देश की सेवा में अमूल्य योगदान

इनके इतिहास से परिचय पाने के लिए आपको सिर्फ डोरंडा स्थित जैप वन के रणधीर वर्मा द्वार से अंदर प्रवेश करना होगा. यहां नेपाल की गोरखा संस्कृति पग-पग पर आपको अपना परिचय देती मिलेगी. यह संस्कृति लगातार फल-फूल रही है और साथ ही देश की सेवा में अपना अमूल्य योगदान दे रही है.

1880 में हुई थी स्थापना

वाहिनी के शिव मंदिर के पुजारी पंडित भीमलाल पाठक बताते हैैं कि अंग्रेजी शासनकाल में सन 1880 में वाहिनी की स्थापना हुई थी. उस समय इसका नाम न्यू रिजर्व फोर्स था. 1892 तक वाहिनी का यही नाम रहा. 1892 में ही इसका नाम बदल कर बंगाल मिलिट्री पुलिस कर दिया गया. 1905 में यह जीएमपी यानी गोरखा मिलिट्री पुलिस बनी. देश की आजादी के बाद इसका नाम बदल कर प्रथम वाहिनी बिहार मिलिट्री पुलिस रखा गया.अब यह जैप वन के नाम से जानी जाती है.

इन्हीं की चढ़ती है पहली चादर

बटालियन के जवानों पर रिसालदार बाबा की असीम कृपा है. यही वजह है कि गोरखा जवान ही रिसालदार बाबा पर पहली चादर चढ़ाते हैैं. बौद्ध सोसाइटी के अध्यक्ष सुरेंद्र तामंग बताते हैं कि यहां रहनेवाले गोरखा मुख्य रूप से दो धर्मों को मानते हैं. एक बौद्ध और दूसरा हिंदू, लेकिन दोनों के बीच शादी-विवाह भी होता है और जात-पात का बंधन आड़े नहीं आता.

जब लड़की को भगा ले जाता है लड़का

गोरखा वाहिनी के समादेष्टा रह चुके विमल किशोर सिन्हा दिलचस्प वाकया लिखते हैं. वो लिखते हैं कि एक बार उनके ऑफिस की महिला सिपाही को एक पुरुष सिपाही लेकर भाग गया. वो अपने रीडर को बुलाकर उसे सस्पेंड करने का ऑर्डर देने ही वाले थे कि पता चला कि यह तो उनमें प्रचलित गंधर्व विवाह की रीति है. जिसमें लड़का-लड़की को भगा कर ले जाता है और वे दोनों कुछ दिन छिप कर रहते हैं. इस बीच लड़की वाले लड़के वालों के घर जाकर शादी के लिए मेल मिलाप करते हैं. इसके बाद लड़केवाले अपने संबंधियों के साथ खाने-पीने का सारा सामान साथ लेकर जाते हैं और खाने-पीने में काफी खर्च करना पड़ता है, जिसे चोरी दंड कहा जाता है.

खाने-पीने के होते हैं शौकीन

सुरेंद्र तामंग बताते हैं कि गोरखा खाने-पीने के बेहद शौकीन होते हैं. वो खाना इतना लजीज बनाते हैं कि खानेवाला उंगलियां चाटता रह जाए. शराब और खस्सी का मीट इन्हें बेहद पसंद है. अतिथि सत्कार मामले में  भी ये किसी से कम नहीं. अपने गेस्ट का वेलकम ये बड़े ही शानदार तरीके से करते हैं. 

सभी जातियां हैं जैप बटालियन में

काफर हुनु भन्दा, मरनो राम्रो की कहावत पर खरे उतरनेवाले जैप बटालियन में नेपाल की सभी जातियों गोरखा, नेवार मगर (राणा, थापा, आले, पुन) गुरुंग किरात, सुनवार लामा, भुटिया, लेप्चा, शेरपा, ब्राहमण क्षेत्री समुदाय के लोग काम करते हैं.

रातू महाराजा से family relation

बौद्ध सोसाइटी के अध्यक्ष सुरेंद्र तामंग बताते हैं कि 1950 में जब नेपाल में राणाशाही का अंत हुआ, तो उनके दरबार में मंत्री रहे युद्ध शमशेर जंगबहादुर राणा नेपाल से रांची आए और रातू महाराजा से पारिवारिक संबंध होने के कारण उन्होंने डोरंडा में ही बटालियन परिसर में रानी कोठी का निर्माण किया. यहां वे बहुत दिनों तक रहे भी. उनके रानी कोठी छोडऩे के बाद बिहार सरकार ने कोठी का किराया भी तय किया था, जिसे नेपाल भेजा जाता था. लेकिन अब वह जाता है कि नहीं, ये नहीं बता सकते.

गाय का रखवाला है गोरखा

गोरखा शब्द के अर्थ को जैप वन के अधिकारी अयोध्या यूं बयां करते हैं. वो कहते हैैं कि गोरखा का संधि-विच्छेद होता है गो जोड़ रक्षा यानी गायों की रक्षा करनेवाला. इसलिए जो भी हिंदुत्व के प्रतीक गायों की रक्षा करता है, वह गोरखा है. वो बताते हैैं कि पहाड़ी होने के कारण गोरखा लोगों की शारीरिक बनावट ही गजब की होती है. ये न सिर्फ अंग्रेजी शासक, बल्कि स्वतंत्र भारत में भी ये सबके चहेते सिपाही रहे हैैं. केंद्र के द्वारा दी जानेवाली ग्रे हाउंड ट्रेनिंग, जिसमें एक सिपाही पर लगभग 25,000 रुपए का खर्च आता है, के लिए सबसे ज्यादा गोरखा सिपाहियों को ही बुलाया जाता है.

समादेष्टा ही देते हैं बलि

वाहिनी के एक सीनियर अफसर ने बताया कि ऐसी परंपरा है कि वाहिनी के स्थापना काल से ही दशहरा के मौके पर समादेष्टा ही पूजा कराते हैं और समादेष्टा ही बलि देते हैं. ऐसे में राज्यवद्र्धन शर्मा, जो बटालियन के समादेष्टा थे, के सामने मुश्किल की घड़ी आ गई. वो पक्के शाकाहारी जो थे. ऐसे में बलि भला कैसे देते.  ऐसे में भतुआ को खस्सी का रूप दिया गया और उसी को उन्होंने काटा. समादेष्टा को वाहिनी के सिपाही पिता तुल्य मानते हैं.

वाहिनी की ही थीं सिस्टर निर्मला

सुरेंद्र तामंग बताते हैं कि मदर टेरेसा की उत्तराधिकारी बनने का गौरव हासिल करनेवाली सिस्टर निर्मला वाहिनी के ही असिस्टेंट कमांडेंट महानंद जोशी की पुत्री थीं. वो ब्राह्मïण थीं और बाद में उन्होंने क्रिश्चियन धर्म स्वीकार कर लिया था. अब वो कोलकाता में रहती हैं और गरीबों व वंचितों की सेवा कर रही हैं.