- पीजीआई का ट्रॉमा बना सफेद हाथ और केजीएमयू के ट्रॉमा में नहीं बेड

- चिकित्सा शिक्षा शासन की लापरवाही से मरीज परेशान

- केजीएमयू के ट्रॉमा में स्ट्रेचर पर हो रहा इलाज

- गैलरी के बाहर तक भर्ती रहते हैं मरीज

LUCKNOW: चिकित्सा शिक्षा शासन की लापरवाही के कारण मरीज बेहाल हैं। संजय गांधी पीजीआई का ट्रॉमा सेंटर पिछले दो साल से सफेद हाथी की तरह बनकर खड़ा है। शासन उसे अब तक शुरू नहीं करा पाया। जिसके कारण रोजाना सैकड़ों मरीजों को बिना इलाज के ट्रॉमा से वापस करना पड़ रहा है। हालत यह है कि जितने मरीज केजीएमयू के ट्रॉमा में बेड पर भर्ती रहते हैं, उससे ज्यादा को स्ट्रेचर पर रखकर इलाज किया जा रहा है। वह भी तब जबकि इस हालत में एक-एक मिनट मरीजों की जान बचाने के लिए महत्वपूर्ण होता है।

वार्ड से बाहर स्ट्रेचर पर इलाज को मजबूर

शुक्रवार को मेडिसिन विभाग में वार्ड के सभी बेड फुल थे, रेजीडेंट डॉक्टर्स ने गैलरी में ही स्ट्रेचर पर मरीजों को भर्ती करना शुरू कर दिया। गैलरी में क्क् मरीज स्ट्रेचर पर थे। इसके बाद विभाग से बाहर भी 9 मरीज अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। बाराबंकी से फूड प्वॉयजनिंग के शिकार अंतिम सांसे गिन रहे भ्0 वर्षीय प्रकाश श्रीवास्तव के परिजन डॉक्टरों के सामने बेड के लिए गिड़गिड़ा रहे थे। लेकिन डॉक्टर मजबूर थे। चाहकर भी उन्हें एक बेड भी खाली करा कर नहीं दे पाए। क्योंकि सभी बेड पर अति गम्भीर मरीज थे। डॉक्टर्स के अनुसार रात में हालत और अधिक बुरी हो जाती है।

सर्जरी और न्यूरो सर्जरी में भी हालत खराब

शुक्रवार को मेडिसिन की तरह ही जनरल सर्जरी और न्यूरो सर्जरी का भी यही हाल था। जितने वार्डो में बेड थे उनसे ज्यादा मरीजों को स्ट्रेचर पर भर्ती कर इलाज किया जा रहा था। जनरल सर्जरी के रेजीडेंट्स के मुताबिक ख्ब् घंटे लगभग ऐसी ही स्थिति बनी हुई है। जिस समय कोई बड़ा एक्सीडेंट होता है और कई मरीज एक साथ आते हैं तो हालात बहुत खराब हो जाते हैं। क्योंकि सबकी जान बचानी होती है और हमारे पास बेड नहीं होते। हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते और फ‌र्स्ट एड देकर मरीजों को दूसरे अस्पताल ले जाने की सलाह देनी पड़ती है।

कम पड़ जाते हैं स्ट्रेचर

केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में लगभग ख्00 स्ट्रेचर हैं। आए दिन स्थिति यहां तक पहुंच रही है कि स्ट्रेचर भी खत्म हो जाते हैं। क्योंकि इनमें भी मरीजों को भर्ती कर दिया जाता है। जिसके कारण इमरजेंसी में गाड़ी से पेशेंट उतारकर लाने से पहले तीमारदारों को और ट्रॉमा के स्टाफ वार्डो में स्ट्रेचर ढूंड़ने में लगाया जाता है। स्ट्रेचर मिलता है उसके बाद ही मरीज को भर्ती कराने की गुंजाइश बनती है। कर्मचारियों की माने तो हाल ही में क्भ्0 स्ट्रेचर बढ़ाए गए लेकिन मरीजों की संख्या उससे ज्यादा बढ़ गई। जिसके कारण समस्या सुलझ नहीं रही है।

दर्जनों मरीज प्राइवेट में जाने को मजबूर

केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में आस पास के कई जिलों सहित नेपाल तक से मरीज अति गम्भीर अवस्था में इलाज के लिए पहुंचते हैं। केजीएमयू प्रशासन ने ट्रॉमा को आदेश दे रखा है कि किसी मरीज को वापस न किया जाए। लेकिन रेजीडेंट डॉक्टर्स के अनुसार जब हालात बेकाबू हो जाते हैं और उन्हें स्ट्रेचर पर भी इलाज की स्थिति में नहीं होते तब उन्हें दूसरे अस्पताल भेजना मजबूरी होती है। यहां कुछ इलाज हम कर नहीं पाएंगे और बाहर कुछ तो मिलेगा ही। इस हालत में मरीज की जान बचाने के लिए एक एक मिनट बहुत होते हैं लेकिन डॉक्टर इलाज नहीं दे पाते।

लापरवाही शासन की, भुगतें मरीज

यह हालत तभी सुधर सकती है जबकि शहर में दो और ट्रॉमा सेंटर शुरू कर दिए जाएं। कई साल पहले पीजीआई प्रशासन ने 9म् करोड़ रुपए से ख्00 बेड कर ट्रॉमा सेंटर का निर्माण करना शुरू किया था। पिछले दो साल से ज्यादा समय से यह बनकर तैयार खड़ा है। लेकिन चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण अब तक इसे शुय नहीं कराया जा सका है। जुलाई माह में प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा और पीजीआई के तत्कालीन निदेशक ने इसे शुरू करने के लिए एम्स ट्रॉमा सेंटर का दौरा भी किया था। उसी तर्ज पर उसे शुरू करने की बात हुई थी। लेकिन चार माह बाद भी अब तक इसे मरीजों के लिए शुरू करने की कोई पहल नहीं की गई। पीजीआई का ट्रॉमा सेंटर में सिर्फ क्भ्0 डॉक्टर्स और 800 पैरामेडिकल व अन्य स्टाफ की जरूरत है। लेकिन चिकित्सा शिक्षा शासन मरीजों के हित के लिए कदम नहीं उठा पा रहा है। जबकि इसके लिए उन्हें केवल हड्डी, डेंटल, मेडिसिन जैसे विभागों के ही डॉक्टर्स की भर्ती करनी और फैकल्टी पीजीआई में पहले से ही हैं।

मरीजों को वापस नहीं किया जाता है। उन्हें हर हाल में इलाज मिलता है। बेड फुल होने पर स्ट्रेचर में भर्ती करना पड़ता है। बेड और स्टाफ सीमित है, जबकि मरीजों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है।

- प्रो। एसएन शंखवार,

इंचार्ज, ट्रॉमा केजीएमयू