सौभाग्य से मुझे कुछ ऐसे परिवार मिले जिनकी जुबान पर मायावती के अलावा कोई दूसरा नाम नहीं। खास बात यह भी है कि इनमें से ज्यादातर की रोजमर्रा की जिन्दगी आज भी वैसे ही है जैसे आज से दस साल पहले तक थी।

बात इलाहबाद और बनारस के बीचोबीच बसे तीन गांवों की। बसवापुर से लेकर औशानपुर तक के बीच की दूरी कुछ किलोमीटर ही है। लेकिन इसके बीचोबीच हैं कम से कम पांच बड़ी दलित बस्तियां।

मेवा लाल इस इलाके में पिछले 50 से भी ज़्यादा सालों से रह रहे हैं। लेकिन इनको ठीक से इतना तक याद नहीं कि कितने साल पहले अपनी झोंपड़ी से निकलकर कुछ किलोमीटर दूर हाइवे तक गए थे। इतना ज़रूर याद है कि पास का कुँआ सूख चुका है और परिवार के दूसरे सदस्य थोड़ी दूर जाते हैं पानी लेने।

बसपा की याद ताजा

लेकिन बसपा का नाम सुनते ही इनकी आँखें जगमगा उठती है। मैंने दो-टूक पूछा, जब गाँव में बिजली की लाइन के बाद भी बिजली नहीं, पीने का पानी पास में नहीं तो क्या इसकी जिम्मेदार बहुजन समाज पार्टी यानी बसपा है? मेवा लाल तपाक से बोल उठे, " मायावती तो हमार बिटिया है बाबू। वही रही जेमे सरकार चलावै का बल रहा."

जो मैंने देखा वो तो आपको बताता चलूँ। मेवा लाल के परिवार वाले इनकी देखभाल करते हैं और यह सभी चार से पांच झोपड़ियों के समूह में रहते रहे हैं। इनके घर में आज भी बर्तन के नाम पर मुश्किल से खरीदा गया हिन्डालियम का एक भगौना है जिसमें दाल भी पकती है और चावल भी।

मेवा लाल अपनी पूरी जिन्दगी मजदूरी करते रहे और इनसे बात करने पर पता चलता है कि अपने आस-पास के समाज में इनकी पूछ ज्यादा नहीं रही। लेकिन इनको इस बात की याद बखूबी है कि पास के गाँव के एक भले मानस ने इन्हें एक वॉकर यानी चलने के लिए सहारा देने वाली एक बड़ी सी छड़ी दिलवाई थी।

'हम खुस हैं साहब'

मेवा लाल को चलने में बेहद तकलीफ होती है। मुझे खुद इनके पैरों में एक्जिमा दिखा जो बुरी तरह फैल चुका था। एक चारपाई पर मेवा लाल को जाड़े के दिनों में बाहर बैठा दिया जाता है और दिन भर वे उसी पर रहते हैं।

जब परिवार वालों से मैंने पूछा कि इनको इस उम्र में किसी चिकित्सक की ज़रुरत है और सबसे करीब का डॉक्टर कितनी दूर है, तो जवाब मिला, "अब एक किलोमीटर ले जाने में दिक्कत होगी इनको." लेकिन परिवार वालों या खुद मेवा लाल को किसी से शिकायत नहीं है।

क्योंकि उनका मानना है कि मायावती जैसी नेता ने कम से कम दलितों के लिए एक उदाहरण तो पेश कर दिया है। जब इनको याद दिलाता हूँ कि मायावती अपने आप को दलितों का नेता बतातीं हैं तो मेवा लाल कहते हैं, " हम खुस हैं साहब"।

उनके इस जवाब के बाद मेरे पास एक भी सवाल नहीं बचा था क्योंकि मुझे एहसास हो चला था कि मेवा लाल इस बार भी अपनी नेता के पक्ष में मतदान कर सकते हैं।

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