It could also shrink your brain


Allahabad: सिचुएशन एलार्मिंग है और भविष्य के बड़े खतरे की इशारा करती है। बच्चों के फ्यूचर पर तो इसका असर पड़ेगा ही, पैरेंट्स के सपने भी चकनाचूर हो सकते हैं। यह स्टोरी उन बच्चों की है जो ओवरवेट हैं। इसका असर उनके माइंड पर भी पड़ रहा है। उनका माइंड भी ओवरवेट होने लगा है। शाकिंग फैक्ट यह है कि इसका इम्पैक्ट लड़के और लड़कियों दोनों पर बराबर है। इसके लिए जितने जिम्मेदार बच्चे हैं, उससे छोटा रोल उनके पैरेंट्स का नहीं है। यह एक रिसर्च की फाइंडिंग है जो सिटी के ही डिफरेंट स्कूलों में पढऩे वाले ढाई हजार बच्चों पर किया गया है.

Only public related issues 
नेहरू ग्राम भारती यूनिवर्सिटी के वीसी प्रो। केपी मिश्रा के मुताबिक हमें स्टूडेंट्स के किताबी ज्ञान बढ़ाने में ज्यादा इंट्रेस्ट नहीं है। हम चाहते हैं कि रिसर्च स्कॉलर पब्लिक से रिलेटेड इश्यूज को टच करें। इससे रिसर्च वर्क को एंज्वॉय भी कर सकेंगे और उसका कुछ न कुछ फायदा आम आदमी को जरूर मिलेगा। इसी सोच के साथ रिसर्च स्कॉलर नेहा बंसल को ओवरवेट एंड ओबेसिटी एमंग स्कूल चिल्ड्रेन और इलाहाबाद सिटी टॉपिक दिया गया था। प्रो। केपी मिश्रा के डायरेक्शन में किए गए रिसर्च में नेहा ने पाया है कि सिटी में ओवरवेट स्टूडेंट्स की संख्या में तेजी के साथ इजाफा हो रहा है। इसका सबसे खतरनाक पक्ष यह है कि इन बच्चों पर अभी ध्यान नहीं दिया गया तो फ्चूयर में इस पर कंट्रोल कर पाना मुश्किल हो जाएगा.

Acedemic report भी खराब
सिटी के लगभग ढाई हजार स्टूडेंट पर की गई स्टडी में पाया गया है कि ओवरवेट स्टूडेंट फिजिकल एक्टिविटी में कम इन्वाल्व होते हैं। आलस्य के चलते उनका किसी काम में मन नहीं लगता। वे अक्सर वही फूड सप्लीमेंट्स लेना पसंद करते हैं तो उनकी बॉडी में फैट गेन करने वाला होता है। इसका साइड इफेक्ट यह भी है कि उनकी एकेडमिक परफॉर्मेंस भी पूअर है। ये बच्चे स्कूल ही नहीं घर पर भी ऐसा ही विहैब करते हैं। नेहा के रिसर्च की फाइंडिंग को मानें तो बॉडी वेट बढऩे के साथ ही ऐसे बच्चों की बुद्धि भी कुंद होती जाती है.

Boys हैं ज्यादा effected

नेहा ने अपने ढाई सालों के रिसर्च में पाया है कि गल्र्स की तुलना में ब्वॉयज ओवरवेट से ज्यादा प्रभावित हैं। उन्होंने सिटी के डिफरेंट स्कूलों के 1200 ब्वॉयज पर स्टडी की। जिसमें से उन्हें 168 यानी 14 प्रतिशत ब्वॉय ओवरवेट मिले। जबकि 1236 गल्र्स पर की गए स्टडी में 127 गल्र्स ओवरवेट पाई गईं। यह परसेंटेज 10.27 रहा। दोनों की कंबाइंड स्टडी में 2436 स्टूडेंट्स में से 295 स्टूडेंट यानी 12.11 परसेंट को ओवरवेट पाया गया है. 

3.8 percent underweight
इस स्टडी में 3.8 परसेंट स्टूडेंट अंडरवेट भी पाए गए। ब्वॉयज का परसेंटेज 3.91 परसेंट व गल्र्स का परसेंटेज 3.88 परसेंट पाया गया। हालांकि ओवरवेट स्टूडेंट्स की तुलना में अंडरवेट स्टूडेंट की परफॉर्मेंस अच्छी पाई गई है। इस प्रकार बच्चों को अंडरवेट की तुलना में ओवरवेट से अधिक खतरा है। ओवरवेट का एक रिजल्ट यह भी पाया गया है कि ज्यादातर स्टूडेंट आगे चलकर ओबेसिटी का शिकार हो जाते हैं। स्टडी में 7.08 परसेंट ब्वॉयज व 3.80 परसेंट गल्र्स ओबेसिटी की शिकार मिलीं. 

13 साल की उम्र है खतरनाक
रिसर्च में नेहा ने यह भी प्रजेंट किया है कि ओवरवेट का खतरा 13 साल की उम्र में सबसे अधिक रहता है। क्योंकि, इस एज ग्रुप के अधिक बच्चे ओवरवेट की चपेट में पाए गए हैं। रिसर्च के आंकड़ों के मुताबिक 2436 स्टूडेंट में से 13 साल के 265 ब्वॉयज व 238 गल्र्स ओवरवेट थीं। यह अन्य एज ग्रुप की तुलना में सबसे अधिक संख्या है। यह स्टडी 11 साल से 16 साल के उम्र के बच्चों पर की गई है। ओवरवेट होने वाले 11 साल उम्र के बच्चों की संख्या सबसे कम है। इस एज ग्रुप में ब्वॉयज में 119 व गल्र्स में 138 स्टूडेंट ओवरवेट मिले.

Parents की लापरवाही
नेहा ने अपने रिसर्च के दौरान एक्सपर्ट्स के भी कमेंट लिए हैं। जिसमें उन्होंने पाया है कि बच्चों के ओवरवेट होने के पीछे पैरेंट्स की लापरवाही सबसे बड़ा रीजन है। बच्चों पर वे पढ़ाई का प्रेशर जरूरत से ज्यादा बनाते हैं। नतीजा वे फिजिकल एक्टिविटी में इनवाल्व होने के बजाए घर में कैद रहकर किताबों तक सीमित रहते हैं। बच्चों की डाइट पर भी पैरेंट्स का ध्यान न देना ओवरवेट का कारण बनता है। फाइंडिंग का फैक्ट यह भी है कि कई बार महिलाएं बच्चों की टिफिन में वह चीजें भी रख देती हैं जो फैट गेन कराने वाली होती हैं। यह घर का खाना नहीं बल्कि मार्केट का जंक फूड होता है। उनके लंच और डिनर में भी ऐसी चीजें परोसी जाती हैं। नतीजा न ही उनकी बॉडी मेंटेन रहती है और न ही माइंड.

हो सकता है Control
रिसर्च में उन्होंने यह भी प्रजेंट किया है कि पैरेंट्स चाहें तो बच्चों को ओवरवेट होने के साथ उनके माइंड को ओवरवेट होने से बचाया जा सकता है। पैरेंट्स के लिए जरूरी है कि वह बच्चों की डाइट पर पूरा ध्यान दें। डाइटिशियन के साथ कंसल्ट करें और उनकी एडवाइज पर ही बच्चे की डाइट फिक्स करें। इसके साथ ही बच्चों को अधिक से अधिक फिजिकल एक्टिविटी में इन्वॉल्व करें। इन बातों पर कंटीन्यू गौर किया जाए तो उन्हें ओवरवेट और अंडरवेट दोनों प्रॉब्लम से निजात दिलाई जा सकती है.

हम चाहते हैं कि रिसर्च ऐसे सब्जेक्ट पर हो जिसमें पब्लिक से डायरेक्ट इंटरैक्शन हो। जिसका फायदा सोसाइटी को मिले। इसीलिए नेहा को यह सब्जेक्ट रिसर्च के लिए दिया गया था. 
प्रो। केपी मिश्रा
वीसी, एनजीबीयू

Report by- Ajit Shukla

Only public related issues 

नेहरू ग्राम भारती यूनिवर्सिटी के वीसी प्रो। केपी मिश्रा के मुताबिक हमें स्टूडेंट्स के किताबी ज्ञान बढ़ाने में ज्यादा इंट्रेस्ट नहीं है। हम चाहते हैं कि रिसर्च स्कॉलर पब्लिक से रिलेटेड इश्यूज को टच करें। इससे रिसर्च वर्क को एंज्वॉय भी कर सकेंगे और उसका कुछ न कुछ फायदा आम आदमी को जरूर मिलेगा। इसी सोच के साथ रिसर्च स्कॉलर नेहा बंसल को ओवरवेट एंड ओबेसिटी एमंग स्कूल चिल्ड्रेन और इलाहाबाद सिटी टॉपिक दिया गया था। प्रो। केपी मिश्रा के डायरेक्शन में किए गए रिसर्च में नेहा ने पाया है कि सिटी में ओवरवेट स्टूडेंट्स की संख्या में तेजी के साथ इजाफा हो रहा है। इसका सबसे खतरनाक पक्ष यह है कि इन बच्चों पर अभी ध्यान नहीं दिया गया तो फ्चूयर में इस पर कंट्रोल कर पाना मुश्किल हो जाएगा।

Acedemic report भी खराब

सिटी के लगभग ढाई हजार स्टूडेंट पर की गई स्टडी में पाया गया है कि ओवरवेट स्टूडेंट फिजिकल एक्टिविटी में कम इन्वाल्व होते हैं। आलस्य के चलते उनका किसी काम में मन नहीं लगता। वे अक्सर वही फूड सप्लीमेंट्स लेना पसंद करते हैं तो उनकी बॉडी में फैट गेन करने वाला होता है। इसका साइड इफेक्ट यह भी है कि उनकी एकेडमिक परफॉर्मेंस भी पूअर है। ये बच्चे स्कूल ही नहीं घर पर भी ऐसा ही विहैब करते हैं। नेहा के रिसर्च की फाइंडिंग को मानें तो बॉडी वेट बढऩे के साथ ही ऐसे बच्चों की बुद्धि भी कुंद होती जाती है।

Boys हैं ज्यादा effected

नेहा ने अपने ढाई सालों के रिसर्च में पाया है कि गल्र्स की तुलना में ब्वॉयज ओवरवेट से ज्यादा प्रभावित हैं। उन्होंने सिटी के डिफरेंट स्कूलों के 1200 ब्वॉयज पर स्टडी की। जिसमें से उन्हें 168 यानी 14 प्रतिशत ब्वॉय ओवरवेट मिले। जबकि 1236 गल्र्स पर की गए स्टडी में 127 गल्र्स ओवरवेट पाई गईं। यह परसेंटेज 10.27 रहा। दोनों की कंबाइंड स्टडी में 2436 स्टूडेंट्स में से 295 स्टूडेंट यानी 12.11 परसेंट को ओवरवेट पाया गया है. 

3.8 percent underweight

इस स्टडी में 3.8 परसेंट स्टूडेंट अंडरवेट भी पाए गए। ब्वॉयज का परसेंटेज 3.91 परसेंट व गल्र्स का परसेंटेज 3.88 परसेंट पाया गया। हालांकि ओवरवेट स्टूडेंट्स की तुलना में अंडरवेट स्टूडेंट की परफॉर्मेंस अच्छी पाई गई है। इस प्रकार बच्चों को अंडरवेट की तुलना में ओवरवेट से अधिक खतरा है। ओवरवेट का एक रिजल्ट यह भी पाया गया है कि ज्यादातर स्टूडेंट आगे चलकर ओबेसिटी का शिकार हो जाते हैं। स्टडी में 7.08 परसेंट ब्वॉयज व 3.80 परसेंट गल्र्स ओबेसिटी की शिकार मिलीं. 

13 साल की उम्र है खतरनाक

रिसर्च में नेहा ने यह भी प्रजेंट किया है कि ओवरवेट का खतरा 13 साल की उम्र में सबसे अधिक रहता है। क्योंकि, इस एज ग्रुप के अधिक बच्चे ओवरवेट की चपेट में पाए गए हैं। रिसर्च के आंकड़ों के मुताबिक 2436 स्टूडेंट में से 13 साल के 265 ब्वॉयज व 238 गल्र्स ओवरवेट थीं। यह अन्य एज ग्रुप की तुलना में सबसे अधिक संख्या है। यह स्टडी 11 साल से 16 साल के उम्र के बच्चों पर की गई है। ओवरवेट होने वाले 11 साल उम्र के बच्चों की संख्या सबसे कम है। इस एज ग्रुप में ब्वॉयज में 119 व गल्र्स में 138 स्टूडेंट ओवरवेट मिले।

Parents की लापरवाही

नेहा ने अपने रिसर्च के दौरान एक्सपर्ट्स के भी कमेंट लिए हैं। जिसमें उन्होंने पाया है कि बच्चों के ओवरवेट होने के पीछे पैरेंट्स की लापरवाही सबसे बड़ा रीजन है। बच्चों पर वे पढ़ाई का प्रेशर जरूरत से ज्यादा बनाते हैं। नतीजा वे फिजिकल एक्टिविटी में इनवाल्व होने के बजाए घर में कैद रहकर किताबों तक सीमित रहते हैं। बच्चों की डाइट पर भी पैरेंट्स का ध्यान न देना ओवरवेट का कारण बनता है। फाइंडिंग का फैक्ट यह भी है कि कई बार महिलाएं बच्चों की टिफिन में वह चीजें भी रख देती हैं जो फैट गेन कराने वाली होती हैं। यह घर का खाना नहीं बल्कि मार्केट का जंक फूड होता है। उनके लंच और डिनर में भी ऐसी चीजें परोसी जाती हैं। नतीजा न ही उनकी बॉडी मेंटेन रहती है और न ही माइंड।

हो सकता है Control

रिसर्च में उन्होंने यह भी प्रजेंट किया है कि पैरेंट्स चाहें तो बच्चों को ओवरवेट होने के साथ उनके माइंड को ओवरवेट होने से बचाया जा सकता है। पैरेंट्स के लिए जरूरी है कि वह बच्चों की डाइट पर पूरा ध्यान दें। डाइटिशियन के साथ कंसल्ट करें और उनकी एडवाइज पर ही बच्चे की डाइट फिक्स करें। इसके साथ ही बच्चों को अधिक से अधिक फिजिकल एक्टिविटी में इन्वॉल्व करें। इन बातों पर कंटीन्यू गौर किया जाए तो उन्हें ओवरवेट और अंडरवेट दोनों प्रॉब्लम से निजात दिलाई जा सकती है।

हम चाहते हैं कि रिसर्च ऐसे सब्जेक्ट पर हो जिसमें पब्लिक से डायरेक्ट इंटरैक्शन हो। जिसका फायदा सोसाइटी को मिले। इसीलिए नेहा को यह सब्जेक्ट रिसर्च के लिए दिया गया था. 

प्रो। केपी मिश्रा

वीसी, एनजीबीयू

Report by- Ajit Shukla