- यूनिट के आडियोमेट्री, प्रशिक्षण केंद्र व मनोविज्ञान विभाग में लटका रहा ताला, 5 विभागों में मिले सिर्फ 5 कर्मचारी

- आई नेक्स्ट के रिएल्टी चेक में हुआ खुलासा, नहीं होती डिसेबल चाइल्ड की ट्रेनिंग

GORAKHPUR: बीआरडी कैंपस में स्थित मनोविकास केंद्र में जेई से डिसेबल हुए बच्चों व व्यक्तियों की ट्रेनिंग दी जानी है लेकिन जिम्मेदार इन विभागों में ताला बंद कर गायब हो जाते हैं। यहां दी जाने वाली ट्रेनिंग कागज में सिमटकर रह गई है। शुक्रवार को आई नेक्स्ट के रिएल्टी चेक में डिपार्टमेंट के कई यूनिट में ताला जड़े मिले। वहीं पांच यूनिट में सिर्फ पांच कर्मचारी पाए गए। अन्य 11 कर्मचारी गायब रहे। आडियोमेट्री, प्रशिक्षण कक्ष और मनोविकास विभाग में जड़ा ताला व्यवस्था को मुंह चिढ़ा रहा था।

घर बैठे बना लेते हाजिरी

दोपहर 2 बजे आई नेक्स्ट रिपोर्टर मनोविकास विभाग में पहुंचा। यूनिट में दाखिल होने पर मात्र पांच कर्मचारी नजर आए। अन्य 11 हेल्थ कर्मचारी गायब मिले। जब एक एंप्लाइज से बात की गई तो उसने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि एंप्लाइज के ऑफिस आने का निर्धारित टाइमिंग सुबह 9 से 3 बजे का है मगर यहां आधे से अधिक कर्मचारी डयूटी पर आते ही नहीं हैं। उनका रजिस्टर में हस्ताक्षर बन जाता है और घर बैठे वेतन उठा लेते हैं।

कुर्सियां खाली, जिम्मेदार गायब

यूनिट प्रभारी कक्ष, प्रशिक्षण केंद्र, काउंसलर कक्ष की कुर्सियां पूरी तरह से खाली थी। हद तो यह कि आडियोमेट्री डिपार्टमेंट के साथ तीन कमरों में ताला लटक रहा था। कर्मचारियों से इस बारे में बात करने पर उन्होंने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया। कहा कि यहां की व्यवस्था नहीं बदलने वाली है।

नहीं होती कोई ट्रेनिंग

मनोविकास डिपार्टमेंट की यूनिट में पूरी तरह से सन्नाटा पसरा रहा। जबकि विभाग के जिम्मेदारों का दावा है कि यहां इंसेफेलाइटिस से डिसेबल हुए पेशेंट्स की ट्रेनिंग कराई जाती है। मौके पर स्टूमेंट के साथ विकलांग बच्चे और बुजुर्ग तक नहीं दिखाई पड़े। अफसरों की मानें तो यहां गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज आदि जगहों से मरीज आते हैं लेकिन वह नाम के हैं। हकीकत तो यह हैं कि विभाग के लोग सिर्फ खानापूर्ति कर रहे हैं।

कागजों में होती ट्रेनिंग

आई नेक्स्ट रिपोर्टर को कहीं भी ट्रेनिंग होती नजर नहीं आई। कर्मचारियों ने भी दबी जुबान कहा कि यहां तो सिर्फ कागजों में ही बच्चों और बुजुर्गो को ट्रेनिंग दी जाती है। यहां एक भी जापानी इंसेफेलाइटिस से विकलांग बच्चे या बजुर्ग नहीं आते हैं। हालांकि शुक्रवार को 13 बच्चों का रजिस्ट्रेशन हुआ दिखाया गया लेकिन वे बच्चे कहीं नजर नहीं आए।

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कंपोजिंग रिजनल सेंटर का भी हाल बुरा

सीआरसी कंपोजिंग रिजनल सेंटर की भी हालत बदतर मिली। यह चेन्नई की संस्था है। यहां फिजियोथेरेपी, स्पेशल एजुकेशन की ट्रेनिंग दी जानी है। इसके लिए यहां तीन कर्मचारी कार्यरत हैं लेकिन वह भी अपने निर्धारित समय पर नहीं आते हैं। शुक्रवार को सिर्फ दो कर्मचारी नजर आए। वे भी गप-शप में ही व्यस्त दिखे। जब उनसे यहां की जानकारी लेने की कोशिश की गई तो रिपोर्टर से ही उलझ गए। बताया जा रहा है कि उनकी अफसरों से खास पैठ है। इस नाते उनकी दादागिरी चरम पर है। इसका नतीजा है कि डर के मारे कोई भी उनका बाल बांका तक नहीं कर पाता है। सूत्रों की मानें तो मनोविकास केंद्र में आने वाले जेई के बच्चों का ही नाम अपने खाते में दिखा देते हैं और पूछने पर संस्था के अफसरों से बात करने का हवाला देते हैं। इनकी दादागिरी से अन्य विभाग के लोग भी परेशान है।

इंतजार कर चले गए पेशेंट्स

आडियोमीटरी जांच के लिए आधा दर्जन मरीज पहुंचे। लेकिन यहां ताला जड़ा रहा। यह देख सभी पेशेंट्स बिना जांच के ही बैरंग वापस लौट गए। इतना ही नहीं बगल के काउंसलिंग कक्ष में दो कम्प्यूटर रखे हुए थे बगल की कुर्सी भी खाली रही। इसी बीच काउंसलिंग के लिए आए मरीज उनका इंतजार करते रहे। घंटों बाद काउंसलर नहीं आई तो वह भी चले गए।

दी जानी है यह ट्रेनिंग

-आई क्यू टेस्टिंग

-फिजियोथैरेपी

-आडियोमेट्री

- स्पीच थेरेपी

- व्यावसायिक प्रशिक्षण, विशेष शिक्षा

- एक्युप्रेशर थेरेपी

- काउंसलिंग

- बीपीएल कार्डधारकों को नि:शुल्क सुविधाएं

वर्जन

अगर विभाग में संविदाकर्मी अपने कार्य का निर्वहन नहीं कर रहे हैं और गायब रहते हैं तो यह ठीक नहीं है। मैं खुद इसकी जांच कर लापरवाह कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करूंगा।

मधुवेंद्र कुमार पर्वत, विकलांग कल्याण अधिकारी