करुणानिधि के उत्तराधिकारी के रूप में उनके दूसरे और प्रिय बेटे एम के स्टालिन की औपचारिक घोषणा का न सिर्फ़ पार्टी पर असर होगा बल्कि अगले कुछ महीनों में होने वाले लोकसभा चुनावों में राजनीतिक गठजोड़ पर भी असर पड़ेगा.

यह सब जानते हैं कि, किसी वक्त दक्षिणी तमिलनाडु के निर्विवाद डीएमके नेता रहे अड़ागिरी का हाल ही में अभिनेता और नेता विजयकांत की डीएमडीके (दसिया मुरपोक्कु मुणेत्र कषगम) से गठबंधन को लेकर अपने पिता से सार्वजनिक विवाद हुआ था. उस मामले में स्टालिन ने अपने पिता का साथ दिया था.

स्टालिन पिछले कुछ सालों से दक्षिणी ज़िलों की प्रभावशाली ज़िला समितियों में अपने लोगों को बैठाकर अड़ागिरी का प्रभाव कम कर करते रहे हैं.

"चुनाव तक न जाए विवाद"

डेक्कन क्रॉनिकल, चेन्नई के कार्यकारी संपादक और जाने-माने राजनीतिक विश्लेषक भगवान सिंह ने बीबीसी हिंदी से कहा, "अड़ागिरी पहली बार निलंबित नहीं हुए हैं. उन्हें 2001 में भी पार्टी-विरोधी गतिविधियो के लिए निलंबित किया गया था. इस बार का निलंबन डीएमडीके को डीएमके के साथ गठबंधन के लिए मनाने के लिए है. इससे यह सुनिश्चित होगा कि डीएमडीके चुनावों में डीएमके को बेहद ज़रूरी सहायता देगी."

साल 2001 में अड़ागिरी ने आधिकारिक पार्टी प्रत्याशियों की हार सुनिश्चित कर दी थी जिससे पार्टी को विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था. डीएमके में जारी सत्ता संघर्ष के चलते एआईडीएमके (अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुणेत्र कषगम)की जयललिता सत्ता में आ गई थीं. तब करुणानिधि के पास अपने बड़े बेटे को पार्टी से निलंबित करने के सिवा कोई चारा नहीं बचा था.

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकार केएन अरुण कहते हैं, "दोनों भाइयों के बीच प्रतिस्पर्धा वर्ष 1980 में ही शुरू हो गई थी लेकिन तब यह ख़ामोशी से चल रही थी. वर्ष 1996 में जब जयललिता सत्ता में आई, तब अड़ागिरी प्रत्याशियों के चुनाव में शामिल थे. साल 2000 के बाद जब संगठन चुनावों में स्टालिन के लोगों ने उत्तरी ज़िलों में कब्ज़ा कर लिया तब सत्ता संघर्ष शुरू हो गया."

अड़ागिरी का निलंबन और उसके मायने

अरुण कहते हैं, "करुणानिधि की पहली पत्नी दयालु के कहने पर जब स्टालिन को चुन लिया गया था तो अड़ागिरी को मदुरै भेज दिया गया था ताकि वह पार्टी का निर्माण करें. लेकिन अड़ागिरी एक रणनीतिकार हैं और स्टालिन संगठन के आदमी हैं."

एक अन्य वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक एमआर वेंकटेश कहते हैं, "ताज़ा कदम 2001 की घटना को रोकने के लिए उठाया गया है. इसका उद्देश्य है कि वहले तो पार्टी के अंदर नियंत्रण को लेकर मतभेदों को ख़त्म किया जाए. दूसरे यह सुनिश्चित किया जाए कि इस विवाद की छाया चुनावों पर न पड़े."

करुणानिधि का संदेश

राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि अड़ागिरी की स्थिति ऐसी नहीं है कि वह अपनी पार्टी बना लें और वर्तमान स्थिति में वह कांग्रेस के साथ हाथ मिला सकते हैं.

अरुण कहते हैं, "मूलतः कार्यकर्ता कांग्रेस के साथ गठबंधन के ख़िलाफ़ हैं. वह डीएमडीके को पसंद करंगे. लेकिन अंततः यह इस पर निर्भर करेगा कि डीएमडीके क्या चाहती है."

भगवान सिंह कहते हैं, "डीएमके चाहती है कि वह डीएमडीके के साथ गठबंधन करे जो कि बाद के लिए भी ठीक रहेगा. हालांकि इसकी उम्मीद कम ही है. यह दरअसल दूसरे और तीसरे स्थान की जंग है. अभी के संकेतों के अनुसार पहले स्थान पर एआईएडीएमके है. अगर डीएमडीके डीएमके के साथ गठबंधन करती है तो डीएमके दूसरे स्थान पर आ सकती है."

डीएमडीके साल 2011 के चुनावों में एआईएडीएमके के साथ गठबंधन कर विधानसभा चुनाव लड़ी थी. लेकिन यह गठबंधन एआईएडीएमके और विजयकांत में मतभेदों के चलते ज़्यादा देर तक नहीं चल सका.

डीएमडीके विधानसभा में विपक्षी पार्टी बन गई और डीएमके विधानसभा में दहाई के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच पाई.

भगवान कहते हैं, "अगर डीएमके-डीएमडीके का गठबंधन नहीं बन पाता तो डीएमडीके ज़रूर बीजेपी के साथ गठबंधन करेगी. विजयकांत का साफ़ तौर पर मानना है कि नेतृत्व करने वाले को सभी गठबंधन सहयोगियों को ख़ुश रखना चाहिए. अड़ागिरी को निलंबित करके करुणानिधि डीएमडीके को यही संदेश देना चाहते हैं."

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