इस यूनीक एंड इनोवेटिव डिजाइन को तैयार करने में डॉ। उदय को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। आखिर इस नई डिजाइन की खासियत क्या है? इसका कोई मतलब भी है कि नहीं? कितना मुश्किल था यह करना? आई नेक्स्ट के कुछ ऐसे ही सवालों के काफी इंटरेस्टिंग जवाब दिए डॉ। उदय ने। चलिए आपको बताते हैं।

रुपए का नया सिम्बल डिजाइन करना कितना मुश्किल काम था?

आसान नहीं था। काफी समय तक तो समझ में ही नहीं आया कि शुरुआत कहां से करूं। कई बातों का ध्यान भी रखना था। जैसे सिम्बल का डिजाइन कैसा हो। साइज का मेजरमेंट कितने बाई कितने का रखना है। दूसरे देशों के करेंसी सिम्बल से किसी मायने में कमतर न हो और इंडियन इंडीविजुअल्टी का पुट भी रहे।

फाइनल डिजाइन तैयार करने में कितना वक्त लगा?

सबकुछ फाइनलाइज करते-करते करीब दो महीने लग गए। इस बीच काफी रिसर्च की। कनिष्क और गुप्त पीरियड को खूब स्टडी किया। क्योंकि नए के साथ पौराणिकता का भी समावेश रखना था। उस जमाने की करेंसी और उसकी खासियत भी जानी। दिन-रात सिस्टम (कम्प्यूटर) पर नई-नई डिजाइन बनाता रहता था।

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फिर आगे क्या हुआ?

कुछ नहीं, डिजाइन तैयार करते-करते आखिर फाइनल डिजाइन बना ही डाली। तब भी मैं बहुत श्योर नहीं था कि गवर्नमेंट ऑफ इंडिया इस डिजाइन को फाइनलाइज करेगी। फाइनल राउंड में मुझे मिलाकर कुल पांच एंट्रीज और थीं। इनमें चार और डिजाइन्स थीं। मैंने उन चारों डिजाइन्स को देखा था।

सुना है डिजाइन फाइनलाइजेशन से पहले कोई इंटरव्यू भी हुआ था?

(हंसते हुए) हां, बिल्कुल। हालांकि, मुझे मेरे डिजाइन और कॉन्सेप्ट का बैकग्राउंड काफी क्लियर था। जब बोर्ड मेम्बर्स ने क्वेश्चन्स पूछने शुरू किए तो मैंने उन्हें सबकुछ डीटेल में डिस्क्राइब किया। कॉम्पटीशन में मेरे अलावा चार और कैंडीडेट्स भी थे। इसलिए सारे जवाब संभलकर सधे हुए शब्दों में दिए। खुशनसीबी यह रही कि इंटरव्यू पैनल मेरे ऑन्सर्स से सेटिस्फाइड रहा और फाइनली मेरा डिजाइन ही फाइनलाइज हुआ।

हमारे रीडर भी जानना चाहेंगे कि ‘रुपए’ की इस नई डिजाइन की खासियत क्या-क्या हैं?

सबसे पहला तो रुपए का उच्चारण। हिंदी और इंग्लिश दोनों ही भाषाओं में रुपए की शुरुआत ‘आर’ लेटर (रुपीज और रुपया) से होती है। मैंने भी ‘आर’ लेटर को ही अपने डिजाइन का बेस बनाया। दूसरा, ‘र’ शब्द पर ऊपर से खींची गई दो लकीरें। पहली लकीर केसरिया रंग, बीच वाला हिस्सा सफेद और दूसरी लकीर हरे रंग की है। इन सबका कॉम्बिनेशन इंडियन फ्लैग का लुक देते हैं। तीसरा, इन दोनों लकीरों से इक्वल यानि बराबर का साइन रिफ्लेक्ट है। चौथा, ये स्टेबल और बैलेंस इकॉनमी को भी दर्शाता है।

ऐसी भी अफवाह उड़ी कि इस तरह की डिजाइन कम्प्यूटर के आइकन्स से कॉपी की गई है?

अच्छा, मुझे तो मालूम नहीं था, न ही मैंने इस पर कभी गौर किया। आज आपसे ही पहली बार सुन रहा हूं। जहां तक मेरी डिजाइन का सवाल है। वो एकदम नई है। कहीं से कोई कॉपी नहीं की गई है।

 

‘डिजाइन’ एक्सेप्ट होने के बाद आप तो हिस्ट्री मेकर बन गए?

नहीं ऐसा नहीं है। मैंने तो बस अपना बेस्ट दिया। हां, जब मेरे डिजाइन के सेलेक्शन की जानकारी हुई तो बहुत खुशी हुई और यह हमेशा ही रहेगी। इसके अलावा मैंने आईआईटी हैदराबाद और असम रोडवेज ट्रांसपोर्ट का लोगो भी डिजाइन किया। अब किस डिजाइन पर रिसर्च कर रहे हैं? इसके जवाब में डॉ। उदय बताते हैं कि अभी तो टीचिंग पर ही फोकस कर रहा हूं।

इस जीत पर कोई अवॉर्ड भी मिला था?

हां, गवर्नमेंट की ओर से 2.5 लाख रुपए का प्राइज मिला था। टैक्स वगैरह कटने के बाद हाथ में करीब 2.17 लाख रुपए आए। एक एनजीओ है, प्रज्जवला। मैंने ये पैसा उसी को दे दिया. 

अपने बारे में कुछ बताएं और फ्यूचर में क्या प्लानिंग्स हैं?

मैं चेन्नई से बिलॉन्ग करता हूं। आईआईटी गुवाहाटी में असिस्टेंट प्रोफेसर हूं। स्पोट्र्स एक्टिविटीज मुझे बेहद पसंद हैं। वॉलीबॉल मेरा फेवरेट गेम है। फ्यूचर प्लानिंग के बारे में तो कुछ सोचा नहीं है।