकड़ी थी खेसारी दाल

गौरतलब है कि मंगलवार को फूड सेफ्टी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने सीतापुर रोड स्थित एक मिल का भंडाफोड़ किया था। जिसमें खेसारी दाल से बेसन बनाया जा रहा था। इस दौरान छापे में करीब 85 कुंतल खेसारी दाल और ढाई कुंतल बेसन भी जब्त किया गया था। जिसके बाद टीम ने बेसन, दाल और मक्के के आटे के नमूने सीज किए थे।

बहुत अधिक खपत

खेसारी दाल से बेसन बनने के खुलासे के बाद एफएसडीए अधिकारियों ने पड़ताल की तो पता चला कि लखनऊ में खेसारी दाल की खपत बहुत अधिक है। इससे सिर्फ बेसन ही नहीं बनाया जाता बल्कि नमकीन बनाकर लखनऊ ही नहीं आस पास के जिलों में भी बेचा जा रहा है। जबकि यह दाल काफी हानिकारक है। इसका खेल भी करोड़ों का है, जिससे अधिकारी भी नमकीन मार्केट में हाथ डालने से कतराते हैं। अधिकारियों के अनुसार अगर जांच की जाए तो बड़े ब्रांड वाली नमकीन में भी खेसारी की मिलावट पकड़ी जा सकती हैं।

पूरे देश में है बैन

अधिकारियों के मुताबिक खेसारी दाल छत्तीसगढ़ को छोड़कर पूरे देश में बैन है। इसकी सर्वाधिक पैदावार भी छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में होती है। इसके अलावा यह बिहार और पश्चिम बंगाल में भी पैदा की जाती है। अरहर दाल मार्केट में 80 रुपए प्रति किलो है और खेसारी दाल सिर्फ 40 से 45 रुपए में ही मिल जाती है। इस कारण इसकी मिलावट या प्रयोग से व्यापारियों को बहुत मुनाफा होता है।

अरहर से दोगुनी पैदावार

इसकी खासियत है कि यह बिना या कम बारिश वाले इलाकों में भी इसकी अच्छी पैदावार होती है। देखने में यह लगभग अरहर दाल की तरह होती है लेकिन पैदावार दोगुनी से अधिक होती है। चने की दाल और अरहर की दालों के साथ यह अपने आप पनप जाती है। देखने में अरहर दाल की तरह होने के कारण इसकी अरहर और चना की दालों में जमकर मिलावट होती है।

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शरीर में होती है अपंगता

डॉक्टर्स के अनुसार कई रिसर्च में इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि इस दाल के सेवन से लैथरिज्म नामक डिस्आर्डर होता है। जिसके कारण शरीर के निचले हिस्से में अपंगता होती है। इसका कारण दाल में मौजूद डी अमीनो प्रो पियोनिक एसिड है। इसी कारण 1961 में देश भर में सभी राज्यों ने इसे बैन कर दिया था। लेकिन फिर भी यह चोरी छिपे इस्तेमाल होती है।

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ऐसे पहचाने खेसारी दाल

मुख्य खाद्य सुरक्षा अधिकारी (सीएफएसओ) सुरेश कुमार मिश्रा ने बताया कि यह दाल अरहर की तुलना में थोड़ी चौकोर व चपटी दिखती है। यह एक तरफ से चपटी व दूसरी तरफ से उभरी होती है। रंग हल्का पीला होता है। जबकि मटर या अरहर की दाल गोलाकार दिखती है।

कोट

ये सप्लायर नमकीन बनाने वाली फैक्ट्रियों को इसे बेचता था। जो फैक्ट्री पकड़ी गई है वो बेसन भी बना रही है। हमने कुछ फैक्ट्रियों में जांच कर नमूने कलेक्ट किए हैं। रिपोर्ट आने पर आगे कार्रवाई होगी।

सुरेश मिश्रा, सीएफएसओ