प्यार से बात तलाक तक

वाकया 31 मई, 1995 का है, जैक्सन ने फरजाना (परिवर्तित नाम) से वैदिक रीति रिवाज से अग्नि के फेरे लगाते हुए जिंदगी भर साथ निभाने की कस्में खाईं. बांद्रा कोर्ट के पास एक मैरिज शॉप ने उनकी इस शादी को बॉम्बे रजिस्ट्रेशन ऑफ मैरेजज एक्ट के तहत रजिस्टर भी करवा दिया. तीन साल बाद दोनों के घर में एक बेटी की किलकारी भी गूंजी. 10 साल तक उन्होंने बड़े ही प्रेम से अपनी गृहस्थी की गाड़ी को आगे बढ़ाया लेकिन उनके जीवन में 13वें साल ने खटास पैदा करना शुरू कर दिया और 2008 में वे अलग रहने लगे और जैक्शन ने तलाक के लिये कोर्ट में अर्जी लगा दी.

तलाक तो मिला नहीं शादी भी हो गई गैर कानूनी

फैमिली कोर्ट ने 2008 में जैक्शन की तलाक की अर्जी खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि वह अलग धर्म मानने वाले हैं इसलिए उनकी शादी और तलाक पर फैसला नहीं किया जा सकता.

कानून की इज्जत तो दलाल के चक्कर में क्यों?

निचली अदालत के इस फैसले को जैक्शन ने हाई कोर्ट में चुनौती दी लेकिन यहां से भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी. जस्टिस पीबी मजूमदार ने अपने फैसले में उनकी शादी को ही गैर कानूनी करार दे दिया. उन्होंने कहा कि जब वर और वधू दोनों ही अलग-अलग धर्म को मानने वाले थे उन्होंने हिंदू मैरिज एक्ट के तहत कैसे विवाह कर लिया? यदि उनकी नजर में कानून की इतनी ही इज्जत है तो उन्हें कोर्ट से बाहर शादी और तलाक कराने वाले दलालों के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए था. ऐसे मामले में उन्हें स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करनी चाहिए थी.

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इंडियन मैरिज एक्ट्स

भारत में विभिन्न धर्म और मतों को मानने वाले लोग रहते हैं. यह विविधता यहां के विवाह कानून में भी देखने को मिलती है. धर्मों के अनुसार यहां विभिन्न मैरिज एक्ट हैं. शादी और तलाक के लिए सबकी अलग-अलग शर्तें हैं. इसके बावजूद एक मैरिज एक्ट ऐसा भी है जो किसी भी अलग'अलग धर्म को मानने वाले बालिग लड़के-लड़कियों को आपस में अपनी इच्छा से विवाह करने की कानूनी इजाजत देता है. इस एक्ट की सिर्फ एक ही बड़ी शर्त है कि वर-वधू ब्लड रिलेशन में नहीं होने चाहिए.

क्रिश्चन मैरिज एक्ट, 1872 : क्रिश्चन धर्म को मानने वाले साथ रहने के लिए स्वेच्छा से या आपसी सहमति से विवाह कर सकते हैं.

हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 : यह एक्ट हिंदू, बौद्ध, जैन और सिखों पर लागू होता है. इस एक्ट के तहत शादी करने के लिए वर-वधू दोनों का हिंदू होना जरूरी है. विवाह के समय वर की उम्र 21 और वधू की 18 वर्ष और दोनों अविवाहित या तलाकशुदा होने चाहिए.

मुस्लिम मैरिज एक्ट : मुस्लिम विवाह इंडियन मजोरिटी एक्ट, 1875 के तहत नहीं बल्कि मुस्लिम लॉ के तहत ही गवर्न होते हैं. इस एक्ट के तहत विवाह के लिए दोनों पक्ष का मुस्लिम होना जरूरी है. निकाह के लिए प्रपोजल और एक्सेप्टेंस जरूरी होता है. जिसे इजाब और कुबूल कहते हैं.

पारसी मैरिज एक्ट, 1936 : इस अधिनियम में ‘पारसी’ शब्द को ‘जरथ्रुष्टपंथी पारसी’ के रूप में डिफाइन किया गया है. जरथ्रुष्टपंथी वह होता है जो जरथ्रुष्ट धर्म को मानता है. यह नस्ल द्योतक है. इस अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक विवाह और तलाक को निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार पंजीकृत कराना आवश्यक है लेकिन इस प्रक्रिया का पालन न करने से विवाह गैर कानूनी नहीं होता. अधिनियम में केवल एकल विवाह की व्यवस्था है.

स्पेशल मैरिज एक्ट : विशेष विवाह अधिनियम, 1954 जम्मू-कश्मीर को छोड़कर शेष भारत में लागू है लेकिन यह देश के उन नागरिकों पर लागू होता है जो जम्मू-कश्मीर में रह रहे हैं. जिन व्यक्तियों पर यह अधिनियम लागू होता है, वे इस अधिनियम के तहत विनिर्दिष्ट तौर पर विवाह का पंजीकरण करवा सकते हैं, भले ही वे अलग-अलग धर्मों के मानने वाले क्यों न हों.

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