जितने मुखर उनके प्रशंसक हैं उतनी ही कटु आलोचना उनके विरोधी करते हैं.

सुधींद्र कुलकर्णी, भाजपा के पूर्व नेता

ये देश के हित में नहीं है क्योंकि एक ऐसा नेता जो सामाजिक रूप से ध्रुवीकरण करने वाला है और राजनीतिक रूप से भी ध्रुवीकरण करने वाला है और जो पार्टी में ही सर्वमान्य नहीं है तो ऐसा नेता देश को एक स्थिर, सुगम और असरदार सरकार कैसे दे पाएगा.

भाजपा को पसंद करने वाले कुछ युवाओं में उत्साह है इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन भारत का युवा वर्ग नरेंद्र मोदी के पीछे है ये बात ग़लत है क्योंकि देश की जनता में और युवाओं में भी एक चिंता है कि जो नेता समाज में सर्वमान्य नहीं है और देश में सर्वमान्य नहीं है क्या ऐसे नेता के हाथ में नेतृत्व सौंपना सही होगा.

'बहुत कठिन है डगर मोदी की'

मोदी ने अपनी छवि ईमानदारी से बदलने की कोशिश की होती तो बात अलग होती लेकिन उन्होंने पिछले चुनाव में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया इसका संदेश यही है कि मुसलमान मायने नहीं रखते. अब भाजपा पर आरएसएस का नियंत्रण बढ़ता जा रहा है.

परेश रावल, अभिनेता

मेरी राय तो ये है कि भाजपा को ये फ़ैसला पहले ही ले लेना चाहिए था क्योंकि मोदी जी ब्रांड नहीं हैं वो एक भावना हैं. जो आलोचक हैं उनके पास एक ही बात है, उनके पास है क्या आखिर बोलने के लिए.

अगर किसी की भैंस भी कम दूध देती है तो वो मोदी जी को ज़िम्मेदार ठहराता है. लेकिन अब तो दुनिया भी देख चुकी है और लोग तो बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं.

जैसा मैंने पहले भी कहा मोदी जी ब्रांड नहीं हैं एक भावना हैं. इस इमोशन की लहर पूरे देश में दौड़ रही है. लोगों को ये महसूस होना चाहिए कि वो जितनी जल्दी आएं उतना बेहतर है.

तीस्ता सीतलवाड़, सामाजिक कार्यकर्ता

जो राजनीतिक दल उनको आगे बढ़ा रहा है वो है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जो कि भाजपा की राजनीतिक रूप से रीढ़ की हड्डी है.

एक ज़िम्मेदार राजनीतिक दल ऐसे नेता को अपना उम्मीदवार बना रहा है जिस पर बहुत ही गंभीर आरोप लगे हैं.

'बहुत कठिन है डगर मोदी की'

जिस पर आरोप हैं कि उन्होंने अल्पसंख्यकों का कत्ले आम करवाया, जिसने उनको मरवाने के बैठकर आदेश दिए.

अभी भी ये मामले कोर्ट में चल रहे हैं तो ये एक राजनीतिक दल की गैरज़िम्मेदाराना राजनीति है. सांप्रदायिकता है.

ज़फर सरेशवाला, उद्योगपति

साल 2002 से पहले गुजरात में हर दो-तीन साल में दंगे होते रहते थे. साल 2002 के बाद से जो 11 साल का पीरियड रहा है वो अच्छा रहा है. भाजपा में नरेंद्र मोदी नहीं हैं तो कौन है.

आडवाणी जी अभी 86 साल के हैं और अगले साल 87 साल के होंगे तो रिटायरमेंट भी एक चीज़ है.

हम से ज़्यादा कौन जानता है दंगों के बारे में. हमने तो दंगे भुगते हैं. हिंदुस्तान में न कोई धर्मनिरपेक्ष है न सांप्रदायिक.

मैं खुद पीड़ित हूं. मेरा साल 2002 में नुकसान हुआ. दंगे हुए तो क्या चाहिए, न्याय चाहिए.

नौ मामले थे जिनमें से सात में फैसले आ चुके हैं. 160 लोगों को उम्रकैद हुई है. मैं हवा में बात नहीं करता. हिंदुस्तान में किसी हुकूमत ने दंगों के बाद पुनर्वास का कोई काम नहीं किया.

'बहुत कठिन है डगर मोदी की'

हमने तो मोदी से जो मांगा था वो उन्होंने दिया. मोदी साहब को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने में बुराई क्या है. क्यों आपत्ति होनी चाहिए.

गुलाम मोहम्मद वस्तानवी, इस्लामिक विद्वान

बीजेपी अगर मोदी के नाम का एलान करती है तो बीजेपी के अंदर ही एक बहुत बड़ा तबका है जो मोदी के खिलाफ गए हैं. मोदी के लिए कठिनाई ज़रूर है.

मैं समझता हूं कि मुल्क का एक बहुत बड़ा तबका है जो धर्मनिरपेक्ष प्रधानमंत्री चाहता है. साल 2002 की घटना देखें तो मोदी जी के हाथ खून से रँगे हुए हैं. मोदी की ये बदनामी कभी दूर नहीं हो सकती.

बीजेपी अगर मोदी को पीएम पद के लिए चुनती है तो वो अपनी कब्र खोद रही है. मैंने ये कहा था कि मुसलमान रोना बंद करें, खुद को तालीम में, व्यापार में लगाएं, ये नहीं कहा था कि मोदी को माफ़ किया जाए.

मोदी को मैंने क्लीनचिट नहीं दी थी.

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