BAREILLY :

गुरुग्राम, लखनऊ और हरियाणा के स्कूलों में जिस तरह से स्टूडेंट्स ने हिंसक वारदातों को अंजाम दिया। इससे स्कूल गोइंग स्टूडेंट्स की मनोस्थिति को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। क्योंकि वह अपनी लाइफ के सबसे बड़े गिफ्ट स्कूल जाने को लेकर किस तरह नापसंद कर रहे हैं आखिर क्यों। क्या वह अपने बात को किसी से कह नहीं पाते हैं। क्या वह हिसंक मूवी और गेम देखते हैं इसलिए। क्या वह स्कूल के अधिक अनुशासन को पसंद नहीं करते हैं। क्या वह अपने आप को कुछ अलग दिखाने के लिए या फिर उनमें मोरल एजुकेशन की कमी है, जिससे वह कुंठा की ओर बढ़कर हिंसक हो जाते हैं। वेडनसडे को दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने इस विषय पर एक डिबेट का आयोजन किया, जिस पर स्कूल प्रबंधन और शिक्षाविदों ने अपने विचार खुलकर रखें।

पेरेंट्स से ज्यादा स्कूल जिम्मेदार

शिक्षा का अर्थ है व्यवहार में बदलाव, व्यवहार में परिवर्तन चाहे पॉजिटिव हो या निगेटिव हो। इसके लिए पेरेंट्स से ज्यादा स्कूल दोनों जिम्मेदार हैं। बात हरियाणा में वारदात करने वाले बच्चे की करें तो वह 10वीं तक किसी दूसरे स्कूल में पढ़ा। 11 वीं से उसने पढ़ाई कहीं दूसरे स्कूल में की, जिसमें उसने एक नया सब्जेक्ट इकोनॉमिक्स ले लिया। वह इकोनॉमिक्स सब्जेक्ट को ठीक से मैनेज नहीं कर पा रहा था। जब स्कूल टीचर्स ने उसे डांटा और उसे ठीक से तैयारी करने का प्रेशर बनाया तो वह हिंसा की तरफ भटक गया। इसके चलते ही टीचर पर गोली चला दी।

जब बच्चे कोचिंग में जाते है तो वहां बच्चे निगेटिविटी सिखने लगते है। वहां उन्हें कई स्कूल के बच्चे मिलते है जिससे वह बहुत निगेटिव बाते सिखते है और जिसके बाद उनके व्यवहार में बदलाव आने लगता है। और वह उन्हीं निगेटिव व्यवहारों को स्कूल में करने लगता है।

अनुरोध चित्रा, विद्या भवन पब्लिक स्कूल

सॉल्यूशन:

- बच्चे को स्कूल में पढ़ाने के साथ कोचिंग पढ़ाने से बचे।

-डिजिटलाइजेशन से जहां तक हो सके छोटे बच्चों को दूर रखें।

-बच्चे निगेटिव व्यवहार की तरफ बढ़ रहे हैं तो पेरेंट्स बच्चों पर ध्यान दें।

-स्कूलों में टीचर के सेलेक्शन प्रोसेस में बदलाव करने की जरूरत है।

-बच्चों को हिसंक गेम आदि से दूर रखें।

-कैरीकुलम में सीबीएसई बदलाव करने जा रहा है इससे बच्चों को कोचिंग की जरूरत नहीं हाेगी।

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एकल परिवार भी बड़ा कारण

आज के समय में पेरेंट्स के पास बच्चों के लिए समय नहीं होता है, लेकिन मेरा मानना है कि सभी पेरेंट्स को अपने बच्चों के पास 24 घंटे में कम से कम 1 घंटा समय जरूर निकलना चाहिए। उनसे बात करनी चाहिए और उनकी बात को सुनना चाहिए, जिससे काफी हद तक समस्या का हल निकल सकेगा। आज हम देख रहे है कि बच्चे के पैरेंट्स अगर जॉब में हैं तो वह बिजी जिंदगी जीते हैं, ऐसे में, वह अपने बच्चों को हॉस्टल या फिर पीजी रखते हैं। बच्चों के हिसंक होने के पीछे एक बात यह भी है कि एकल परिवार। पहले के समय में संयुक्त परिवार होते थे, तो वह अपनी समस्या कभी माता-पिता से शेयर नहीं कर पाते थे तो दादा-दादी, बुआ आदि से शेयर कर लेते थे, लेकिन आज तो एकल परिवार अधिकांश हैं और माता-पिता के पास समय नहीं जिससे वह कुंठित होते चले जाते हैं, और वह हिंसक बन जाते हैं। अब तो टीचर्स स्कूल में बच्चे को पीट दे तो पेरेंट्स शिकायत लेकर आ जाते हैं और गलत भाषा तक का प्रयोग करते है, लेकिन कहीं न कहीं वहीं गलत भाषा बच्चा भी सीखता है।

बृज मोहन शर्मा, जयनाराण विद्या मंदिर इंटर कॉलेज

सॉल्यूशन:

-पेरेंट्स बच्चे के लिए समय निकाले, जिससे बच्चे अपनी बात खुलकर कर सके।

-शिक्षा को लेकर शासन को भी अपनी नीतियां सुधारनी चाहिए।

-मोबाइल, कम्प्यूटर, विज्ञान की तरह स्कूल में मोरल एजुकेशन पर भी जोर देना चाहिए।

-एकल की जगह हो सके तो संयुक्त परिवार में रहना पसंद करे।

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मोरल एजुकेशन पिछड़ना समस्या

एक स्टूडेंट प्रिंसिपल को गोली मार देता है इसका कारण है सिर्फ स्कूल में पिछड़ता मोरल एजुकेशन। आज के युग में पेरेंट्स सिर्फ मेरिट पर ध्यान देते हैं। पेरेंट्स पड़ोसी के बच्चे के मा‌र्क्स से अपने बच्चे के परसेंटेज को कंपेयर करते है। वह ये नही सोचते है कि बच्चा उससे प्रेशर में आ जाएगा। यहीं बच्चे स्कूल में अलग व्यवहार करते हैं और इसी तरह से हिंसक हो जाते हैं। बच्चों को हमेशा उनकी रूचि के अनुसार ही सब्जेक्ट दिलाना चाहिए, उन पर सब्जेक्ट थोपना नहीं चाहिए।

एसपी पांडेय, गुलाब राय इंटर कॉलेज

सॉल्यूशन:

-प्राइवेट स्कूल में जो भी टीचर्स टीचिंग कर रहे हैं वह अनट्रेंड है उनकी ट्रेनिंग कराई जाए।

-बच्चों के व्यवहार में परिवर्तन दिखे तो उन्हें अलग से बात कर उनकी प्रॉब्लम पर बात करके शॉर्टआउट करना चाहिए।

-बच्चों को समय जरूर दें।

-स्कूल में सुबह प्रेयर के समय 20 मिनट मोरल एजुकेशन अनिवार्य हो।

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बच्चे दहशत पैदा न करें

पहले के समय में बच्चे अधिक होते थे आज के समय बच्चे 10 प्रतिशत ही है। आज जब पेरेंट्स बच्चे का एडमिशन कराने जाते हैं तो वह बच्चे से बोलते हैं कि गुड मॉर्निग बोलो, लेकिन जिन घरों में पहले से ही संस्कार हैं उन्हें यह नहीं बोलना पड़ता है। यह सब संस्कारों की बात होती है। अब सभी घरों में देर रात तक टीवी और मोबाइल पर बच्चे और उनके पेरेंट्स बिजी रहते हैं और बच्चे भी। जिससे वह सुबह देर से उठते हैं। जिसके बाद बच्चे सुबह उठने और स्कूल जाने से बचते हैं। रही बात हिंसा की तो बच्चा जो आसपास के समाज में देखता है सुनता है वहीं सीखता है। चाहे वह मूवी हो कई बार बच्चे हिंसक मूवी देखकर हिंसक व्यवहार करते हैं उन्हें यह पता ही नहीं चलता है कि वह सही कर रहे हैं या गलत।

राजीव धींगरा, अल्मा मातेर पब्लिक स्कू

सल्यूशन:

-बच्चे को हिसंक मूवी या नाटक टीवी मोबाइल पर न देखने दें।

-रात को समय से सोने और समय से उठने की दिनचर्या रखे।

-घर में खुद का व्यवहार ठीक रखें।

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विश्वास का न हो हनन

बच्चे के पेरेंट्स और स्कूल प्रबंधन के बीच हमेशा विश्वास कायम रहना चाहिए। पेरेंट्स को कभी भी शिकायत होने पर यह नहीं सोचना चाहिए कि स्कूल प्रबंधन नहीं सुनेगा। स्कूल के गेट हमेशा खुले होते हैं। पेरेंट्स अपनी शिकायत लेकर कभी भी आ सकते हैं। इसके साथ पेरेंट्स अपने बच्चों की भावनाओं को जरूर समझे। क्योंकि टीचर्स 40 मिनट में क्लास में बच्चे की भावनाओं को नहीं समझ सकते हैं। पेरेंट्स भले ही पीएचडी हो, लेकिन कभी स्कूल टीचर्स की गलती कॉपी पर हो तो एकदम बच्चे के सामने गलती शो नहीं करनी चाहिए। क्योंकि इससे बच्चा का अपने टीचर्स के प्रति विश्वास की भावना कम होती है। इसके लिए स्कूल में शिकायत करनी चाहिए। स्कूल पीटीएम में बच्चे के केवल मा‌र्क्स ही नहीं उसके व्यवहार के बारे में भी बात करें।

राजेश जौली, जीआरएम पब्लिक स्कूल

-बच्चों में संवेदनशीलता के लिए कार्यक्रम होनी चाहिए।

-मा‌र्क्स के साथ-साथ बच्चे के व्यवहार पर ध्यान दें।

-पेरेंट्स को चाहिए कि समस्या होने पर वह अपनी बात को सीधे स्कूल प्रबंधन या फिर टीचर्स से बताएं।

-सभी पेरेंट्स को अपने बच्चों के साथ समय जरूर बिताना चाहिए।

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होमवर्क ही नहीं उसके विचार भी जाने

पेरेंट्स को बच्चे के होमवर्क के बारे में पूछना ही काफी नहीं बल्कि उसके और उसके व्यवहार के बारे में भी जानना चाहिए, लेकिन अधिकांश पेरेंट्स बच्चे के होमवर्क के बारे में ही पूछकर अपना काम पूरा कर लेते हैं। आज ज्वाइंट फैमिली नहीं होने से समस्याएं तो बढ़ी हैं लेकिन इस समस्या के लिए मां-बाप को ही समझना होगा। जिससे बच्चों को कुंठित होने से बचाया जा सके। क्योंकि बच्चे जब तक अपनी समस्या खुलकर किसी के सामने नहीं रखेंगे तब तक वह कुंठित होने से नहीं बच सकते हैं। मां-बाप को चाहिए कि वह कम से कम 24 घंटे में एक घंटा अपने बच्चों को दें। पहले के समय में प्लेग्राउंड अधिक होते थे लेकिन आज के समय में ग्राउंड नहीं है जिससे बच्चा निगेटिव कामों की तरफ चला जाता है। चाहे वह इसे मोबाइल से सीखे या फिर टीवी आदि से, इस पर ध्यान देना चाहिए।

अभिषेक, जीडी गोयंका

-छोटे बच्चों को मोबाइल से जितना हो सके दूर रखे।

-बच्चों को खेल संबंधी एक्टिविटी में आगे बढ़ाएं। जिससे वह अपनी एनर्जी सही जगह यूज करें।

-व्यवहार में अलग लगे तो तुरंत बात करें।

-24 घंटे में बच्चे के साथ कम से कम एक घंटा जरूर बिताएं।