- मेडिकल कॉलेज में मरीजों के लिए एक भी एंबुलेंस नहीं

- मेडिकल प्रशासन भी लेता है प्राइवेट एंबुलेंस का सहारा

- अस्पताल परिसर में खड़ी रहती हैं प्राइवेट एंबुलेंस

Meerut। अपनी तमाम असुविधाओं और कार्य प्रणाली के बदनाम मेडिकल कॉलेज का एक नया चेहरा सामने आया है। यहां चौंकाने वाला सच यह है कि तमाम सुख सुविधाओं और पेशेंट्स केयर का दम भरने वाले मेडिकल कॉलेज के पास अपनी एक भी एंबुलेंस नहीं है। नतीजा यह है कि 400 बेड़ वाला मेडिकल कॉलेज भाड़े की एंबुलेंस में सवार है।

क्या है मामला

दरअसल, एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज मेरठ ही नहीं, बल्कि वेस्ट यूपी का इकलौता मेडिकल कॉलेज है। ऐसे में कोई भी अप्रिय घटना होने पर मरीज को सीधा मेडिकल के लिए रेफर कर दिया जाता। लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि मेडिकल प्रशासन के पास मरीजों के लिए एक भी एंबुलेंस वैन नहीं है। आलम यह है कि मरीज को जरूरत पड़ने पर मेडिकल प्रशासन भाड़े की एंबुलेंस का जुगाड़ करता है।

सांठगांठ का खेल

मेडिकल कॉलेज में प्राइवेट एंबुलेंस के गोरखधंधे को यहां के स्टॉफ और प्रशासन की मौन अनुमति मिली है। असल में प्राइवेट हॉस्पिटल्स और मेडिकल प्रशासन के बीच के खेल का मामला किसी से छिपा नहीं है। इन मेडिकल एंबुलेंस के माध्यम से ही पूरा खेल परवान चढ़ता है। ये प्रशासन की सह पर जहां एंबुलेंस संचालक प्राइवेट हॉस्पिटल्स का मुनाफा बढ़ाते हैं, वहीं ये हॉस्पिटल संचालक भी मेडिकल प्रशासन का पूरा ध्यान रखते हैं।

दो वीआईपी मॉडल एंबुलेंस

2013-14 में मेडिकल कॉलेज को दो वीआईपी एंबुलेंस आवंटित की गई थीं। तीन करोड़ की कीमत से ये मॉडल वेंटीलेटर मोबाइल वैन मेडिकल प्रशासन ने वीआईपी के दौरे के लिए रिजर्व रखी है। वो बात अलग है कि पिछले तीन सालों इन वीआईपी एंबुलेंस का इस्तेमाल एक बार भी नहीं किया गया।

परिसर में खड़ी रहती हैं निजी वैन

जिन नियम कायदों की मेडिकल प्रशासन नजीर पेश करता है, वास्तव में वो रोजाना तार-तार होती है। आलम यह है कि मेडिकल परिसर और इमरजेंसी के आसपास एक नहीं बल्कि दरजनों निजी एंबुलेंस सीना ठोके खड़ी रहती है। जबकि मानकों के मुताबिक प्राइवेट एंबुलेंस तो दूर किसी निजी वाहन को भी परिसर में बिना अनुमति के खड़ा नहीं किया सकता।

ऐजेंट बनी प्राइवेट एंबुलेंस

इमरजेंसी के आसपास खड़े प्राइवेट एंबुलेंस चालक यहां वाले मरीजों से सहज ही घुलमिल जाते हैं। फिर उनकों सरकारी सुविधाओं की बेकद्री का हवाला देकर किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में जाने की सलाह देते हैं। इसके लिए ये एंबुलेंस चालक पेशेंट्स से भाड़ा तो वसूल करते ही हैं, साथ ही लगे बंधे हॉस्पिटल से 30 से 40 प्रतिशत तक कमीशन भी वसूल करते हैं।

इमरजेंसी नंबर जो नहीं उठता

आपातकालीन सूचना के लिए जन हित में मेडिकल इमरजेंसी को अलॉट किया गया यह नंबर 0121-2604977 है। इस नंबर पर कोई भी सूचना आने पर घटना स्थल के लिए एंबुलेंस रवाना कर दी जाती है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि इमरजेंसी में मौजूद यह नंबर या तो बंद रहता है, या फिर उठाया नहीं जाता।

सुविधा जो होनी चाहिए

मेडिकल इमरजेंसी में घटना की सूचना आने पर एंबुलेंस खुद मौके पर जाकर पेशेंट या पीडि़त को रिसीव करती है। जिसके बाद मरीज को इमरजेंसी में लाकर उसका उपचार किया जाता है। यही नहीं आपातकालीन परिस्थितियों में मेडिकल की ही एंबुलेंस पेशेंट को उसके घर छोड़ती है।

फैक्ट एंड फीगर

इमरजेंसी - 40 से 50

ऑर्थोपेडिक - 200 से 250

मेडिसन विभाग - 250 से 300

रेडियोलॉजी विभाग- 100 से 150

कैंसर विभाग- 40 से 60

गाइनोलॉजी विभाग- 150 से 200

चाइल्ड केयर - 120 से 150

कार्डियोलॉजी विभाग- 200 से 250

न्यूरोलॉजी विभाग- 80 से 100

मेडिकल में कुल मरीज - 1500 से 2000

जनपद सरकारी एंबुलेंस की संख्या

108 -25 (समाजवादी एंबुलेंस)

102-38 (जननी सुरक्षा योजना)

नोट: ये गाडि़यां शासन की ओर से जीवीके फाउंडेशन कंपनी द्वारा संचालित हैं।

बॉक्स

सीएचसी -12

पीएचसी - 31

ये भी हैं मानक -

मानकों के अनुसार जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज के अलावा जनपद की सभी सीएचसी और पीएचसी में एक एंबुलेंस का होना आवश्यक है। ये वो ही एंबुलेंस हैं, जिनसे पूरा देहात क्षेत्र कवर होता है।

एंबुलेंस के लिए कई बार डिमांड लेटर शासन को भेजा गया है। मेडिकल में एंबुलेंस का बड़ा अभाव है। वीआईपी एंबुलेंस वैन को आरक्षित रखा गया है।

-विभु साहनी, सीएमएस मेडिकल कॉलेज