10 परसेंट दवा ही available

पिछले ढाई महीने में डीपीसीओ के तहत पांच चरणों में 403 दवाओं के सॉल्ट के दामों में कमी की गई है। लेकिन इन दवाओं में से महज 10 परसेंट ही नई रेट लिस्ट के तहत मार्केट में अवेलेबल हैं। सिटी की केमिस्ट एसोसिएशन के जिम्मेदारों ने बताया कि कम प्राइस वाली दवाओं का उन्हें भी इंतजार है। फिलहाल कई कंपनियां पुरानी दवाओं पर ही कम दाम के स्टीकर लगा कर मार्केट में भेज रही हैं।

मजबूरी भी एक वजह

नई दवाओं के न आने का एक अहम कारण मेडिसिंस का कंपनियों को न लौटाया जाना भी है। डीपीसीओ के तहत दवाओं की कम प्राइसिंग वाली लिस्ट जारी होने के बाद तमाम मेडिकल स्टोर्स को वे दवाएं स्टॉकिस्ट को भेजनी थीं, लेकिन ज्यादातर दवाओं के डिमांड में होने के चलते दवाएं वापस नहीं भेजी जा सकीं। इन दवाओं को लौटाने से एक महीने तक मार्केट में क्राइसिस हो सकती है। ऐसे में कंपनीज नई दवाओं के प्रोडक्शन के साथ ही रीप्राइसिंग कर मार्केट में भेज रही है।

5 साल पहले घटने थे दाम

फार्मा एक्सपट्र्स के अकॉर्डिंग नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी को दवाओं के प्रोडक्शन में यूज होने वाले रॉ मैटीरियल, दवाओं की पैकेजिंग, प्रोडक्शन कॉस्ट और टैक्स के टोटल खर्चों का हिसाब पता करने का जिम्मा सौंपा गया। मकसद फार्मा कंपनियों को होने वाले प्रॉफिट का मार्जिन जानना था। इसके बाद करीब 348 सॉल्ट की लिस्ट बनाई गई जिनके दाम में कमी का प्रपोजल तैयार किया गया। लेकिन फाइल के पीएम ऑफिस तक पहुंचने में पांच साल लग गए।

तो और कम होते दाम

फार्मा एक्सपर्ट्स बताते हैं कि फार्मा कंपनियों ने सॉल्ट के रेट में कमी करने का अनोखा तरीका सुझाया। इसमें पर्टिकुलर सॉल्ट बनाने वाली सभी लीडिंग कंपनियां, जिनकी मार्केट में हिस्सेदारी 1 परसेंट से ज्यादा थी, उनके दामों का एवरेज निकाल कर नई प्राइस तय करने पर सहमति बनी। इससे लिस्ट में शामिल मेडिसिन सॉल्ट की कीमत में जहां 300 परसेंट तक कमी आ सकती थी, वो महज 50 परसेंट पर ही आकर रुक गई।