RANCHI: मां बनना किसी भी महिला के लिए खास एहसास होता है। लेकिन उससे भी ज्यादा परेशानी उसे डिलीवरी के वक्त झेलनी पड़ती है। वहीं, जब बात सीजेरियन डिलीवरी को हो तो महिलाएं और डर जाती हैं। चूंकि इसमें मां और बच्चे दोनों को ही खतरा रहता है। ऐसे में डिलीवरी कराने के लिए सरकारी हास्पिटल लोगों की पहली पसंद बन गए हैं। सुपरस्पेशियलिटी सदर हास्पिटल के चालू होने के बाद प्रसूताओं की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। यही वजह है कि रांची अरबन में पिछले एक साल में 35 हजार डिलीवरी हास्पिटल में कराई गई हैं, इनमें नॉर्मल व सिजेरियन दोनों डिलीवरी शामिल हैं।

नार्मल के लिए भी नहीं लेना चाहते रिस्क

मां और बच्चे की सुरक्षा को देखते हुए लोग अब नार्मल डिलीवरी के लिए भी रिस्क नहीं लेना चाहते। लेबर पेन शुरू होते ही वे प्रसूता को लेकर सीधे हास्पिटल पहुंच रहे है। ताकि डिलीवरी में किसी तरह की परेशानी न हो। वहीं डॉक्टर भी हास्पिटल में मां-बच्चे की बेहतर देखभाल करते है।

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टारगेट से ज्यादा हास्पिटल में हुई डिलीवरी

हास्पिटल में डिलीवरी के लिए रांची अरबन का टारगेट स्वास्थ्य विभाग ने 32,237 का टारगेट रखा था। लेकिन महिलाओं को नार्मल डिलीवरी कराने के लिए भी हास्पिटल लाने के लिए जागरूक किया गया। इसका असर दिखा और टारगेट से अधिक प्रसूताओं की डिलीवरी हास्पिटल में कराई गई। जिससे कि यह आंकड़ा 35,444 पहुंच गया है।

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नार्मल डिलीवरी के लिए प्राइवेट में 50 हजार

नार्मल डिलीवरी कराने के लिए प्राइवेट हास्पिटलों में 50 हजार रुपए तक चार्ज किया जाता है। वहीं सीजेरियन डिलीवरी हो तो यह एक लाख के पार तक चला जाता है। लेकिन सदर हास्पिटल में यह पूरी तरह से फ्री है। वहीं हास्पिटल में डिलीवरी कराने पर उन्हें प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है।

वर्जन

हमलोग तो अभियान चलाकर लोगों को जागरूक कर रहे है। हास्पिटल में डिलीवरी कराने से मां और बच्चे दोनों को खतरे से बचाया जा सकता है। चाहे व नार्मल डिलीवरी हो या सीजेरियन। सहियाएं घरों में जाकर उन्हें जागरूक कर रही है। इसी का नतीजा है कि हमने टारगेट तो पूरा किया ही उससे अधिक लोगों को हास्पिटल में डिलीवरी का लाभ मिला। नए हास्पिटल में जल्द ही सारी सुविधाएं मिलने लगेगी। इसके बाद डेथ रेशियो में और कमी आएगी।

-डॉ। एसएस हरिजन, सिविल सर्जन, रांची