- यूनिसेफ द्वारा किए गए अध्ययन में सामने आई यह बात

PATNA : किशोरियों और महिलाओं में माहवारी और इससे जुडे़ अन्य विषयों के बारे में जानकारी का अभाव है और एक ऐसी मानसिकता बन चुकी है, जिसके कारण किशोरियां और महिलाएं माहवारी के बारे में बात भी नहीं करना चाहती हैं। उनके बीच मासिक धर्म को लेकर गलत प्रथाएं और विश्वास प्रचलित हैं। यह बात बिहार यूनिसेफ के प्रमुख डॉ। यामीन मजूमदार ने कही। वे किशोरियों के माहवारी-स्वास्थ्य और स्वच्छता विषय पर किए गए 'प्यारी' पहल के अध्ययन पर अपनी राय रख रहे थे। कार्यक्रम को राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी भारत भूषण, दिल्ली यूनिसेफ की सीफॉरडी विशेषज्ञ अरूपा शुक्ला ने भी संबोधित किया।

ग्रामीण किशोरियां कम जागरूक

उन्होंने कहा कि देश में क्0 करोड़ किशोरियां हैं, जिनमें से लगभग ख्ख् प्रतिशत को कोई शिक्षा नहीं मिल पाई है। इनमें से फ्0 प्रतिशत की शादी हो चुकी है और लगभग ख्ब् फीसदी ऐसी हैं जो मां बन चुकी है। माहवारी के दौरान किशोरियों के द्वारा सेनेटरी पैड के प्रयोग के बारे में बताते हुए डॉ। मजूमदार ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत कम किशोरियां ही सेनेटरी पैड का प्रयोग करती हैं। इन क्षेत्रों किशोरियां कम जागरूक हैं।

दो जिलों में किया गया अध्ययन

यूनिसेफ के तकनीकी सहयोग और बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति के नेतृत्व में दो जिलों में इस संबंध में अध्ययन किया गया। वैशाली और नालंदा में किशोरियों और महिलाओं में माहवारी स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रबंधन पर दो साल तक अध्ययन किया गया। राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ। वाई एन पाठक ने कहा कि बिहार में ख् करोड़ ख्7 लाख किशोर-किशोरियां हैं। आज के ये किशोर कल युवा बनेंगे। ऐसे में हमें उनकी सामाजिक और मानसिक दुविधाओं को दूर करना होगा। उन्होंने कहा कि ऐसे कार्यक्रम को चयनित क्0 जिलों में लागू किया जा सकता है।