Lucknow: कच्ची उम्र में लड़की की शादी हो या फिर कन्या भ्रूण हत्या, बहुत मुद्दे हैं इस देश में। हर लड़की का पढऩा और सेल्फ इंडीपेंडेंट होना ही एक ऐसा जरिया है जो इन बुराईयों से लड़ कर एक नई इबारत लिख सकता है। यह कहना है मिस इंडिया वल्र्ड 2012 वान्या मिश्रा का। बुधवार को स्माइल फाउंडेशन के लखनऊ सेंटर जुपीटर एकेडमी में वान्या मिश्रा यहां पढऩे वाले बच्चों के बीच मौजूद थीं। क्लास में बच्चों को पढ़ाने, उनके साथ मिलकर केक काटने, डांस करने के साथ वान्या ने मीडिया से रुबरु होकर अपनी लाइफ के सफर के बारे में खुलकर बात की।
एक दिन भी नहीं गुजरा
जब मैं तेरह साल की थी उस वक्त मैंने मिस इंडिया बनने का सपना देखा था। शीशे के सामने खड़े होकर खुद को देखती और यही सोचती। उस दिन से एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरा जब मैंने इस बारे में न सोचा हो। मेरी मम्मी भी मुझे इस मुकाम पर देखना चाहती थी और पहले मैंने उनके लिए इस पेजेंट को जीता अब अपने देश में क्राउन वापस लाने के लिए मिस वल्र्ड को जीतना है। उसके लिए मैं कड़ी मेहनत कर रही हूं।
बहुत टफ होता है
यह सही है कि इस खिताब को अपने देश में आए हुए काफी लम्बा टाइम हो गया है, लेकिन यह कॉम्पटीशन आसान नहीं है। कई कंट्रीज के साथ हमारा मुकाबला होता है, दूसरों को जज करना बहुत आसान होता है। मैं भी किया करती थी, लेकिन आज जक उस मंच पर पहुंची हूं तो अंदाजा हुआ है कि कितना टफ होता है यह मुकाबला। मैं हमेशा से अपने देश के लिए कुछ करना चाहती थी और मैंने इस प्लेटफार्म को चुना। मैं अपनी तरफ से कोई कमी नहीं छोडऩा चाहती क्योंकि अब मैं कंट्री को रिप्रजेंट करने जा रही हूं।
टाइटिल से प्यार भी तो है
यह नहीं खाना, वह नहीं खाना, ऐसे तैयार होना, बिना मेकअप नहीं निकलना जब से मिस इंडिया का खिताब जीता है यह सारे रेस्ट्रिक्शन भी मेरे साथ हैं। मैं अभी 22 साल की ही हूं, इंजीनियरिंग स्टूडेंट हूं अभी फाइनल इयर कम्प्लीट नहीं किया है ऐसे में मेरे फ्रेंड्स कई बार मेरे आस पास रहते हैं, बहुत कुछ खाते हैं कई बार मेरा भी मन होता है, लेकिन मुझे हर चीज से ज्यादा उस टाइटिल से प्यार है जिसके लिए मुझे अभी अगस्त में जाना है।
ब्लाइंड ही बने इंस्पिरेशन
चंडीगढ़ में पली बढ़ी और अपनी पढ़ाई करने वाली 22 साल की मिस इंडिया वल्र्ड वान्या मिश्रा अपनी आंखें डोनेट कर चुकी हैं। यह काम उन्होंने 18 साल की उम्र में किया था। आखिर यह ख्याल कैसे आया? इस सवाल के जवाब में वान्या कहती हैं कि मुझे किसी से प्रेरणा नहीं मिली। मैं छोटी उम्र से चंडीगढ़ के एक ब्लाइंड स्कूल जाया करती थी। वहां लोगों को देखकर मुझे अहसास हुआ कि आंखे इंसान के लिए कितनी बड़ी नेमत हैं। वही ब्लांइड लोग मेरे इंस्पिरेशन बने और मैंने आई डोनेट कर दी थी।