- रात ढाई बजे तक करीब 25 लाख धर्मानुरागियों ने लगाई डुबकी

-भक्ति की बाढ़ में श्रद्धा का समावेश, गरज उठे आस्था के मेघ

Meerut: चांद पूरा था और रात आधी। ठिठुरती सर्दी मानो महक उठी। गंगा की रेत पर खुशियां अनार की तरह फूटीं। भक्ति की बाढ़ में श्रद्धा का समावेश हो गया। देखते ही देखते आस्था के मेघ गरजने लगे। करीब पंद्रह किलोमीटर में आबाद मेला क्षेत्र में हर ओर हर-हर गंगे का जयघोष कानों में धर्म और आध्यात्मिकता का रस घोलने लगा। पतित-पावनी के इस पार से उस पार तक जलधारा में जनधारा का संगम हो गया। गंगा की उत्ताल तरंगों में ¨चताएं मिसरी की तरह घुल गईं। घाटों पर भक्तों की विभिन्न मुद्राएं मुस्कुरा उठीं। बुधवार रात ढ़ाई बजे तक गढ़ गंगा में अमृत पान और अमृत स्नान करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या पंद्रह लाख के पार पहुंच गई। कार्तिक पूíणमा पर पवित्र सलिला में तरने और उतरने का यह सिलसिला थमा नहीं। यूं कहें कि सांस्कृतिक सुगंध से गढ़ का कोना-कोना सराबोर हो गया।

अलौकिकता की अनुभूति

गोधूलि बेला में सूरज के डूबते ही गंगा में दीपदान शुरू हुआ तो लौ की अलौकिकता की अनुभूति घनीभूत हो उठी। यह सब औचक नहीं है। हस्तिनापुर की राजधानी रहे गढ़मुक्तेश्वर की पौराणिक मान्यताएं जन-जन की जुबान पर हैं। शिवपुराण साक्षी है कि गढ़मुक्तेश्वर बल्लभ संप्रदाय का प्रमुख केंद्र रहा है। यहां गंगा में स्नान का महात्म्य महाभारतकाल से ही है। कुरुक्षेत्र में हुए युद्ध में बंधु-बांधवों और कुटुंबियों के संहार के बाद धर्मराज युधिष्ठर, धनुर्धर अर्जुन और खुद योगिराज श्रीकृष्ण ने यहां आकर यज्ञ किया था। मृतआत्माओं की शांति के लिए कर्मकांड किए थे। उसी समय से कार्तिक पूíणमा पर गढ़ गंगा में स्नान पर्व की परंपरा चली आ रही है।

उमड़ रहे श्रद्धालु

इस बार भी प्रशासन की बदइंतजामी की ¨चता किए बगैर दिल्ली संतर घाट, बागपत, मेरठ, हापुड़, बुलंदशहर और पशुमेलाघाट पर भक्तों का रेला रहा। पश्चिमी उत्तरप्रदेश के अलावा राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश के श्रद्धालुओं से मेला क्षेत्र अटा-पटा है। गंगा के उस पार भी सब कुछ गुलजार था। बिजली की झालरों में भी आस्था झिलमिला रही थी। अमरोहा के तिगरी क्षेत्र में भी लाखों श्रद्धालु्ओं ने डुबकियां लगाईं। घाटों पर उमड़े जनसमुद्र ने मनौतियां मांगी। गंगे च यमुनैव च, गोदावरी सरस्वती जैसे श्लोक बुदबुदाते घाटिया पडों ने ¨पडदान कराए। इसके पहले दिन में खेत और रेत की दूरियां पट गईं। कार्तिक विसर्जन, मुंडन और जनेऊ संस्कार भी पूरे कराए गए।

एकता का संदेश

पशुमेले में खरीद-फरोख्त भी कम नहीं हुई। घुंघरू और घंटियों में पीढि़यों का जीवन बज उठा। अखाड़ों में पहलवानों ने अपनी जिस्मानी कूवत की निशानियां छोड़ीं। मेला क्षेत्र विविधताओं में एकता का संदेश सिर पर उठाए रहा। गांव-गिरांव से आने वाले भक्तों के साथ शहरी और नागर मानस ने भी श्रद्धा और शुद्धि के भाव से गंगा में डुबकी लगाई। बड़े-बूढ़े और बुजुर्ग महिलाओं के साथ युवतियों ने भी लज्जावसनों से मुक्त हुए बिना मर्यादा में गंगा की लहरों पर धर्म-ध्वजा को लहरा दिया। लाखों श्रद्धालुओं की मनौतियों, मनोकामनाओं से गंगा मां भी गदगद हो उठीं।