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स्लग: हर दूसरा आदमी ड्राई आई सिंड्रोम का शिकार, बच्चों से लेकर वयस्क भी चपेट में

-रेडिएशन और स्क्रीन की लाइट कर रही आंखों को कमजोर

-मानसिक रूप से भी बीमार बना रहा मोबाइल

RANCHI (24 July): यदि आप भी मोबाइल के साथ घंटों चिपके रहते हैं, तो अपनी यह आदत सुधार लीजिए। क्योंकि इससे आपकी आंखों की रौशनी छिन सकती है। मोबाइल से निकलने वाली ब्लू रेज और रेडिएशन आपकी आंखों को बीमार बना रही हैं। अगर समय रहते मोबाइल से दूरी नहीं बनाई तो आंखों से हाथ धो बैठेंगे। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 100 में से 50 लोगों को ड्राई आई सिंड्रोम ने अपनी चपेट में ले लिया है। इसके अलावा मोबाइल का रेगुलर इस्तेमाल मानसिक रूप से भी बीमार बना रहा है।

रेज व लाइट से कार्निया को खतरा

घंटों मोबाइल के इस्तेमाल से उससे रेडिएशन तो होता ही है। वहीं निकलने वाली रेज आंखों से निकलने वाले आंसू को सूखा देती है। इस वजह से लाइट का सीधा असर कॉर्निया और आंखों पर पड़ता है। चीजें धुंधली नजर आने लगती हैं। वहीं आंखों में जलन, चुभन की भी शिकायत लेकर लोग ओपीडी पहुंच रहे हैं।

4-50 साल तक के लोग है चपेट में

आंखों के इलाज के लिए आने वालों में 4 साल के बच्चे से लेकर 50 साल के व्यक्ति भी शामिल हैं। जिन्हें ठीक तरह से देखने में परेशानी हो रही है। वहीं हर समय ऐसा लगता है जैसे आंखों में कुछ घूम रहा हो। वहीं जलन, चुभन, देखने में परेशानी होने पर तत्काल डॉक्टर से दिखाना बेहतर होगा।

नींद अधूरी, नहीं काम कर रहा दिमाग

स्मार्टफोन के आ जाने से घंटों मोबाइल पर समय बिताना लोगों को मानसिक रूप से भी बीमार कर रहा है। इसकी एक बड़ी वजह लोगों की नींद पूरी नहीं हो पाना है। इस वजह से इंसान का दिमाग भी ठीक से काम नहीं करता। वहीं कई बार जानने के बावजूद लोग गलतियां कर रहे हैं। चूंकि मोबाइल के इस्तेमाल से कोई भी व्यक्ति काम में कंसंट्रेट नहीं कर पाता और काल्पनिक दुनिया में चला जाता है।

क्या कहते हैं एक्सप‌र्ट्स

पहले लोगों की आंखों में परेशानी नहीं के बराबर होती थी। लेकिन अब तो छोटे बच्चे भी मोबाइल लेकर गेम खेलने में लगे रहते हैं। इससे लोगों को बचने की जरूरत है। चूंकि एक बार आंखों की रौशनी चली गई तो फिर वापस नहीं आएगी। इसलिए कम से कम मोबाइल का इस्तेमाल और आंखों को राहत देने वाली हरियाली को देखे तो फायदा मिलेगा।

डॉ। वत्सल लाल, आई स्पेशलिस्ट

मोबाइल की दुनिया वर्चुअल लाईफ हो चुकी है। लोग सुबह से लेकर रात उसी में जी रहे हैं। आज स्थिति यह है कि मोबाइल छूट जाए तो ऐसा लगता है कि जान निकल गई। मोबाइल का इस्तेमाल बस बात करने के लिए करें। अगर जरूरी है तो ही उसपर कुछ टाइम स्पेंड करें। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब बिना मोबाइल कुछ भी कर पाना मुश्किल होगा। लेकिन इसके साइड इफेक्ट का कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।

डॉ। अजय बाखला, साइकियाट्रिस्ट