क्योंकि अब बच्चे 'बड़े' हो रहे हैं

अमन की बदहवास आंखें उनकी परेशानी बखूबी बयां कर रही हैं। वह अपने छोटे भाई के घर से चले जाने से टेंशन में हैं। कैंट में रहने वाले अमन ने बताया कि 2 दिन से उनका भाई शिवम घर नहीं लौटा है। वह सिर्फ 10 साल का है। मां ने बस थोड़ा सा डांटा था। शिवम को इतना बुरा लग गया कि घर छोड़कर चला गया। ये केस बताने के लिए काफी है कि बच्चों की मासूमियत पर एग्रेसिवनेस कैसे हावी होती जा रही है। वे विद्रोही हो रहे हैं। छोटी-छोटी घटनाओं पर घर छोडऩे तक के लिए तैयार हो जाते हैं। इसकी फ्रीक्वेंसी बढ़ रही है। आई नेक्स्ट ने बच्चों, पेरेंट्स और एक्सपट्र्स से बातकर इसकी वजह जानने की कोशिश की। कुछ चौंकाने वाली बातें सामने आई। इन पर गौर फरमाएंगे तो आपका और बच्चे का कम्युनिकेशन स्ट्रॉन्ग होगा।

ज्यादा sensitive हो रहे बच्चे

बच्चे हमारी समझ से कहीं ज्यादा सेंसिटिव हो गए हैं। छोटी-मोटी डांट बच्चों को नागवार गुजरने लगी है। बड़ों की सख्ती उन्हें इमोशनली अफेक्ट कर रही है। तेजी से बदल रही  लाइफस्टाइल में बच्चे ज्यादा प्राइवेसी डिमांड करते हैं। शॉकिंग लेकिन ट्रू फैक्ट ये है कि साइकोलॉजिस्ट के पास हर महीने 200 से ज्यादा फैमिलीज अपने बच्चों को लेकर पहुंच रही हैं। शिकायत बस एक कि उनके बच्चे जिद्दी और हाइपर सेंसिटिविटी के शिकार हो गए हैं। यही नहीं जीआरपी के रिकॉर्ड भी इस बात का सपोर्ट कर रहे हैं। जीआरपी रिकॉर्ड के मुताबिक, दूसरे शहर से ट्रेन के जरिए आने वाले बच्चों की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है। अलार्मिंग बात ये है कि इन बच्चों का ऐज ग्रुप 4 से 14 साल के बीच है।

Insulting feel करते हैं

साहूकारा निवासी संजीव अग्रवाल ने एक फैक्ट शेयर किया। उन्होंने बताया कि बच्चों को दोस्त के सामने डांट दों तो हर्ट हो जाते हैं। स्कूल में सबके सामने डांट या सजा मिलने पर इंसल्टिंग फील करते हैं। उन्हें लगता है कि इमेज खराब हो गई है। यही नहीं उन्हें ये तक महसूस होता है कि दोस्तों से नजरे कैसे मिलाएं। बच्चों से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने भी कुछ ऐसा ही रिएक्शन दिया। बिशप कोनराड के स्टूडेंट राहुल के अकॉर्डिंग, पेरेंट्स अपने ही बच्चों पर भरोसा नहीं करते हैं। स्कूल हो या घर, जब हर जगह डांट पड़ेगी तो कहां जाएंगे।

बच्चों को भी समझें

साइकोलॉजिस्ट मानते हैं कि हो सकता है बच्चा किसी परेशानी से जूझ रहा हो। लर्निंग डिसेबिलिटी या फोकस नहीं कर पा रहा हो। इसलिए बच्चों पर सख्ती बरतने या डांटने से पहले उनकी मनोदशा को समझने की कोशिश जरूर करें। बगैर जाने बच्चों पर सख्ती या डांटने से उनपर पर गलत असर पड़ता है।

समय के साथ लगातार बढ़ रही घटनाओं के कारण एक जैसे नहीं हैं। बिजी शेड्यूल में पेरेंट्स और बच्चों के बीच कम्युनिकेशन गैप इसका मुख्य कारण हो सकता है। पेरेंट्स बच्चों की स्कूल, कोचिंग फीस देकर खुद को जिम्मेदार समझ लेते हैं। जबकि बच्चों को पेरेंट्स का क्वालिटी टाइम चाहिए। बच्चों में ऐज स्ट्रक्चर के साथ सोच डेवलप होती है। आजकल कम ऐज में ही कॉम्पिटीशन बढ़ता जा रहा है। बच्चों को इससे होकर गुजरना पड़ता है। इसलिए उन पर प्रेशर बढ़ता है। उन्हें प्यार और सपोर्ट दें।

विशेष, बरेली पेरेंटल एसोसिएशन

बच्चों की घर छोडऩे की घटनाएं तेजी से बढ़ रही है। रहन-सहन के साथ सभी चीजें पहले जैसी नहीं रह गई हैं। पेरेंट्स की अपेक्षाएं भी बढऩे लगी है। ऐसा नहीं है कि पहले ये घटनाएं नहीं हो रही थीं लेकिन इतना दबाव नहीं था। सोसाइटी में बच्चों के साथ उनके पेरेंट्स भी करियर कॉम्पिटीशन का दबाव महसूस करने लगे हैं। गलाकाट प्रतियोगिता में पेरेंट्स बच्चों पर प्रेशर ज्यादा डाल रहे हैं। ऐसे में बच्चों में अलगाव की भावना आ गई है। बच्चे शॉर्ट टेंपर्ड होने लगे हैं। सच तो ये है कि पेरेंट्स और बच्चों दोनों पर प्रेशर है लेकिन समझदारी की उम्मीद पेरेंट्स से ही ज्यादा है।

नवनीत कौर, समाजशास्त्री

इस समस्या का सबसे बड़ा कारण पेरेंट्स का बच्चों को न समझ पाना है। किशोर अवस्था में हार्मोनल चेंजेंज होते हैं। इससे उनका मन डिस्टर्ब रहता है। इस ऐज में बच्चे इमेजनरी लाइफ में रहते हैं। दूरदर्शिता का अभाव होता है। वह लाइफ में सब कुछ अच्छा चाहते हैं। वहीं पेरेंट्स की बच्चों से हाई एक्सपेक्टेशन होती हैं। बच्चे प्रेशर और स्ट्रेस में रहते हैं कि सारी मुश्किल से छुटकारा पाना है, तो भाग निकलो। इस ऐज में अपोजिट सेक्स के प्रति अट्रेक्शन की शुरुआत होती है। इससे बच्चे इमोशनल डिस्टर्ब भी हो जाते हैं। हर बच्चे की पर्सनालिटी डिफरेंट होती है। पैथोलॉजिक फैमिली रिलेशनशिप में ब्रोकन फैमली, घर की स्थितियां, आइडियल पेरेंट््स न होना जैसे कारण हो सकते हैं। अक्सर देखा गया है कि बच्चे मैच्योरिटी दिखाने के लिए ऐसा करते हैं। सुपीरियॉरिटी शो करने के लिए फिल्म या टीवी से मोटिवेट होकर बच्चे ऐसा स्टेप लेते हैं। पेरेंट्स को ज्यादा से ज्यादा समय बच्चों के साथ बिताना चाहिए।

सुविधा शर्मा, साइकोलॉजिस्ट

For your help

*    पॉजिटिव पेरेंटिंग का बहुत महत्व है। आजकल बच्चों और अभिभावकों में कम्युनिकेशन गैप बढ़ रहा है। यह स्थिति भी किसी अनहोनी के लिए जिम्मेदार है।

*    बच्चों को फैमिली सपोर्ट इतना मिलना चाहिए। ताकि जब भी वह परेशानी में हों खुलकर प्रॉब्लम शेयर कर सकें।

*    पेरेंट्स बच्चों को क्वालिटी टाइम दें। बच्चों को मोरल वैल्यूज के बारे में रेस्पेक्ट और हर परिस्थिति का सामना करने के बारे में समझाएं।

*    बच्चों को जहां तक संभव हो सके, प्यार से समझाएं। ध्यान रखें कि उनके आत्मसम्मान को ठेस न पहुंचे। स्कूल में मॉनीटरिंग हो और पेरेंट्स समय-समय पर फीडबैक लेते रहें।

*    बच्चों की तुलना कभी साथ के दूसरे बच्चों से न करें।

*    पेरेंट्स बच्चों को लाइफ के डेवलपमेंट्स के बारे में बताते रहें। उन्हें सिखाएं कि असफलता जिंदगी का पाठ पढ़ाती है।

*    शुरू से बच्चों पर कंट्रोल रखें व चीजों की प्राथमिकता समझाते चलें।

*    ओवर इमोशनल न हों और बच्चों को सोशल इकोनॉमी स्टेटस के बारे में बताते रहें। हर चीज की वैल्यू की जानकारी उन्हें दें।

*    बच्चों में सुनने की आदत डालें।

Report by: abhishek.mishraa@inext.co.in