- बिहार के बैंकों में भी लंबी है डिफॉल्टरों की सूची

- बिहार में पांच हजार से अधिक केसेज हैं डिफाल्टर लिस्ट की

-बैंकों में लगातार बढ़ता जा रहा है एनपीए

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PATNA: बैंकों पर एनपीए यानि नॉन प्रॉफिट एसेट्स का बोझ भारी पड़ रहा है, जो दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। यह हाल देश भर में हैं और बिहार भी इससे पीछे नहीं है। क्योंकि यहां भी करोड़ों रुपए के बैंक डिफाल्टरों की लिस्ट लंबी है। यह आलम तब है जब इसके अलावा कई केसेज प्रक्रिया के अधीन है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (बिहार-झारखंड) के मुताबिक फिलहाल पांच हजार से अधिक केसेज पेंडिंग है और यह लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इस संबंध में कार्रवाई बैंक और लोकल एडमिनिस्ट्रेशन के माध्यम से की जाती है। हैरत की बात तो यह है कि एक तरफ जो जरूरतमंद है उन्हें मामूली लोन अप्रूव कराने के लिए बैंक के कई चक्कर काटने पड़ते हैं तो दूसरी ओर बड़े बिजनेस ऑनर को यह आसानी से अप्रूव हो जाता है। लेकिन तथ्य है कि अधिकांश डिफाल्टर भी ये ही हैं। आई नेक्स्ट ने जब ऐसे ही डिफाल्टरों की पड़ताल की तो चौंकानेवाले तथ्य सामने आए हैं।

कौन हैं डिफाल्टर

यह सबसे बड़ा सवाल है। इस लिस्ट में उद्योग जगत के लोग शामिल हैं न कि आम आदमी या नए उद्यमी। बिहार -झारख्ाड के डिफाल्टरों की लिस्ट को देखने से तो यही बात स्पष्ट होता है। दिसंबर, ख्0क्भ् के लास्ट क्वार्टर से संबंधित डेटा में ये प्रमुख रूप से शामिल हैं। इसमें सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की अमवारा चौक ब्रांच से अम्बिका भवानी कंस्ट्रक्शन लि., सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की लोहियानगर ब्रांच से जेएमडी एलॉय, इलाहाबाद बैंक, सीतामढ़ी ब्रांच से जगदम्बा एग्रो एजेंसी से क्रमश: क्08क् लाख, 79क् लाख और क्78 लाख शामिल हैं। इसी प्रकार विभिन्न पब्लिक सेक्टर की बैंकों से भी कई नाम हैं। ये तो चंद नाम है, बिहार-झारखंड की लिस्ट भी बहुत लंबी है।

क्या है प्रक्रिया

आमतौर पर बैंक से लिए गए लोन को यदि लगातार तीन माह तक नहीं चुकाया जाता है तो वह डिफॉल्टर की श्रेणी में रख दिया जाता है। प्रक्रिया के तौर पर सबसे पहले, पहले महीने ही डिमांड नोटिस भेजी जाती है बैंक की ओर से। तीन माह तक इसका संज्ञान नहीं लेने पर बैंक ऐसे एकाउंट को डिफॉल्टर लिस्ट में डाल देता है। इसके बाद रिकवरी के विभिन्न पक्षों पर काम किया जाता है। लेकिन इस दिशा में ठोस कार्रवाई तब होती है जब संबंधित जिला के सर्टिफिकेट अफसर के यहां केस दर्ज किया जाता है। तब डिफाल्टर के संबंधित थाने से वारंट जारी की जाती है।

बैंकों के डिफॉल्टरों के नाम को सार्वजनिक कर ऐसे एकाउंट के लोगों पर कानूनी प्रक्रिया के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए। बैंक को कमजोर करने वाले किसी भी स्थिति से निपटने के लिए ठोस काम किया जाना चाहिए।

- संजय तिवारी, बिहार प्रदेश बैंक कर्मचारी के नेता

पिछले नौ महीने में (अप्रैल ख्0क्भ् से दिसंबर, ख्0क्भ्) में राष्ट्रीय स्तर पर बैंकों के एनपीए में ख्0 परसेंट की वृद्धि दर्ज की गई है। यह एक चिंताजनक तथ्य है।

- अनिल कुमार सक्सेना, सीए