- बच्चों को कोर्स के साथ नैतिक शिक्षा देने की जरूरत

BAREIILY:

बच्चे के जन्म के साथ ही शिक्षा के संस्कार का कार्य प्रारम्भ हो जाता है। माता-पिता अबोध बालक से जो बातें करते हैं। जिनमें संस्कार की गंध होती है। वह चाहते हैं, कि उनका बच्चा एक संस्कारवान और कामयाब इंसान बने। पहचान के लिए जो शिक्षा स्वरूप बच्चों को दिए जाते हैं वह आदर्शो तथा नैतिक मान्यताओं के सन्निकट होता है। अबोध काल से प्रारम्भ इस संस्कार भाव को जो गति मिलनी चाहिए, वह औपचारिक शिक्षा की दीक्षा से कम होने लगती है। माता-पिता इस बात से आश्वस्त हो जाते हैं, कि उनका बच्चा स्कूल जाने लगा है और वह वहीं से तमाम आदर्श और विनम्रताएं सीख रहा है, जो उसके लिए जरूरी हैं। धीरे-धीरे पेरेंट्स बच्चों की ओर से बेफिक्र हो जाते हैं। लिहाजा संस्कारों की शिक्षा बोझ तले दबती चली जा रही है। जिसका नतीजा यह है कि गुरुग्राम के रेयान स्कूल और लखनऊ के ब्राइट लैंड स्कूल जैसी घटनाएं किसी भी स्कूल में हो सकती हैं।

आधुनिक शिक्षा के बीच भूल गए नैतिक शिक्षा

जिस तरह से मासूम बच्चे हिंसक बन रहे हैं, उससे पेरेंट्स काफी चिंतित हैं। हों भी क्यों न बच्चों से उनकी उम्मीदें जो जुड़ी होती हैं। एक्सपर्ट इसके पीछे का रीजन स्कूलों में मोरल एजुकेशन का न होना मानते हैं। उनका कहना है कि आधुनिक शिक्षा पद्धति में वह शक्ति व उद्देश्यों की पूर्ति की योग्यता प्रतीत नहीं होती जिससे बच्चे में मनुष्यता के बीज अर्थात श्रेष्ठता के विचार आरोपित किये जा सकें। साथ ही शारीरिक, मानसिक और आत्मिक बल भी बढ़ाया जा सके। वर्तमान युगीन शिक्षा के उद्देश्य तो केवल ऐसी शिक्षा को देना है जिससे अधिक से अधिक अर्थ का आगम हो और उसी के लिए बौद्धिक विकास की परिकल्पना है। उस विकास के साधन उचित हैं अथवा अनुचित यह सोचना आज की शिक्षा पद्धति के एजेण्डे में नहीं है।

टीचर्स का बच्चों से इंटरेक्शन नहीं

समय की कमी कहें या कुछ और टीचर्स का बच्चों से पर्सनल इंटरेक्शन नहीं होना भी इस तरह की घटनाओं का बड़ा कारण है। टीचर्स क्लास रूम में आते हैं और कोर्स पर लेक्चर देकर चले जाते हैं। बच्चों का क्लास में मन लग रहा है या नहीं, उन्हें किस चीज की जरूरत है। यह टीचर जानने तक की कोशिश नहीं करते हैं। लिहाजा, बच्चों और टीचर्स के बीच इमोशनल अटैचमेंट कम हो गया है। इसके लिए स्कूलों में नैतिक शिक्षा को बढ़ावा देना बेहद जरूरी है। सिर्फ कोर्स तक ही सीमित रहना बच्चों के लिए ठीक नहीं है।

बच्चों के ओवर केयरिंग से पेरेंट्स को बचना चाहिए। कई बार टीचर्स बच्चों के अच्छे के लिए कोई सुझाव देते हैं, तो उन्हें बुरा लग जाता है। पेरेंट्स को चाहिए कि टीचर्स पर ट्रस्ट करें। स्कूलों में नैतिक शिक्षा को बढ़ावा देने की जरूरत है।

गुरदीप सिंह, डायरेक्टर, बचपन प्ले स्कूल

इस तरह की घटना के लिए पेरेंट्स व टीचर्स दोनों दोषी हैं। इसे रोकने के लिए पेरेंट्स और टीचर्स को साथ आने की जरूरत है। जो भी प्रॉब्लम्स हैं उस पर खुल कर डिस्कशन होना चाहिए। ताकि, समस्याओं का निस्तारण किया जा सके।

राजेश जौली, मैनेजर, जीआरएम

बार-बार स्कूल के बदलने के कारण बच्चों के अंदर इमोशनल अटैचमेंट कम हो गया है। वह टीचर्स से जुड़ नहीं पाते है। इसके लिए जरूरी है कि एक बार बच्चों का जहां एडमिशन करा दिया वहां पर क्लास 1 से 10 तक पढ़ने दें।

अनुरोध चित्रा, प्रधानाचार्य, विद्या भवन पब्लिक स्कूल