शासन की ओर से मिलेगा मरीजों को फ्री इलाज

वेस्ट यूपी के सभी मरीजों की होगी जांच

MEERUT : हेपेटाइटिस-सी के मरीजों को सरकारी लाभ देने के लिए अब मेडिकल कॉलेज को इसका हब बनाया जाएगा। नेशनल हेल्थ मिशन यानि एनएचएम अब हेपेटाइटिस सी के मरीजों का इलाज कराएगा। वेस्ट यूपी का एकमात्र सेंटर बनने जा रहे मेडिकल कॉलेज में इसके लिए लैब तैयार करने के निर्देश भी आ चुके हैं। मेरठ के अलावा बागपत, शामली, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, गाजियाबाद, हापुड़, बुलंदशहर और गौतमबुद्धनगर आदि जिलों के मरीजों को इसका लाभ मिल सकेगा। जल्द ही इसकी शुरुआत कर दी जाएगी।

 

स्टाफ को ट्रेनिंग

हेपेटाइटिस-सी के इलाज के लिए एनएचएम की ओर से मेडिकल कॉलेज की माइक्रबॉयलॉजी लैब में इक्यूपमेंट्स की व्यवस्था कराई जा रही है। वहीं कॉलेज के स्टाफ को इसके लिए अलग से ट्रेनिंग भी दी गई हैं। माइक्राबॉयोलॉजिस्ट डॉ। अमित गर्ग और डॉ। तुंगवीर आर्या को दिल्ली में स्पेशल वर्कशॉप के तहत इसके लिए ट्रेनिंग दी गई हैं। वहीं इंटरनेशनल एनजीओ की टीम भी इसमें कॉलेज स्टॉफ की मदद कर रही है।

 

प्राइवेट क्लीनिक होगा बंद

हेपेटाइटिस-सी का इलाज अभी तक जिला अस्पताल में चल रहे बेल्जियम बेस्ट एनजीओ 'डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर' कर रहा है। 25 जनवरी 2017 में ये शुरु किया गया था जबकि जुलाई 2019 में इसका कांट्रेक्ट खत्म हो रहा है। ऐसे में नए आ रहे मरीजों का इलाज यहां अटक गया है। एनजीओ की ओर से केवल पुराने रजिस्टर्ड मरीजों का ही इलाज चल रहा है। अभी तक यहां 22 सौ करीब मरीजों का इलाज किया जा चुका है। नए मरीजों की केवल स्क्रीनिंग की जा रही है। नया सेटअप तैयार होने के बाद ही इन मरीजों को इलाज दिया जाएगा।

 

ये है स्थिति

25 जनवरी 2017 को जिला अस्पताल में इंटरनेशनल एनजीओ क्लीनिक की शुरुआत हुई थी।

2200 मरीज अब तक हेपेटाइटिस-सी का करा चुके इलाज

800 मरीजों का इलाज जारी है।

4000 से अधिक मरीज वेटिंग में हैं।

3 डॉक्टर क्लीनिक में हैं।

3 नर्स शामिल हैं।

3 काउंसलर, 2 लैब टेक्नीशियन समेत 25 लोगों का स्टाफ है।

 

यह है हेपेटाइटिस-सी

हेपेटाइटिस-सी या काला पीलिया लीवर में सूजन को कहते हैं। जो हेपेटाइटिस-सी वायरस एचसीवी की वजह से होता है। यह अक्यूट और क्रोनिक दो तरह का होता है। इसके लक्षण आने में औसतन 4-12 हफ्ते का समय लग जाता है। अक्यूट हेपेटाइटिस-सी का इन्फेक्शन छह महीनों से कम समय तक रहता है। लेकिन अगर क्रोनिक हो तो इलाज लंबा चलता है। इससे लीवर कैंसर भी हो सकता है। यह संक्रमित खून से भी फैलता है। ऐसे मरीज जिनमें वायरस फैल जाता है उन्हें हेपेटाइटिस का मरीज माना जाता है। जबकि जिन मरीजों के ब्लड में हेपेटाइटिस सी का वायरस होता है लेकिन उनमें लक्षण नजर नहीं आते उन्हें इस बीमारी का कैरियर माना जाता है। इंफेक्टड ब्लड चढ़ाने पर ये तेजी से फैलती है।

 

इन्हें हैं ज्यादा खतरा

टैटू बनवाने पर

इंजेक्शन के जरिए ड्रग लेने पर

एक ही सुई से दोबारा इंजेक्शन लेने पर

डोनेट किए गए अनसेफ ब्लड से

डायलिसिस के मरीज

 

लक्षण

भूख कम लगना, थकान, पेट दर्द, पीलिया, अवसाद, खुजली और फ्लू आदि।

 

सावधानी

शराब बिल्कुल न पीएं

लिवर में वसा के इकट्ठे होने को नियंत्रित करें

पानी अधिक मात्रा में लें

जांचें नियमित कराते रहें

आराम करें और नींद पूरी लें

कच्चा या अधपका भोजन न करें

शक्कर और नमक की उच्च मात्रा वाले आहार न लें

 

इलाज की तैयारी पूरी हैं। सेटअप भी तैयार है। शासन की ओर से फाइनल होते ही योजना शुरु कर दी जाएगी। ट्रेनिंग आदि पूरी हो चुकी है।

डॉ। अमित गर्ग, हैड-माइक्रोबॉयालोजी विभाग, एलएलआर मेडिकल कॉलेज

 

सरकार कुछ महीने में इंटरनेशनल हेपेटाइटिस-सी क्लीनिक को टेकओवर करने की तैयारी में है। वेटिंग में चल रहे मरीजों का इलाज इसके बाद ही शुरु होगा।

डॉ। हेमंत, इंचार्ज, हेपेटाइटिस-सी क्लीनिक, जिला अस्पताल