वेडनसडे को शहर में बंदर के काटने के तीन मरीज पहुंचे हॉस्पिटल

डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में बंदर काटने के रोजाना 4-5 मरीज पहुंच रहे

नगर निगम की ओर से हायर की गई एजेंसी बीच में ही काम छोड़ भागी

BAREILLY:

केस 1 - गुलाब नगर में रहने वाली 61 साल की नंद रानी अपने डेढ़ साल के पोते को खेला रही थीं। आंगन में अचानक आए एक बंदर ने किचन में घुसने की कोशिश की। नंद रानी ने उसे भगाने की कोशिश की तो बंदर ने नंद रानी के आंख के पास बुरी तरह नोच लिया। बुजुर्ग महिला की बाई आंख खराब होने से बाल बाल बची। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में इलाज शुरू।

केस 2 - डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की ओपीडी में वेडनसडे को पहुंची 35 साल की महिला शमीम को बंदर ने काट लिया, उन्हें रेबीज का इंजेक्शन लगवाना पड़ा। पति सलीम ने बताया कि घर की छत पर बंदर ने अचानक हमला कर दिया। उन्होंने बताया कि पहले भी बंदर शमीम को काट चुके हैं। उसके दाएं दाएं हाथ में जख्म के बड़े निशान हैं।

केस 3 -चनेहटा कैंट में रहने वाले वीरेन्द्र के 9 साल के बेटे अमन को वेडनसडे को बंदर ने काट लिया। आंगन में खेलते समय हुआ हादसा। बुरी तरह डरे बच्चे को पिता समय पर डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल लेकर पहुंचे। इलाके में बंदरों का आतंक बढ़ता ही जा रहा। बच्चे की ड्रेसिंग कर व रेबीज का इंजेक्शन लगा घर रवाना किया।

नवंबर से पहले राहत नहीं

वेडनसडे को डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में आए यह तीन केसेज शहर में बंदरों की दहशत की कहानी बखूबी बयां कर रहे हैं, लेकिन बंदरों के इस आतंक से नवंबर तक राहत मिलने की उम्मीद नहीं है, क्योंकि निगम साल के आखिरी तीन महीनों में ही बंदरों को पकड़ने का काम करता है। ऐसे में लकीर के फकीर बने निगम से राहत की उम्मीद करना बेमानी होगी। बंदरों को न पकड़ने के पीछे निगम अधिकारी अपने तर्क दे रहे हैं कि गर्मी में बंदरों का आतंक काफी बढ़ जाने के बावजूद निगम अभियान शुरू नहीं करा सकता, क्योंकि गर्मी के सीजन में बंदर को पिंजरे में कैद करना उनकी जान के लिए खतरा हो सकता है। पिंजरों में कैद रहने के दौरान बंदर की मौत भी हो सकती है। ऐसे में, वाइल्ड लाइफ सेफ्टी से जुड़ी संस्थाएं सवाल खड़ी कर सकती हैं। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग इस साल नवंबर से पहले फिर से बंदरों के पकड़े जाने को बिल्कुल भी तैयार नहीं है।

खतरनाक होते जा रहे हैं बंदर

सिर्फ वेडनसडे को ही नहीं बल्कि, बंदरों का शिकार लोग डेली हो रहे हैं। सिर्फ डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में डॉक्टरों ने बताया कि डेली चार से पांच केसेज बंदरों के काटने के आ रहे हैं। बंदरों के ज्यादा टारगेट बच्चे व महिलाएं ही होते हैं। बंदरों की आबादी पर कंट्रोल करने में नगर निगम पूरी तरह फेल रहा।

लगते हैं रैबीज के 8 इंजेक्शन

बंदरों के काटने से घायल मरीजों को भी आमतौर पर कुत्तों के काटने पर दिया जाने वाला इलाज ही दिया जाता है। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में आने वाले ऐसे केसेज को ओपीडी के कमरा नं। 18 पर इलाज दिया जाता है। घायल मरीज को व‌र्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की गाइडलाइंस के तहत रैबीज के 8 इंजेक्शन लगाए जाते हैं। यह आठों इंजेक्शन चार फेज में 0.1 एमएल की मात्रा में मरीज की दोनों बांह में लगाया जाता है। इंजेक्शन लगाने का पहला फेज घटना वाले दिन, दूसरा फेज तीसरे दिन, तीसरा फेज सातवें दिन और आखिरी फेज 28वें दिन होता है। वहीं मरीज की ड्रेसिंग इमरजेंसी वार्ड में होती है। हालांकि ज्यादातर बंदर काटे जाने के मरीज दूसरे फेज के बाद इंजेक्शन का कोर्स पूरा करने के लिए लौटकर नहीं आते।

एक महीने में भागी एजेंसी

बंदरों के आतंक से हलकान शहर को राहत देने के लिए निगम की ओर से बीते फरवरी में मुहिम शुरू की गई थी। निगम ने टेंडर कर एक एजेंसी का बंदरों को पकड़ने का काम सौंपा था। फरवरी में बंदरों को पकड़े जाने के लिए एजेंसी ने अभियान भी चलाया लेकिन यह एजेंसी काम बीच में ही छोड़ भाग गई।

कम बोली लगाने से एजेंसी को हुआ घाटा

आमतौर पर टेंडर प्रक्रिया में प्रति बंदर पकड़े जाने के रेट 300, 275 या 250 रुपए के आसपास आते थे। लेकिन मथुरा की इस एजेंसी ने टेंडर प्रोसेस में सबसे कम रेट 190 रुपए प्रति बंदर पकड़ने के दिए। इतने कम रेट पर बंदर पकड़े जाने का टेंडर निगम के लिए भी फायदे का सौदा रहा। लेकिन बंदरों को पकड़ने का काम शुरू होते ही एजेंसी के हाथ पांव फूलने लगे। इस काम में आने वाली लागत टेंडर के रेट से भी ज्यादा जाने लगी। वहीं बंदरों को पकड़ने के दौरान भूख से उनकी मौत न हो जाए, इसके लिए करार के तहत एजेंसी से बंदरों को केले व खाने का भी इंतजाम करने को कहा गया। इससे नुकसान में जा रही एजेंसी ने बिना बताए ही काम छोड़ दिया।

इन इलाकों में ज्यादा आतंक

माधोबाड़ी

प्रेमनगर

सुभाषनगर

मढ़ीनाथ

गंगापुर

बिहारीपुर ढाल

राजेन्द्र नगर

कैंट

पुराना शहर

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बंदरों के आतंक से कॉलोनी में बहुत समस्या है। कई बार बंदर पकड़ने वाले आए, पर समस्या बनी हुई है। बंदर जाल में पकड़ में नहीं आते। बंदरों के हमले की घटनाएं बढ़ गई हैं। बच्चों के लिए डर बना रहता है।

- सोनी कश्यप

मोहल्ले में कई लोगों पर बंदर हमला कर चुके हैं। बंदरों का आतंक इतना बढ़ गया है कि घरों में घुसकर फ्रिज खोलकर सामना ले जाते हैं। इन गर्मियों में तो बंदर जैसे पागल हो गए हैं। हर किसी पर हमला कर रहे।

- कृष्णा

बंदर छतों पर से कपड़े उठा ले जाते हैं। मोहल्ले में एक आदमी की पैंट से नया स्मार्टफोन लगे गए। भगाओ तो हमलावर हो जाते हैं। महिलाओं व बच्चों पर बंदर सबसे ज्यादा हमले कर रहे हैं।

- रामू

बंदरों को पकड़ने के लिए हायर की गई एजेंसी बीच में ही काम छोड़ भाग गई। गर्मियों में बंदरों को पकड़ने से उनकी मौत होने का खतरा ज्यादा है। नवंबर से पहले निगम की ओर से बंदरों को पकड़ने का अभियान शुरू न हो सकेगा। - डॉ। एसपीएस सिंधु, नगर स्वास्थ्य अधिकारी