कहानी
अभिमन्यु जिसका डाक नाम बाबला है, अपनी बचपन की दोस्त बिंदु के प्यार में बावला है। वो बिंदु जिसने उसको बचपन से लेकर जवानी तक फ्रेंडज़ोन करके रखा हुआ है। बस यही है कहानी!

कथा, पटकथा और निर्देशन
ये फिल्म भी उसी मुसीबत की मारी है, जो ऑलमोस्ट सारी बुरी फिल्म्स पर आती है, वो है इसकी खराब राइटिंग। इसकी कहानी बेहद साधारण है, पर एक साधारण कहानी को अपलिफ्ट करने का काम स्क्रीनप्ले से किया जा सकता है। इस लिए आइये इस फिल्म को डायरेक्टली कमपेयर करते हैं 'जाने तू या जाने न' से'। 'जाने तू या जाने न' की कहानी का काफी हिस्सा इस फिल्म की कहानी से मिलता जुलता है पर 'जाने तू या जाने न' अपने शानदार स्क्रीनप्ले के कारण बेहद रोचक और मनोरंजक थी। उस फिल्म में भी लड़का गीक था और लड़की बबली, इस फिल्म में भी। 'जाने तू या जाने न' का कहानी सुनाने का तरीका और उसका ट्रीटमेंट उसे बढ़िया फिल्म की गिनती में ले आता है। ये फिल्म रेगुलर हिंदी फ़िल्मी फोर्मुलों से भरी पड़ी है। ऐसा नहीं है फिल्म की कहानी में स्कोप नहीं था, हम सब ने एक बार किसी को ज़रूर दिलोजान से प्यार किया होगा जिसने हमें फ्रेंडज़ोन कर दिया हो। ये प्लाट रेलेटेबल है पर इस फिल्म की राइटिंग को 'गुलज़ार साहब', स्टाइल बनाने के चक्कर में सब गुडगोबर हो गया। #हरकोईगुलज़ारनहींबनसकता।

Meri Pyaari Bindu
Genre : Romance /Comedy
Director:Akshay Roy
Actors: Ayushman Khurana and Parineeti Chopra
Banner : Yashraj
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इस फिल्म का एक और बड़ा प्रॉब्लम है, वो है बिंदु का किरदार। पता नहीं क्यों, इस किरदार की राइटिंग में न तो डेप्थ है, न ही सबस्टेंस। जो किरदार सबसे अच्छा लिखा होना चाहिए था, वही सुपरफिशिअल और मीन लगता है। एक वक़्त पर आके लगने लगता है, की बाबला वाकई बावला है...

ऐसा नहीं है की फिल्म में सब कुछ बुरा है। फिल्म का टेक्निकल डिपार्टमेंट इस फिल्म को बचाने की पूरी कोशिश करता है, कैमरा वर्क बहुत उम्दा है और कोलकता जहां भी शूट हुआ है अच्छा लगता है। फिल्म की एडिटिंग काफी अच्छी है, फिल्म मात्र दो घंटे की ही है पर फिर भी बोरिंग राइटिंग के चलते ये फिल्म आपके सब्र का इम्तिहान ज़रूर लेगी।

 



अभिनय :
आयुष्मान खुराना इस फिल्म की जान हैं, जो थोड़ी बहुत फिल्म आप झेल सकते हैं वो उनकी वजह से है। वो अपना किरदार इतनी मासूमियत के साथ अदा करते हैं, की आपको केवल उनसे ही कनेक्ट महसूस होता है। वो इस फिल्म के 'लॉस्ट पपी' हैं, उनको देख कर awww करने का मन करता है। बिंदु का किरदार परिणीती ने वैसे ही अदा किया है जैसे उन्हों ने 'लेडीज़ वेर्सिस रिक्की बहल' में किया था। इसमें मैं उनकी गलती नहीं मानूंगा, उनका किरदार बेहद खराब और वन डाईमेंशनल लिखा गया है। फिल्म में बाकी के किरदार खासकर बाबला के माँ बाप का करने वाले दोनों अभिनेता बढ़िया हैं।

संगीत :
बस यही वो डिपार्टमेंट है इसपर वाकई काम किया गया है, फिल्म के सारे गाने आपके आईपोड में जाने लायक हैं। फिल्म के पार्श्वसंगीत में बजने वाले बाकी सारे हिंदी गीत इस फिल्म को अपलिफ्ट करते हैं।

अभिमन्यु और बिंदु की ज़िन्दगी में बरसो बीत जाते हैं, पर फिल्म में कुछ ख़ास नहीं होता। आप बोर होंगे और ऐसा भी हो सकता है, की आपको नींद आ जाए, और जब आप नींद से जागें तो आपके मुंह से निकले... 'ख़त्म हो गई क्या?'

फिल्म का बॉक्स ऑफिस प्रेडिक्शन : 'किल दिल' की याद दिलाने वाली इस फिल्म से उम्मीद की जा सकती है की पूरे रन में 20 करोड़ तो कमा ही लेगी।

Review by : Yohaann Bhaargava
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