रांची: आज मदर्स डे पर पूरी दुनिया 'मातृशक्ति' को नमन कर रही है, लेकिन झारखंड में ज्यादातर 'मांएं' बेचारी-दुखियारी बनी हुई हैं। उनके हिस्से बेहिसाब पीड़ाएं है, बेपनाह दर्द है। वो शोषित, पीडि़त और बीमार हैं। वह विस्थापन से लेकर पलायन तक दंश झेलती हैं। उनकी रगों में खून की कमी है। वो संतानों को जन्म देते हुए असमय काल-कवलित हो रही हैं। वो कभी घर के भीतर तो कभी गांव के चौपाल पर हिंसा का शिकार हो रही हैं। आइए, आंकड़ों के आईने में देखें झारखंड की मांओं का दुख।

महिलाओं के प्रति हिंसा की दर सबसे ज्यादा

झारखंड पुलिस की वेबसाइट एक सर्वे स्टडी के हवाले से बताती है कि पूर्वी भारत में महिलाओं के प्रति हिंसा की दर झारखंड में सबसे ज्यादा है। सर्वे के दौरान राज्य में 66 फीसदी पुरुषों के महिलाओं के प्रति हिंसक होने का पता चला। यह हिंसा न केवल शारीरिक, बल्कि यौन व मानसिक भी है।

दो साल में डायन बताकर 127 की हत्या

बीते 17 मार्च को राज्यसभा में गृह राज्य मंत्री द्वारा एक सवाल के जवाब में बताया गया कि झारखंड में 2012 से 14 से बीच जादू-टोना और डायन के आरोप में 127 महिलाओं की हत्या हुई। इधर, एनसीआरबी के आंकड़े के मुताबिक राज्य में पांच साल में डायन के आरोप में 212 हत्याएं हुईं।

-76 फीसदी झारखंड की महिलाएं खून की कमी की शिकार हैं।

-67 फीसदी आदिवासी बहुल इलाकों की महिलाएं संस्थागत प्रसव नहीं करा पातीं।

-43 फीसदी झारखंड की महिलाओं का बॉडी मास इंडेक्स सामान्य मानक से नीचे है।

- 48.06 प्रतिशत झारखंड की महिलाएं निरक्षर हैं।

-15 लाख से ज्यादा महिलाएं झारखंड में पिछले बीस वर्षो में हुईं विस्थापन का शिकार।

पहल बेहतरी की

पंचायतों में माताएं

झारखंड में महिलाओं-माताओं को सशक्त बनाने के लिए पिछले कुछ वर्षो में अच्छी पहल भी हुई है। झारखंड में छह माह पहले हुए पंचायत चुनाव में झारखंड में महिलाओं को 52.58 फीसदी आरक्षण का लाभ मिला। 34 हजार से ज्यादा महिलाएं झारखंड की ग्राम पंचायतों के लिए हुईं हैं निर्वाचित।

जेंडर बजट पहली बार

झारखंड सरकार ने पहली बार राज्य में महिलाओं के लिए अलग से जेंडर बजट पेश किया। बजट में 13,515 करोड़ रुपए की राशि मंजूर की गई है महिलाओं की बेहतरी के लिए

-33 फीसदी महिला आरक्षण का प्रावधान लागू किया गया है झारखंड में पुलिस नियुक्तियों में