RANCHI : रिम्स में मरीजों की सहूलियत के लिए सैकड़ों ट्रालियां हैं, लेकिन मरम्मत के अभाव में ये 'दम' तोड़ रही हैं। ये ट्रालियां काफी पुरानी हो चुकी हैं, लेकिन न तो इसका मेंटनेंस हो रहा है और न ही नए ट्राली लाए जाने की कवायद हो रही है। ऐसे में इन ट्रालियों का इस्तेमाल करना मरीजों के लिए कहीं न कहीं पीड़ा का वजह बनती जा रही है। जब मरीज ट्राली पर बैठते हैं तो उन्हें बैलगाड़ी में बैठे होने का अहसास होता है। चाहे इमरजेंसी में आना-जाना हो या वार्ड में, ट्राली हिचकोले खाते हुए आगे बढ़ती है। ट्रालियों के कंपन व तेज आवास से मरीज की मुसीबतें और बढ़ जाती है।

गिरने का बना रहता है डर

रिम्स में 250 से ज्यादा ट्रालियां हैं, लेकिन ज्यादातर की कंडीशन खराब हो चुकी है। जैसे-तैसा ट्रालियों का इस्तेमाल मरीजों के लाने-ले जाने में हो रहा है। ये ट्रालियां किस कदर जर्जर हो चुकी हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसे चार कदम ले जाने में भी मरीजों का दम फूलने लगता है। इतना ही नहीं, मूवमेंट के दौरान ट्रालियां डगमगाती रहती है। ऐसे में मरीजों को हमेशा गिरने का डर सताता रहता है।

दिल के मरीज हो और हो जाएंगे बीमार

रिम्स की ट्रालियों का इस्तेमाल मरीजों से ज्यादा सामान ढोने के लिए किया जाता है। यही वजह है कि समय से पहले ही इन ट्रालियों की हालत जर्जर हो चुकी है। जब मरीज को ट्राली पर बैठाया जाता है तो इससे तेज आवाज निकलती रहती है। ऐसे में अगर दिल का कोई मरीज इन ट्रालियों का इस्तेमाल करता है तो इसकी आवाज से उसके और बीमार हो जाने की आशंका बढ़ जाती है।

ट्राली में नहीं है साइड सपोर्ट

मरीजों को लाने ले जाने के लिए ट्राली तो है लेकिन उसमें उनकी सुविधा का कोई ख्याल ही नहीं है। न ही ट्राली में मरीजों के लिए साइड सपोर्ट है। ऐसे में अगर गंभीर मरीजों के साथ कोई अटेंडेंट नहीं होता है तो उसके गिरने का डर लगा रहता है। वहीं बेचैन होने पर मरीजों को संभालना भी मुश्किल है।