- अभी तक न तो लोन की व्यवस्था और न ही लैंड एक्वीजिशन के लिए प्रपत्र ही तैयार हो सका है

- डिपो बनाने के लिए जमीन भी पड़ गयी कम

LUCKNOW: सीएम अखिलेश यादव ने अपने घोषणा पत्र में मेट्रो का खूब प्रचार-प्रसार किया, लेकिन हकीकत यह है कि मेट्रो केवल कागजों में ही दौड़ रही है। न तो अभी तक लोन की व्यवस्था हो सकी है और न ही लैंड एक्वीजिशन के लिए प्रपत्र ही तैयार हो सका है। डिपो के लिए जमीन भी कम पड़ गई है। ऐसे में यह सवाल बड़ा है कि तीन सालों में कैसे मेट्रो का काम पूरा हो सकेगा।

अभी नहीं हुए टेंडर

लखनऊ मेट्रो का निर्माण कार्य लगातार सुस्त चल रहा है। प्रोजेक्ट के डिपो और रूट पर निर्माण के लिए टेंडर की कवायद भी अभी तक शुरू नहीं हो सकी है। लैंड एक्वायर करने के लिए प्रपत्र मेट्रो सेल को तैयार करना है, लेकिन यह मामला भी राजस्व विभाग में ही अटका है। उम्मीद है कि नई सरकार बनने के बाद ही इस दिशा में कुछ तेजी आएगी।

लगातार आ रहे हैं गतिरोध

लखनऊ मेट्रो का शिलान्यास नवंबर ख्0क्फ् में होना था, लेकिन गतिरोधों के कारण ख् मार्च को ऐसा हो सका। इस बीच मुख्य सलाहकार ई श्रीधरन के दूसरे दौरे के बाद रूट पर काम के लिए टेंडर और डिपो का डिजाइन तय हो गया है, लेकिन इसमें भी समस्या पैदा हो गई है। नॉर्थ- साउथ कॉरिडोर के लिए कानपुर रोड स्थित फ्ख्वीं वाहिनी पीएसी कैंपस की जमीन डिपो के लिए कम पड़ रही है। एलएमआरसी के प्रधान सलाहकार पदमविभूषण श्रीधरन ने डिपो के लिए अतिरिक्त जमीन की व्यवस्था करने का सुझाव दिया था। उनके सुझाव पर अमल करते हुए एलएमआरसी ने अतिरिक्त जमीन की नापजोख शुरू कर दी है। जमीन चिन्हित होने के बाद इसके अधिग्रहण की कार्रवाई की जाएगी। अधिग्रहण के लिए एलएमआरसी ने जिला प्रशासन से निर्धारित प्रक्रिया के साथ ही प्रारुप की मांग की है। प्रारूप की उपलब्धता होने के बाद भूमि अर्जन की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।

नहीं मिला लोन

एलएमआरसी को वित्तीय व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए एलडीए सौ करोड़, आवास एवं विकास परिषद दौ सौ करोड़ रुपए अनुदान के रूप में उपलब्ध कराएगा। वहीं यूपीएसआईडीसी पचास करोड़ रुपए की धनराशि इक्विटी के रूप में मेट्रो को देगा। एचपीसी में लिए गए निर्णय के अनुसार इन विभागों को यह धनराशि तीन वित्तीय वर्ष में उपलब्ध कराना है। निर्देशों के अतंर्गत इस वित्तीय वर्ष के लिए निर्धारित बीस प्रतिशत की धनराशि विभागों को देनी है, लेकिन इसके अलावा लोन का बंदोबस्त भी करना है। जापान की संस्था जायका से इसके लिए बातचीत चल रही है। लेकिन यह भी अभी तक फाइनल नहीं हो सकी है।