-ब्लड सैंपल कलेक्ट करने के बाद अगले दिन बायो मेडिकल वेस्ट कक्ष के पास जलाया जाता है
-हॉस्पिटल के वार्ड में ब्लैक डस्टबिन के अलावा नहीं दिखाई देती है दूसरे कलर की डस्टबिन
-12 वार्ड हॉस्पिटल में हैं
-2000-2200 मरीज डेली ओपीडी
-200 मरीज हॉस्पिटल में एडमिट
-200-250 ब्लड सैंपल की होती है प्रतिदिन जांच
BAREILLY :
सीएमओ और सीएमएस की नाक के नीचे डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में खतरनाक बायो वेस्ट को खुलेआम जलाया जा रहा है। इस बायो मेडिकल वेस्ट में ब्लड लगी गॉज, सिरिंज और ब्लड सैंपल के इस्तेमाल किए हुए वायल भी जले और कुछ अधजले पड़े रहते हैं। यह काम कोई और नहीं बल्कि हॉस्पिटल कर्मचारी ही कर रहे हैं। हॉस्पिटल में ही ब्लड सैंपल के वायल जलाए जाने से मरीजों के साथ ही तीमारदारों को भी संक्रमण का खतरा रहता है, लेकिन जिम्मेदार अफसर इससे अनजान बने हुए हैं।
डेली लिए जाते हैं 250 सैंपल
डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में रोजाना 200-250 मरीजों के ब्लड सैंपल लिए जाते हैं। इसमें साधारण मरीजों के साथ ही एचआईवी, मलेरिया और अन्य संक्रामक बीमारियों के भी मरीजों के ब्लड सैंपल होते हैं। टेस्ट के बाद ब्लड सैंपल के वायल को इमरजेंसी वार्ड के पीछे बायो मेडिकल वेस्ट रूम के पास डालकर जला दिया जाता है, लेकिन बड़ी संख्या में वायल जलने से रह जाते हैं जो वहीं पड़े रहते हैं। इससे इमरजेंसी वार्ड और हॉस्पिटल के अन्य वार्डो में भर्ती मरीजों को संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है।
सेंसिटिव एरिया में जलाया जा रहा कूड़ा
डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में जहां पर बायोमेडिकल वेस्ट जलाया जा रहा है वह सुरक्षा की दृष्टि से काफी सेंसिटिव है। क्योंकि जिस जगह पर बायो मेडिकल वेस्ट जलाया जाता है उसके ठीक आगे बिल्िडग में ओटी, 6 बेड का पोस्ट ऑपरेटिव वार्ड और सर्जरी वार्ड भी है। ऑपरेशन के बाद मरीज को पोस्ट ऑपरेटिव वार्ड में एडमिट किया जाता है। ऐसे मरीजों को इंफेक्शन का ज्यादा खतरा रहता है।
तीमारदारों काे भी खतरा
इमरजेंसी के पास नई बिल्डिंग में ओटी, सर्जरी और पोस्ट ऑपरेटिव वार्ड में एडमिट मरीजों के तीमारदार भी वहीं आसपास बैठकर खाना खाते हैं। पास में ही बायो मेडिकल बेस्ट जलाए जाने से इन तीमारदारों को भी संक्रमण का खतरा बना रहता है।
सभी वार्ड में दिखी ब्लैक डस्टबिन
डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में करीब दर्जन भर वार्ड हैं। सभी वार्डो में पीला, लाल, काला और नीला रंग का पॉलीथिन लगी डस्टबिन होनी चाहिए, लेकिन सभी वार्डो में केवल ब्लैक कलर की ही डस्टबिन मौजूद दिखी। वहीं जब किसी अफसर का मुआयना होने पर हॉस्पिटल में सभी डस्टबिन दिखाई देने लगती हैं। लेकिन उसके बाद गायब कर दी जाती हैं।
आवारा कुत्तों का भी रहता है आतंक
हॉस्पिटल परिसर में सुबह से लेकर शाम तक आवारा कुत्तों का आतंक रहता है। वह इमरजेंसी से लेकर ओपीडी में भी घूमते रहते हैं। हॉस्पिटल में कुत्तों के आने की बड़ी वजह भी परिसर में बायो मेडिकल वेस्ट का फेंका जाना है, लेकिन इन आवारा कुत्तों को रोकने के लिए हॉस्पिटल के पास कोई व्यवस्था नहीं है।
सेग्रीगेशन
इस प्रक्रिया में अलग अलग अपशिष्ट पदाथरें को अलग रंगों के डस्टबिन में डाला जाता है। जिससे सबका अलग तरह से निस्तारण्ा होता है।
पीला डस्टबिन: इसमें सर्जरी में कटे हुए शरीर के भाग, लैब के सैम्पल, खून से युक्त मेडिकल की सामग्री, रुई, पट्टी डाले जाते हैं।
लाल डस्टबिन: इसमें दस्ताने कैथेटर, आईवी सेट, कल्चर प्लेट को डाला जाता है।
नीला या सफ़ेद बैग: इसमें गत्ते के डिब्बे, प्लास्टिक के बैग जिनमे सुई, कांच के टुकड़े या चाकू रखा गया हो उनको डाला जाता है। ।
काला डस्टबिन: इनमें हानिकारक और बेकार दवाइयां, कीटनाशक पदार्थ और जली हुई राख डाली जाती है।
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बायो मेडिकल रूम के पास ब्लड सैंपल और बायो मेडिकल वेस्ट डेली जलाया जा रहा है। इस बात की जानकारी मुझे नहीं है। हॉस्पिटल की मैनेजर ही इस बारे में कुछ बता सकती हैं।
केएस गुप्ता, सीएमएस डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल
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हॉस्पिटल में बायो मेडिकल रूम के पास पेड़ के पत्ते और कूड़ा जलाया जा रहा होगा। बायो मेडिकल वेस्ट जलाए जाने की जानकारी मुझे नहीं है। अगर बायो मेडिकल वेस्ट जलाया जा रहा है तो गंभीर मामला है, कार्रवाई की जाएगी।
डॉ। पूजा, मैनेजर डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल