मजदूरी से पेट पालते हैं

नाऊ की सराय, टेढ़ी बगिया निवासी जवाहर लाल गुप्ता के परिवार पर टीबी की बीमारी का कहर ऐसा टूटा कि उसके पांच बच्चों को लील गया। जवाहर लाल के परिवार में छह बच्चे थे, तीन लड़के और तीन लड़कियां। मगर, टीबी की बीमारी की वजह से उनमें से पांच की मौत हो चुकी है। 22 साल का राजेश, 19 साल का विनोद, 25 साल की सुधा, 17 साल का संजय और 15 साल की पूजा की मौत पिछले दो सालों में हो गई है। जवाहर और उसकी पत्नी मजदूरी करके अपना और अपने बच्चोंं का पेट पालते हैं।

नहीं देते मेडिसिंस

जवाहर ने बताया कि सभी बच्चों में टीबी की बीमारी का समय पर पता चल गया था। डॉक्टर्स ने उन्हें डॉट्स का ट्रीटमेंट करने को बताया। डॉट्स की दवाएं लेने के लिए उन्होंंने जालमा संस्थान में कांटेक्ट किया। लेकिन वहां के डॉक्टर्स ने बाहर की मेडिसिंस लिखी। फाइनेंशियल कंडिशन ठीक नहीं होने की वजह से जवाहर बाहर की मेडिसिंस ज्यादा दिन तक नहीं खरीद सके। इस पर जवाहर ने अपने एरिया के डॉट प्रोवाइडर से जब बात करनी चाही, तो उसने यह कहकर उनका मुंह बंद कर दिया कि शिकायत करने पर जो थोड़ी-बहुत मेडिसिंस मिल रही हैं वह भी नहीं नसीब होंगी। महंगी मेडिसिंस नहीं खरीद पाने की वजह और आधी-अधूरे ट्र्रीटमेंट ने जवाहर के घर के पांच चिराग बुझा दिए।

बची एक बेटी

जवाहर के पास सबसे छोटी 15 साल की बेटी आरती बची है। मगर उसकी भी डॉक्टर्स ने एमडीआर (मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस) पेशेंट बताया है। टीबी में जो पेशेंट ट्रीटमेंट के बाद ठीक नहीं होते हैं उनको एमडीआर की कैटेरगी में रखा जाता है। जवाहर आंखों में आंसू लिए आरती की जिंदगी की भीख मांग रहे हैं। वो चाहते हैं कि कैसे भी आरती का सही ट्रीटमेंट हो और वो ठीक हो जाए।

- डिस्ट्रिक्ट में तकरीबन 8000 टीबी पेशेंट हैं।

- 650 डॉट प्लस सेंटर हैं।

- माइक्रोस्कोपिक के 40 सेंटर हैं।

- एक पेशेंट का प्रॉपर ट्रीटमेंट करवाने पर डॉट प्रोवाइडर को डिपार्टमेंट 250 रुपये देता है।

डॉट सेंटर पर जनवरी में 652 और फरवरी में 712 नए पेशेंट्स रजिस्ट्रेशन हुए हैं। इतना ही नहीं, डिस्ट्रिक्ट में केवल 61 परसेंट टीबी पेशेंट्स ही डॉट सेंटर पर रजिस्टर्ड हो पाते हैं। बाकी के बचे हुए पेशेंट्स जानकारी के अभाव में टीबी हॉस्पिटल तक नहीं पहुंच पाते हैं और न ही उनको टीबी की फ्री मेडिसिंस मिल पाती हैं। डॉट प्रोवाइडर भी इन लोगों तक नहीं पहुंच पाती है।

हेल्थ डिपार्टमेंट की ओर से टीबी की रोकथाम के लिए चल रहीं स्कीम्स

 1. एसीएसएम स्कीम

  - इसमें एक लाख पचास हजार रुपए एक साल के लिए एक मिलियन पॉपुलेशन पर खर्च किया जाता है।

2. एससी स्कीम

-  स्पयूटम कलेक्शन सेंटर में 60,000 हजार रुपए हर डॉट सेंटर को दिए जाते हैं।

3. ट्रांसपोर्ट स्कीम

  - मैक्सिमम 20 विजिट करने पर डॉट प्रोवाइडर को 24,000 हजार रुपये स्पयूटम को पिक करने के मिलते हैं।

4. डीएमसी स्कीम

  - डेजिगनेटड माइक्रोस्कॉपी ट्रीटमेंट सेंटर को दो पार्ट में डिवाइड किया गया है। ए पार्ट में एक लाख पचास हजार रुपये और बी पार्ट में 25 रुपये पर स्लाइड के डॉट प्रोवाइडर को दिए जाते हैं।

5. एलटी स्कीम

6. कल्चर एंड ओएसआई स्कीम

7. स्लम स्कीम

  - इसमें अर्बन एरियाज के लोगों को टीबी मुक्त करने के लिए हेल्थ डिपार्टमेंट के लोगों को लगाया जाता है।

8. ट्यूबर क्लॉसिस यूनिट मॉडल

9. टीबी-एचआईवी स्कीम

  - इसमें टीवी के साथ-साथ एचआईवी के मरीजों का इलाज अलग वार्ड में किया जाएगा। अब एचआईवी के साथ टीबी के पेशेंट्स का ग्राफ बढ़ता जा रहा है।

मेरे सभी बच्चों की मौत टीबी के चलते हो गई और जब भी डॉक्टर्स के पास गया उन्होंने मुझको बाहर से मेडिसिंस लेने को कहा। आर्थिक तंगी के चलते मैं अपने बच्चों का ट्रीटमेंट नहीं करवा पाया।

- जवाहर लाल गुप्ता, फादर

Report by- APARNA SHARMA ACHARYA