उनकी उम्र 27 साल है और वे पर्वतारोही हैं। उनमें हंसी-मजाक का एकदम वही अंदाज है जो शेरपाओं में ही पाया जाता है।

वे कहते हैं, ''इस घड़ी को मैंने अपने हाथ से भले ही बनाया, लेकिन पहली बार जब मैंने इसे कलाई पर बांधा तो मैं हर दूसरे मिनट इसमें समय देखता रहता था क्योंकि मुझे भरोसा नहीं था ये सही चल भी रही है या नहीं.''

लेकिन जो घड़ी वो और उनके साथी पर्वतारोही थुंडू बनाते हैं, वो कोबॉल्ड ब्रांड की हैं जिसे दुनिया की जानी-मानी हस्तियां, अमरीकी फोर्स के जवान, नासा के वैज्ञानिक और अमरीका के एक पूर्व राष्ट्रपति भी पसंद करते हैं। दोनों ने घड़ी बनाने की एक कंपनी खोली जिसमें एक वर्कशाप भी है जो काठमांडू के उस बाजार में है जहां धनी लोगों का आना-जाना होता है।

जब ऑक्सीजन सिलेंडर बंद हो गया

पूर्वी नेपाल के ऊंचे पर्वतीय इलाके में बसे एक सुदूर गांव के रहने वाले नामग्याल और थुंडू शेरपा दो वर्ष पहले तक पहाड़ों की ऊंचाइयां नापते थे और पर्वतारोहण के शौकीन लोगों की मदद करते थे। इन चोटियों में माउंट एवरेस्ट भी शामिल है।

माउंट एवरेस्ट की चोटी पर नामग्याल सात बार और थुंडू नौ बार चढ़ चुके हैं। ऐसे ही एक पर्वतारोहण ने उनका जीवन हमेशा के लिए बदल दिया।

जिन हाथों में कभी वो साजो-सामान और उपकरण होतें थे जिनकी मदद से वे एवरेस्ट फतह करते थे, उन्हीं हाथों में अब छोटे-छोटे स्क्रू-ड्राइवर और दूसरे औजार आ गए जिनकी मदद से पुर्जा-पुर्जा जोड़कर घड़ियां बनाई जाती हैं।

ये दो वर्ष पहले की बात थी। घड़ी बनाने वाली कंपनी कोबॉल्ड के संस्थापक माइकल कोबॉल्ड और उनकी पत्नी माउंट एवरेस्ट पर चढाई के दौरान मुश्किल में पड़ गए जहां उनकी मदद करने वाले कोई और नहीं बल्कि नामग्याल और थुंडू ही थे।

माइकल कोबॉल्ड एवरेस्ट पर चढाई के अपने डरावने अनुभव को इन शब्दों में याद करते हैं, ''मेरा ऑक्सीजन सिलेंडर काम नहीं कर रहा था। नामग्याल ने उसे ठीक करने की कोशिश की। लेकिन वो कामयाब नहीं हुआ। उसने मेरा रेग्यूलेटर बदलना शुरु किया। नामग्याल ने अपने हिस्से की ऑक्सीजन मुझे देकर मेरी जान बचाई। उन्होंने मेरी पत्नी की जान भी बचाई, लेकिन वो एक अलग कहानी है.''

और बदल गई जिंदगी

दो बच्चों के पिता 38 वर्षीय थुंडू कहते हैं कि पर्वतारोही की जान जोखिमों में रहती है और जो शेरपा इस काम में लगे हैं, ये जोखिम उनके काम का एक हिस्सा ही है।

शेरपा जब भी पहाड़ों पर चढ़ने के लिए अपने घरों से निकलते हैं तो उनके परिवार सुरक्षित वापसी के लिए प्रार्थना करते हैं। इस तरह के अभियानों में शेरपाओं की जान हमेशा जाती रही है। नामग्याल कहते हैं, ''यही वजह है कि हमारे घरवाले हमें ऐसा पेशा अपनाने के लिए कहते हैं जिसमें उम्र ज्यादा हो भले ही कमाई कम हो.''

बहरहाल एवरेस्ट की चढाई के दौरान पेश आई घटना के बाद माइकल कोबॉल्ड और उनके एक करीबी दोस्त ने नामग्याल और थुंडू की मदद करनी चाही ताकि वो अपेक्षाकृत सुरक्षित जीवन व्यतीत कर सकें।

इस विचार ने जब मूर्त रूप लिया तो दोनों शेरपा घड़ी बनाने वाले बन गए। माइकल कोबॉल्ड दोनों को अमरीका ले गए और उन्हें घड़ी बनाने के पेशेवर प्रशिक्षण दिया।

अमरीका से लौटने के बाद दोनों शेरपा ने अपना कारोबार शुरु किया जो अब पूरी तरह से उनकी दक्षता पर निर्भर है। लेकिन दोनों को चिंता है कि उनका काम कैसा चलेगा और कब तक चलेगा क्योंकि नेपाल के लोगों के पास आमतौर पर ज्यादा पैसा नहीं है और उन्हें मंहगी घड़ियां पहनने का शौक भी नहीं है।

International News inextlive from World News Desk