RANCHI : झारखंड में एनजीओ की जांच के नाम पर अजब-गजब खेल चल रहा है। एक एनजीओ के मेंबर्स दूसरे एनजीओ के क्रियाकलापों की जांच कर रहे हैं। ऐसा ही मामला सामने आया है। बोकारो जिले के बाल सखा एनजीओ के मेंबर पीयूष भूषण और बचपन बचाओ आंदोलन के ब्रजेश मिश्रा को एनजीओ को शेल्टर होम की जांच का जिम्मा सौंपा गया है। लेकिन, खास बात है कि इन्हें जांच करने के लिए न तो नोटिफिकेशन ही हुआ है और न ही कोई आदेश जारी किया गया है। ऐसे में किस हैसियत से ये दूसरे एनजीओ की जांच कर रहे हैं इसपर सवाल उठ रहे हैं।

क्या है मामला

मिशनरीज ऑफ चैरिटी से जुड़े निर्मल ह्दय से बच्चे बेचे जाने का मामला सामने आने के बाद सरकार ने सभी शेल्टर होम व नारी निकेतन समेत संबंधित संस्थाओं के जांच कराने का फैसला किया है। इस बाबत महिला विकास व बाल कल्याण विभाग, झारखंड राज्य बाल संरक्षण आयोग और बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के स्तर पर जांच कराई जा रही है।

जांच को लेकर भी उठ रहे हैं कई सवाल

राज्य में कई एनजीओ के खिलाफ चल रही जांच को लेकर कई सवाल भी उठ रहे हैं। कुछ एनजीओ संचालकों ने कहा कि राज्य में ऐसे कई एनजीओ हैं जिसे बाल, महिला कल्याण विभाग द्वारा पांच-पांच लाइसेंस दिए गए हैं। इन्हें लाखों-करोड़ों का फंड दिया जा रहा है। लेकिन, इनके खिलाफ बाल संरक्षण आयोग और सीडब्ल्यूसी जांच क्यों नहीं कर रही है। भुसूर में चल रहे आशा किरण को राज्य सरकार ने 18 लाख का फंड दिया है। आशा किरण को अन्य जगहों से भी फंड मिलता है। ऐसे में उन संस्थाओं की जांच होनी चाहिए।

हाईकोर्ट जाएंगें एनजीओ संचालक

एनजीओ संचालकों का कहना है कि जांच के नाम पर उन्हें परेशान किया जा रहा है। इस संबंध में एनजीओ संचालक 17 अगस्त को मीटिंग करेंगें और जरूरत पड़ने पर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। उन्होंने कहा कि सिर्फ प्रोफाइल के आधार पर एनजीओ का रजिस्ट्रेशन रद करना गलत है।