RANCHI: सिटी की दवा दुकानों में जिंदगी बचाने वाली दवाओं के साथ ही युवाओं को नशे में धुत्त करने वाली दवाइयां भी बिक रही हैं। इनपर कंट्रोल करने के लिए राज्य सरकार ने कई तरह के प्रावधान लागू किए हुए हैं, लेकिन इनका पालन नहीं किया जा रहा है। खुलेआम धड़ल्ले से युवाओं को चंद रुपए के लालच में दवा दुकानों से नीले-पीले रंग की दवाइयां बेची जा रही हैं, जिनका सेवन करने वाले लड़के घंटों नशे में धुत्त रहते हैं। इस नशे में रहने के दौरान ये युवा बड़े से बड़े अपराध को अंजाम दे रहे हैं।

बिना प्रिस्क्रिप्शन नहीं बेचनी दवा

दरअसल नींद के लिए प्रयुक्त होने वाली इन दवाओं का इस्तेमाल ही नशेड़ी लोग नशे के लिए करते हैं। स्वास्थ्य विभाग का स्पष्ट निर्देश है कि इस तरह की दवाओं को बिना डाक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के नहीं बेचा जाए, लेकिन कुछ दवा दुकान के संचालकों द्वारा इस नियम का लगातार उल्लंघन किया जा रहा है।

विभाग में मैनपावर की कमी, उठा रहे लाभ

नियमानुसार इस तरह की दवाई की बिक्री के बाद स्टॉक रिकार्ड के साथ प्रिस्क्रिप्शन समर्पित करना अनिवार्य है, लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा। राज्य भर में करीब 17 हजार दुकानें हैं, जबकि मात्र 30 ड्रग कंट्रोलर हैं, वहीं सिटी में केवल 6 ड्रग कंट्रोलर हैं जिसका लाभ इस तरह के दवा दुकानदारों को अनैतिक कार्य करने के लिए मिल रहा है।

इनके सेवन में सावधानी जरूरी

नींद की दवाइयों में शुमार सभी दवाओं के अतिरिक्त सेवन से जबरदस्त नशा हो जाता है। इनमें प्रमुख रूप से एन-10, एलप्रेक्स, ट्राइका, स्पैशमो प्रोक्सिवैन, एलजोलम, सीजेड पैम, कोरेक्स, फैंसी डील समेत कोडीन केमिकल मिला कोई भी सिरप नशा का माध्यम हो सकता है।

नींद की दवा की लत, बढ़ी परेशानी

केस -1

मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत लालपुर चौक निवासी रविकुमार को रात में नींद नहीं आती थी। दिनभर के स्ट्रेस से बचने और रात में जल्दी सोने के लिए उसने नींद की दवाईयां लेनी शुरू कर दीं। धीरे धीरे उसे इन दवाओं की ऐसी लत लगी कि अब वह 24 घंटे नशे में धुत्त रहने लगा। हालात खराब हो गए। इसके बाद परिजन उसे लेकर कांके मानसिक आरोग्यशाला गए, जहां उसका ईलाज किया जा रहा है। वह परिजनों के साथ तो है पर प्रतिदिन दवाइयों के सहारे ही उसकी जिंदगी बची है।

नहीं छूट रहीं नींद की दवा की लत

केस 2

जमशेदपुर की यामिनी (बदला हुआ नाम) को माडलिंग में कैरियर तलाशना था। वह काफी शो में भी पार्टसिपेट कर चुकी है। इसी दौरान साथियों के साथ पहले शराब-सिगरेट, फिर मैरिजुआना की लत लगी। धीरे-धीरे करियर के चढ़ाव में तकलीफें शुरू हुईं, जिसके बाद 24 घंटे नशे की जरूरत पड़ने लगी। परिजनों को आशंका हुई तो घर में ही रहने को बाध्य किया गया। घर में पड़ी मां-बाप की नींद की दवाईयों पर हाथ डाला और उसकी ऐसी आदत लगीं कि छोड़े नहीं छूट रही। इलाजरत हैं।

वर्जन

इस तरह के केस में पुलिस का रोल तभी होता है, जब स्वास्थ्य विभाग की तरफ से शिकायत मिले या पीडि़त व्यक्ति संबंधित फर्म के खिलाफ शिकायत करे। वैसे पुलिस लगातार इन दवा दुकान वालों की बैठक कर इन्हें चेतावनी देती है कि इस तरह बिना प्रिस्क्रिप्शन की दवाइयां नहीं बेचे।

-अनीश गुप्ता, एसएसपी, रांची

स्वास्थ्य विभाग द्वारा समय-समय पर अभियान चलाकर इन मामलों में धर-पकड़ की जाती है। इसके अलावा यदि कहीं से शिकायत मिलती है तो उसपर भी कड़ी कार्रवाई की जाती है। हमारी अपील है कि लोग भी जागरूक हों और इस तरह के मामलों की जानकारी विभाग को दें।

ऋतु सहाय, ड्रग कंट्रोलर