कीमत यूं बढ़ती है

सिटी के अलग-अलग इलाकों में करीब 50 सब्जी मंडी लगती हैं। ये वही सब्जी मंडियां हैं, जहां से आप रोजाना सब्जी खरीदते हैं। सिटी में ठेल या फिर गली-मोहल्लों में फेरी लगाकर बेचने वालों की संख्या का कोई आंकड़ा नहीं है, मगर सूत्रों के मुताबिक करीब तीन सौ ठेल और फेरी वाले सब्जी मोहल्ले-मोहल्ले जाकर बेचते हैं। किसानों से खरीद के रेट और आप तक पहुंचने के बीच इसके दोगुने होने के कई राज हैं। मुनाफाखोर आढ़ती ही नहीं, महंगी सब्जियों के लिए और भी तमाम खिलाड़ी हैं जो इसे बढ़ा रहे हैं। आपको महंगे दामों पर सब्जी खरीदने के लिए मजबूर करते हैं। तहबाजारी और पुलिस की वसूली से लेकर रंगदारी भी इन कीमतों को बढ़ा रही है।

बस पैसा चाहिए

खेरिया मोड़ पर सड़क किनारे दोपहर होते ही सब्जी वालों की ठेल और दुकानें सज जाती हैं। यह नगर निगम की ओर से कोई घोषित मंडी नहीं है। लेकिन, दो सौ से ज्यादा सब्जी बेचने वाले यहां जुटते हैं। इसमें खैरागढ़ और आसपास के किसान भी शामिल हैं। साथ ही मंडी से सब्जी खरीदने वाले भी। यहां से नियमित तौर पर वसूली होती है। दस से बीच रुपए वसूलने के बाद इसकी कोई रसीद भी सब्जी बेचने वालों को नहीं दी जाती। नगर निगम ने दो साल पहले ही तहबाजारी खत्म कर दी है। लेकिन, यह बदस्तूर वसूली जा रही है। सिटी के रामबाग, दयालबाग, बेलनगंज, खेरिया मोड़, बल्केश्वर, छीपी टोला आदि सब्जी मंडी में शाम होते ही वसूली शुरू हो जाती है।

वर्दी का भी रौब

थोक मंडी से बाजार भाव के दोगुने होने के राज को जानने की कोशिश में आई नेक्स्ट टीम को पुलिस की वसूली का रहस्य भी खुलकर सामने आया। खैरागढ़ मोड़ की सब्जी मंडी पर सब्जी बेचने वाले व्यक्ति के मुताबिक किसी और समय पुलिस यहां नजर आए या न आए। लेकिन, रोड जाम होने की बात कहते हुए पैसे वसूलने जरूर आती है। उसका कहना यह भी है कि पेट पालना है तो इन्हें भी देना पड़ता है। पैसे के साथ थैला भरकर सब्जी भी वे ले जाते हैं।

बगैर पैसा नो एंट्री

ठेल पर सब्जी सजाकर गली-गली और कॉलोनी-कॉलोनी वालों से भी जब इतनी महंगी सब्जी बेचने का सवाल किया गया तो उसका जवाब चौंकाने वाला था। उसके मुताबिक कॉलोनी में फेरी लगाते हुए कब-कहां और कौन टकरा जाए कुछ पता नहीं। पुलिस वाले भी मिल जाते हैं, इलाके के दबंग भी उनसे रकम ऐंठ लेते हैं। यहां तक गेट बंद कॉलोनी के अंदर एंट्री करने के लिए सिक्योरिटी गार्ड को भी चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है। दिन भर में चार सौ रुपए लगाकर घर चलाने  का गणित लगाते हैं तो उसमें से सौ रुपए एक झटके में चले जाते हैं।

क्या करें मजबूरी है?

सुबह-सुबह थोक मंडी से खरीदी गई सब्जी की कीमत आप के पास तक पहुंचते-पहुंचते दोगुने भाव की हो जाती है। बाजार में काबिज आढ़तियों से बढ़ी कीमत के बाद मंडी का भाव और फिर ठेल पर पहुंंचने के बीच के खेल से सभी का दर्द एक समान है। आप महंगी सब्जी खरीदने को मजबूर हैं तो इन्हें बेचने वाले दोगुना दाम करने को। आप की मजबूरी खाने की थाली सजाने की है तो सब्जी बेचने वालों की अपने परिवार का पेट पालने की। दयालबाग सब्जी मंडी में सब्जी बेचने वाले का कहना था कि थोक मंडी से खरीदने के बाद तहबाजारी के नाम पर वसूली, रंगदारी और पुलिस के चढ़ावे के बाद सब्जी महंगी न बेचें तो फिर क्या करें? सवाल उसका भी वाजिब था। तभी एक उसे सटाकर ठेल लगाने वाले जितेंद्र बोल उठा कि लोग भी तो सब्जी छांटकर लेते हैं। मंडी में तो एक तोल में मिलती है, अब खराब सब्जी की भी कीमत तो लोगों की ही जेब से निकलेगी।