AGRA। शहर में शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जहां बंदरों की पहुंच न हो। आए दिन लोग बंदरों के शिकार हो रहे हैं। इसमें सरकारी विभाग तक अछूते नहीं है। प्रशासन ने इस ओर कवायद भी की, लेकिन वह फाइलों और भष्टाचार तक सिमट कर रह गई।

खुद ही करते हैं इंतजाम

बंदर मकानों की बालकनी से अंदर प्रवेश कर तांडव मचाते रहते हैं। इसके लिए लोगों ने बालकनी को लोहे की जाली से कवर करवाना शुरु कर दिया है। इसके अलावा लोगों ने अपने दरवाजे-खिड़कियां आदि लगातार बंद करना शुरू कर दिया है।

सरकारी विभाग में भी करते हैं तांडव

विभिन्न थाना क्षेत्रों के अलावा सरकारी विभागों में भी बंदरों की संख्या अच्छी-खासी है। एसएन मेडिकल कॉलेज में बंदरों का इतना आतंक है कि वहां पर हाथ में कोई थैला तक नहीं ले जा सकता। कई बाद बंदर लोगों की कीमती दवाओं के बैग तक लेकर भाग चुके हैं।

बैंक की हालत भी है बहुत बेकार

थाना छत्ता बेलगगंज स्थित सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की हालत बहुत खराब है। यहां पर बंदर लोगों के हाथों से कैश तक छीनने का प्रयास कर चुके हैं। यहां पर पहले कभी एक लंगूर रखा गया था, लेकिन वह व्यवस्था कुछ दिनों तक रही। बंदरों को पकड़ने के लिए पिंजरा रखा गया वह भी कुछ दिनों तक ही काम कर पाया।

कलेक्ट्रेट में भी है हालत खराब

कलक्ट्रेट में बंदरों की संख्या अच्छी-खासी है। यहां पर कोई व्यक्ति हाथ में सामान लेकर नहीं जा सकता। बंदर पीछे लग जाते हैं। इसके अलावा बंदर यहां पर वाहनों को भी खराब कर देते हैं। बाइकों में लगे बैग कभी सलामत नहीं रहते।

बॉक्स

तत्कालीन कमिश्नर ने बनाया था प्लान

2013-14 में बंदरों के आतंक को लेकर तत्कालीन कमिश्नर प्रदीप भटनागर ने वाइल्ड लाइफ व अधिकारियों की बैठक की थी। उस दौरान बंदरों की संख्या में कमी लाने के लिए प्लान तैयार किया गया। तय हुआ कि बंदरों को पिंजरे में कैद कर मथुरा के गांव चुरमुरा छोड़ा जाएगा। इसके लिए बजट भी पास हुआ था। उस दौरान तय हुआ था कि बंदरों की नसबंदी कराई जाएगी। एडीए ने पथकर निधि से एक करोड़ 75 लाख का बजट पास किया था। बंदरों को पकड़ने के लिए पिंजरे खरीदे गए। एसएन और अन्य स्थानों में पिंजरे रखे गए। नसबंदी भी की गई, लेकिन धीरे-धीरे यह काम धीमा होते-होते बंद हो गया। वर्तमान में ऐसा कुछ भी नहीं चल रहा है। मात्र 500 बंदरों की नसबंदी ही हो पाई।

वर्जन

बंदरों के चलते एक गरीब आदमी की जान चली गई। यहां पर बंदरों ने सभी की नाक में दम कर रखा है।

लोकेश

बंदरों ने ही मेरे पिता की जान ली है। बंदर मोबाइल ले गया था। बंदरों ने चारों तरफ से घेर लिया था। वह नीचे गिर गए जिससे उनकी मौत हो गई।

आकाश, मृतक का बेटा

पहले भी यहां पर कई हादसे हो चुके हैं, जान भी जा चुकी है, फिर भी प्रशासन इस तरफ ध्यान नहीं दे रहा है।

भारत

एक महिला, एक बच्चा भी छत से गिरा था। अब एक युवक की जान चली गई। इसके बाद कोई प्रशासनिक अधिकारी नहीं आया। परिवार को मुआवजा मिलना चाहिए।

अतुल

इन क्षेत्रों में बंदरों का आतंक

रकाबगंज, छत्ता, एत्माद्उद्दौला, एमएम गेट, कोतवाली, शाहगंज, सिकंदरा, सदर, लोहामंडी, जगदीशपुरा, ताजगंज, न्यू आगरा, हरीपर्वत, मंटोला आदि क्षेत्र में बंदरों का आतंक है।