करोड़ों डॉलर की लागत वाली इस परियोजना के लिए रोबोट संचालित अंतरिक्ष-यानों का इस्तेमाल किया जाएगा जो क्षुद्रगहों से दुर्लभ धातुओं के साथ ही ईंधन के रासायनिक घटकों को निचोड़ लेंगे।

इस कंपनी के संस्थापकों में फिल्म निदेशक जेम्स कैमरन और गूगल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी लैरी पेज शामिल हैं जो वर्ष 2020 तक अंतरिक्ष में ईंधन का एक भंडार बनाना चाहते हैं।

मुश्किल और महंगी

लेकिन वैज्ञानिकों ने इस परियोजना पर संदेह जताते हुए इसे साहसिक, मुश्किल और बेहद खर्चीला बताया है। नासा का एक आगामी मिशन एक क्षुद्रग्रह से 60 ग्राम प्लेटिनम और सोना लेकर आएगा जिसकी लागत लगभग एक अरब डॉलर आएगी।

इस परियोजना के तहत अगले 18 से 24 महीनों के दौरान निजी टेलीस्कोपों की मदद से ऐसे क्षुद्रग्रहों की तलाश की जाएगी जिनमें वांछित संसाधन पर्याप्त मात्रा में मौजूद हों।

इसका मकसद अंतरिक्ष में अन्वेषण के कार्य को निजी उद्योगों के दायरे में लाना है। इस योजना में निगाहें उन क्षुद्रगहों पर लगी हैं जो पृथ्वी के अपेक्षाकृत नजदीक हैं। जो कंपनी इस परियोजना पर काम कर रही है, उसका नाम 'प्लेनेटरी रिसोर्सेस' है।

अंतरिक्ष पर्यटन की अवधारणा के अगुआ एरिक एंडरसन, एक्स प्राइज के संस्थापक पीटर डायमेंडिस और रोस पेरोट जूनियर हैं। जानेमाने अंतरिक्ष यात्री टॉम जोंस इस कंपनी का समर्थन कर रहे हैं।

दूर की कौड़ी

एरिक एंडरसन ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, ''हमने दूर की सोची है। हम उम्मीद नहीं कर रहे हैं कि ये कंपनी रातोंरात चल पड़ेगी। इसमें वक्त लगेगा.''

कंपनी से जुड़े अरबपतियों को लगता है कि इस परियोजना से वित्तीय लाभ मिलने में दशकों लग जाएंगे। उनका कहना है कि वित्तीय लाभ तब होगा जब क्षुद्रग्रहों से प्लेटिनम समूह की धातुएं और अन्य दुर्लभ खनिज पदार्थ मिलेंगे।

पीटर डायमेंडिस कहते हैं, ''यदि आप पीछे मुड़कर ऐतिहासिक रूप से देखें कि किस वजह से इंसान ने अन्वेषण में सबसे बड़ा निवेश किया तो आप पाएगें कि ये संसाधनों के लिए किया गया। यूरोप के लोग मसालों के पीछे गए, अमरीका के लोग सोने, तेल, लकड़ी या जमीन के लिए पश्चिम की ओर गए.''

क्षुद्रगहों में मौजूद पानी को अंतरिक्ष में तरल ऑक्सीजन और तरल हाइड्रोजन में बदला जा सकता है जिनका इस्तेमाल रॉकेट में ईंधन के तौर पर किया जा सकता है।

क्षुद्रगहों में मौजूद पानी को धरती पर लाना बेहद खर्चीला होगा, इसलिए योजना ये है कि इस पानी को अंतरिक्ष में ही किसी जगह ले जाया जाए जहां इसे ईंधन में तब्दील किया जा सके। फिर इस ईंधन को पृथ्वी की कक्षा में लाकर उपग्रहों या अंतरिक्षयानों में भरा जा सकता है।

जॉन हॉपकिंग यूनिवर्सिटी की एप्लाइड फिजिक्स प्रयोगशाला में वैज्ञानिक, डॉक्टर एंड्रयू चेंग कहते हैं, ''अंतरिक्ष में ही भंडार बनाना आश्चर्यजनक लगता है। मैं उम्मीद करता हूं कि वहां कोई होगा जो इसका इस्तेमाल करेगा.''

वे कहते हैं, ''मुझे इस बात की बड़ी उम्मीद है कि अंतरिक्ष का कारोबारी इस्तेमाल, पृथ्वी की कक्षा से परे फायदेमंद साबित होगा। शायद इसका वक्त आ गया है.''

परड्यू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जे मेलोश कहते हैं कि इस परियोजना की लागत बहुत ज्यादा है और अंतरिक्ष में इस तरह का अन्वेषण केवल धनी देशों के लिए एक खेल हो सकता है जो अपनी तकनीकी ताकत का प्रदर्शन करना चाहते हैं।

स्पेस टूरिज्म फर्म 'स्पेस एडवेंचर्स' के सह-संस्थापक एरिक एंडरसन कहते हैं कि संदेह करना उनकी आदत रही है। वे कहते हैं, ''जब हमने लोगों को अंतरिक्ष में भेजना शुरु किया, उससे पहले लोगों ने इस विचार पर भरोसा नहीं किया.'' वे कहते हैं, ''हम दशकों से ये काम कर रहे हैं। लेकिन ये धर्मार्थ नहीं है। इस परियोजना में भी हम शुरु से ही पैसा कमाएंगे.''

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