- सख्त धूप और गर्मी के बाद भी मार्केट में छाई रौनक

- वहीं घरों में इबादत का सिलसिला भी जारी

GORAKHPUR: रमजानुल मुबारक का बा-बरकत महीना धीरे-धीरे रुखस्त हो रहा है. रोजेदारों की इबादत में कोई कमी नहीं है. मंगलवार को 22वां रोजा इबादत में बीता. इन सबके बीच ईद की खरीदारी जोर पकड़ चुकी है. दिन तो दिन बाजार रात-रात भर गुलजार रह रहे हैं. अमीर-गरीब सभी चाहते हैं ईद में कोई कमी न रह जाए, इसलिए लोग बाकायदा सामानों की लिस्ट बनाकर चल रहे हैं. लोग रोजा रखकर खरीदारी कर रहे है. दिन में गर्मी व धूप की वजह से रात में भीड़ ज्यादा उमड़ रही है. दिन में भी बाजार भरा रह रहा है. दर्जियों की दुकानें देर रात तक खुली रह रही हैं. शाहमारुफ, रेती में तो अमीनाबाद जैसा नजारा दिख रहा है.

रमजान की पहचान रोजा

एक तरफ जहां खरीदारी का सिलसिला जारी है, तो वहीं दूसरी ओर लोग अल्लाह के जिक्र और शुक्र में भी मशगूल हैं. नार्मल स्थित हजरत मुबारक खां शहीद मस्जिद में 22वें दर्स के दौरान मंगलवार को मुफ्ती मो. अजहर शम्सी ने कहा कि गालिबन सभी जानते हैं कि रमजान माह के ठीक बाद शव्वाल माह की पहली तारीख को ईद मनाई जाती है. रमजान की पहचान रोजा रखने और रोजों की पहचान अलसुबह से लेकर सूरज डूबने तक भूखा-प्यासा रहना माना जाता है. लेकिन रोजे रखने के पीछे का उद्देश्य हम जानेंगे तो पाएंगे कि यह सोशलिस्ट समाज के काफी करीब है. एक ऐसा समाज जो न सिर्फ इंसानियत की बात करता है, बल्कि उसके रास्ते में आने वाली मुश्किलों को प्रैक्टिकली खुद के ऊपर आजमाता है.

इबादत की तीसरी कड़ी बना रोजा

जकात अदा करने के पीछे का सही मकसद यह है कि आपकी दौलत पर आपके आसपास के उन तमाम लोगों का हक है, जो गरीब और बदहाल हैं. आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने दुनिया को अल्लाह की इबादत का संदेश देकर जहालत को दूर करने का पैगाम दिया. अल्लाह की इबादत की तीसरी कड़ी बना रोजा. दीन-ए-इस्लाम में होश संभालने से लेकर मरते दम तक अल्लाह के कानून और उसके हुक्मों के मुताबिक जिंदगी गुजारना इबादत है. जिस तरह हम रोजे में खाने-पीने और अन्य कामों से अल्लाह के हुक्म की वजह से रुके रहते हैं. इसी तरह हमारी पूरी जिंदगी अल्लाह के अहकाम के मुताबिक होनी चाहिए. हमारी रोजी रोटी और हमारा लिबास हलाल कमायी का हो. हमारी जिंदगी का तरीका पैगंबर-ए-आजम हजरत मोहम्मद साहब और सहाबा-ए-किराम वाला हो ताकि हमारी रूह हमारे जिस्म से इस हाल में जुदा हो कि हमें, हमारे वालिदैन और सारे इंसान व जिन्नात का पैदा करने वाला हमसे राजी व खुश हो.

रमजान में गुनाहों से बचते हैं इंसान

दारे फानी से दारे बका की तरफ कूच के वक्त अगर हमारा मौला हमसे राजी व खुश है तो इंशा अल्लाह हमेशा-हमेशा की कामयाबी हमारे लिए मुकद्दर होगी कि इसके बाद कभी भी नाकामी नहीं है. मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने कहा कि रमजान माह में हर इंसान हर तरह की बुराइयों व गुनाहों से खुद को बचाता है. रमजान की रातों में एक रात शब-ए-कद्र की कहलाती है. कुरआन में इसे हजारों महीनों से अफजल बताया गया है. रमजान के आखिरी अशरा की 21, 23, 25, 27 व 29वीं रातों को शब-ए-कद्र की रात बताया गया है. रोजा अल्लाह के हुक्म को मानने और अनुशासित जीवन जीने के लिए ट्रेन करना है.