-पूर्वाचल की छाप दिखती है मॉरीशस में

-बड़े ही नहीं बच्चे भी वहां बोलते हैं भोजपुरी

-मॉरीशस में सम्मानित हुए अजीत और डॉ। मनोज कुमार

<-पूर्वाचल की छाप दिखती है मॉरीशस में

-बड़े ही नहीं बच्चे भी वहां बोलते हैं भोजपुरी

-मॉरीशस में सम्मानित हुए अजीत और डॉ। मनोज कुमार

ALLAHABAD: allahabad@inext.co.in

ALLAHABAD: ऐ का करतारु तनी देखबू, कहीं जोरन मिल जाई का। तनी ले आव.काल पहूना आवतारे। उनके खातिर दही जमावेकेबा। भारत से दो जाना आइल बा। इलाहाबाद से मॉरीशस पहुंचे चाइल्ड लाइन के डॉयरेक्टर अजीत कुमार और डॉ। मनोज कुमार की खातिरदारी के इंतजाम में वहां के लोग कुछ इसी अंदाज में जुटे थे। जो कुछ भी था वो सब कुछ घर जैसा ही लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि वे पूर्वाचल से बाहर गए ही नहीं हैं। मॉरीशस में कला एवं संस्कृति मंत्रालय व भोजपुरी स्पीकिंग यूनियन के संयुक्त तत्वावधान में अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में शामिल हो कर इलाहाबाद लौटे अजीत कुमार व डॉक्टर मनोज ने ऐसा ही अनुभव आई नेक्स्ट रिपोर्टर से शेयर किया।

मिनी भारत है मॉरीशस

अजीत कुमार ने बताया कि मॉरीशस में पहुंचे तो वहां की आबोहवा देखकर दंग रह गए। वहां का कल्चर एकदम हमारे देश के जैसा ही था। ज्यादातर लोग भोजपुरी में बात कर रहे थे। हमने कई लोगों से बातचीत की। ज्यादातर लोग बलिया के रहने वाले थे। उन्हें सिर्फ इतना याद है कि उनके दादा परदादा बलिया के रहने वाले थे। लेकिन बलिया में कहां के हैं, ये याद नहीं है। पूरी तरह से वहां रहने के बावजूद भी वह अपने देश के कल्चर व सभ्यता को नहीं भूले हैं। जब अजीत ने जोरन शब्द सुना तो भौंचक रह गए। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि मॉरीशस पहुंचकर उन्हें इस शब्द से रूबरू होना पड़ेगा।

भोजपुरी का मतलब देहाती नहीं

आज हमारे देश में स्थिति थोड़ी अलग है। अगर कोई भोजपुरी में बात करता है सामने वाला गांव या देहाती की तरफ फील करता है। जबकि मॉरीशस में ऐसा नहीं है। वहां पर भोजपुरी ही उनकी पहचान है। कांवेंट स्कूल में स्टडी करने वाले बच्चे भी शानदार भोजपुरी बोलते हैं। वहां का सिस्टम भी काफी अपडेट है। लोग पढ़े लिखे हैं और उन्हें सोशल वैल्यू पता है। तभी तो रोड पर कहीं ट्रैफिक पुलिस नहीं दिखाई दी। सिग्नल देखकर ही काम चल जाता है। यही नहीं वहां पर प्रेशर हार्न से भी परहेज किया जाता है।

यहां कसम खाते हैं और वहां पढ़ते हैं

हमारे देश में गीता को सबसे पवित्र धार्मिक पुस्तक माना जाता है। कोर्ट में भी गीता की कसम खिलाई जाती है। लेकिन यह देश का दुर्भाग्य यह है कि यहां पर गीता पढ़ाई नहीं जाती है। जबकि मॉरीशस में ठीक उल्टा है। वहां पर हर घर में बच्चों को गीता, रामायण और हनुमान चालीसा पढ़ाई जाती है। ताकि वे धर्म के प्रति खुद को समर्पित कर सकें। अपने विश्वास को दृढ़ कर सकें। ऐसा सिर्फ बच्चे ही नहीं करते हैं बल्कि वहां की महिलाएं भी इसके लिए कठोर हैं। वह खुद भी डेली पूजा करती हैं और अपने बच्चों से कराती हैं। यही कारण है कि वहां आज भी अपनी सम्यता और संस्कृति जिन्दा है।

फैक्ट फाइल

-चाइल्ड लाइन के डॉयरेक्टर अजीत कुमार और डॉक्टर मनोज कुमार गए थे मारीशस

-इंटरनेशनल सेमिनार में डॉक्टर मनोज ने भोजपुरी भाषा की समस्या व निदान पर अपना शोध प्रस्तुत किया

-मॉरीशस में भोजपुरी प्रधान भाषा बन चुकी है

-इंटरनेशनल सेमिनार में में ख्0 देशों से क्00 लोग भाग लेने पहुंचे थे